Wednesday, June 16, 2010

थैंक यू मोबाइल! तुमने हमें आजादी दी


पिछले कुछ सालों में ऐसी महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है, जो मोबाइल का इस्तेमाल कर रही हैं। और तमाम अध्ययन यह साबित कर रहे हैं कि महिलाओं की पहुंच में मोबाइल आने से महिला सशक्तिकरण को एक नई दिशा मिली है। यदि मोबाइल महिला सशक्तिकरण की गति को बढ़ा रहा है तो क्यों नहीं सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए कि महिलाओं को मुफ्त में या सस्ती कीमतों पर मोबाइल उपलब्ध कराया जाए। एक छोटा सा उपकरण कैसे महिलाओं को विकास के अवसर उपलब्ध करा रहा है। एक रिपोर्ट
वीना (35 वर्षीया) पूर्वी दिल्ली के एक स्लम एरिया में रहती है। वह पास ही बने डीडीए फ्लैट्स में लोगों के घरों में काम करके अपना परिवार चलाती है। आज उसके पास कई घर हैं। वह एक घर से लगभग 500 रुपये लेती है। घर में काम करते समय वह आत्मविश्वास से लबरेज होती है। दिलचस्प रूप से पोछा लगाते समय जब उसका मोबाइल बजता है तो उसकी खुशी देखते ही बनती है। पिछले दो सालों से वह मोबाइल का इस्तेमाल कर रही है। वह कहती है, अब मुझे घर तलाश करने के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता। मैं जिन घरों में काम करती हूं, उनके पास मेरा मोबाइल नंबर है। जब भी किसी को मुझे काम पर लगाना होता है, वह मुझे फोन कर लेता है। वह कहती है, मोबाइल ने मेरे काम पर भी असर डाला है।
वीना ऐसी अकेली महिला नहीं है। दिल्ली में ही तमाम ऐसी महिलाएं और लड़कियां हैं, जो मोबाइल के दम पर अपनी रोजी-रोटी कमा रही हैं। मामला चाहे ट्यूशन पढ़ाने का हो या पीको करने का, मोबाइल ने महिलाओं के काम को गति दी है और उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
कुछ समय पहले स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि मोबाइल फोन्स महिलाओं को स्वायत्त बनाने और उन्हें सोशल सर्विस उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। भारत में काम कर रहे गैर-सरकारी संगठन जागोरी और ए लिटिल वर्ल्ड खास तौर पर इस बात को रेखांकित करते हैं कि मोबाइल तकनालॉजी महिलाओं को आर्थिक आजादी देने और उन्हें घरेलू हिंसा से लड़ने में एक हथियार की तरह काम कर रही है।
बढ़ रही हैं महिला उपभोक्ता
एक सर्वे की रिपोर्ट यह भी बताती है कि आज भारत में जितने शौचालय हैं, उनसे कहीं ज्यादा मोबाइल फोन्स हैं। मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या में पिछले सात सालों में बड़ी तेजी से वृद्धि हुई है। मार्च 2003 तक भारत में केवल एक करोड़ 30 लाख मोबाइल उपभोक्ता थे, जिनकी संख्या 2009 में बढ़कर 44 करोड़ हो गई। जिस गति से मोबाइल कंपनियां अपने पैर पसार रही हैं, उससे 2012 तक इनकी संख्या बढ़कर 74 करोड़ तक करने का लक्ष्य है। हालांकि सही-सही ऐसे आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं कि इनमें से महिला उपभोक्ताओं की संख्या कितनी है या होगी, लेकिन मोबाइल कंपनियों के आंकड़े बताते हैं कि महिला उपभोक्ताओं की संख्या लगभग तीस प्रतिशत है। एक अन्य अध्ययन बताता है कि पुरुषों और महिलाओं का अनुपात 12:5 का है। यानी यदि 12 पुरुषों के पास मोबाइल है तो पांच महिलाओं के पास मोबाइल हैं। ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि सन् 2012 तक ग्रामीण इलाकों में 20 करोड़ टेलिफोन कनेक्शंस हो जाएंगे। इनमें 30 फीसदी महिला उपभोक्ता होंगी। जाहिर है आने वाले समय में मोबाइल कंपनियों का सहज टारगेट महिलाएं ही होंगी।
आर्थिक आजादी
संभवत: पिछले ढाई दशक में महिलाओं ने इतनी आर्थिक आजादी का सुख नहीं भोगा, जितनी आजादी उन्हें पिछले सात सालों में मोबाइल फोन उपभोक्ता बन कर मिली है। छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों तक में महिलाएं मोबाइल फोन्स के जरिये इस आजादी को एंज्वॉय कर रही हैं। घरेलू उद्योग धंधों में लगी महिलाओं ने इसी मोबाइल के जरिये सीधी ग्राहक तक अपनी पहुंच बनायी है। कच्छ (गुजरात) के एक स्व-सहायता समूह चुनरी की शिल्पा कहती हैं, मोबाइल होने से अब यह पता करना बेहद आसान हो गया कि कौन-सा शिल्प मेला कहां लग रहा है। जैसे ही हमें इसकी सूचना मिलती है, हम मेले में जाने की तैयारी कर लेते हैं। वह कहती हैं, पहले हमारे मुनाफे का बहुत बड़ा हिस्सा बिचौलिये खा जाया करते थे, क्योंकि खरीदारों का शिल्पकारों से सीधा संपर्क नहीं था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब हम हर प्रदर्शनी में अपना विजिटिंग कार्ड छोड़ देते हैं और ग्राहक सीधा हम से संपर्क करता है। शिल्पकार ही नहीं, तमाम छोटे-छोटे कामों से जुड़ी महिलाएं आज मोबाइल के जरिये अपने काम को बढ़ाने में लगी हैं।
घरेलू हिंसा से लड़ने में सहायक
मोबाइल किस तरह घरेलू हिंसा से लड़ने में मदद कर रहा है, इस बात की कल्पना मोबाइल होने से पहले नहीं की जा सकती था। दक्षिणी दिल्ली के मसूदपुर गांव की रहने वाली 30 वर्षीया मीना बताती हैं, मेरे पति मेरी रोज पिटाई किया करते थे। मैं जिस घर में काम करती हूं, एक रोज उसकी मालकिन ने मुझ पर तरस खाकर एक पुराना मोबाइल मुझे दे दिया। उसने मुझे कहा कि यदि वह कभी भी किसी समस्या में हो तो उसे फोन कर दूं। और मैंने ऐसा ही किया। मोबाइल आने से ऐसा नहीं है कि मेरी समस्याएं पूरी तरह खत्म हो गयी हैं, लेकिन इतना तय है कि कम अवश्य हुई हैं। अनेक रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि घरेलू हिंसा से संबंधित हेल्पलाइन्स पर आने वाली फोन कॉल्स में से 50 फीसदी से अधिक मोबाइल के जरिये आ रही हैं। यानी महिलाएं घरेलू हिंसा से लड़ने में मोबाइल का भरपूर इस्तेमाल कर रही हैं।
बढ़ता आत्मविश्वास और संपर्क
अब जरा कल्पना कीजिए जब मोबाइल फोन्स नहीं थे तो महिलाएं घर से बाहर के कितने लोगों से संपर्क करती होंगी? जाहिर है उनके दायरे में आने वाले लोगों की संख्या नितांत सीमित थी। लेकिन मोबाइल ने समाज में उनकी कनेक्टिविटी बढ़ाई है और इसी बात ने उनमें आत्मविश्वास भी पैदा किया है। अब महिलाएं मोबाइल पर अपने रिश्तेदारों, अपनी महिला मित्रों के अलावा पुरुषों तक से बात करने की अभ्यस्त हो रही हैं। मोबाइल का एक और फायदा यह भी है कि उसका प्रयोग करने के लिए किसी भी तरह के ज्ञान की जरूरत नहीं पड़ती। यानी आप अपनी जुबान में ही सहज भाव से बात कर सकती हैं। आज ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं नेशनल ओल्ड एज पेंशन स्कीम और नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी स्कीम लागू करवाने में मोबाइल का इस्तेमाल कर रही हैं। महिलाओं के पक्ष में एक मनोवैज्ञानिक तथ्य यह भी जाता है कि मोबाइल पर बात करते समय व्यक्ति सामने नहीं होता, इसलिए महिलाएं ज्यादा आत्मविश्वास से बात कर पाती हैं।
छेड़छाड़ रोकने में भी सहायक
राजधानी दिल्ली में ही महिलाओं के साथ होने वाले अपराध निरंतर बढ़ रहे हैं। ऐसे में युवा लड़कियों के पास मोबाइल होना ही मां-बाप को कुछ हद तक निश्चित करता है। रात में वापस घर लौटने वाली लड़कियां पूरे रास्ते मोबाइल के जरिये अपने परिजनों के संपर्क में बनी रहती हैं। किसी भी अनिष्ट की आशंका होते ही वे घरवालों को सूचित कर सकती हैं। कई बार इस तरह की घटनाएं भी देखने में आई हैं, जब कोई मनचला किसी लड़की को छेड़ रहा है और लड़की ने मोबाइल से तुरंत पुलिस बुला ली। समय पर लड़की की मदद हो गई और वह किसी भी बदतमीजी का शिकार होने से बच गई।
अकेलेपन का भी है साथी
छोटे शहरों और महानगरों में कई बार ऐसी स्थितियां आती हैं, जब वृद्ध महिला को अकेले रहना पड़ता है। उनका बेटा बेशक पास के ही किसी अन्य मकान में रह रहा हो, लेकिन मां नितांत अकेली होती है। ऐसे में मोबाइल का ही सहारा होता है। जब तक दिन में बेटे और बहू का एक-दो बार फोन न आ जाए तब तक मां को चैन नहीं पड़ता। बेटा भी इस बात से निश्चिंत रहता है कि उसे बार-बार मां के बारे में चिंता नहीं करनी पड़ती। लिहाजा मोबाइल दोनों के बीच सेतु का काम करता है। यही नहीं, वृद्ध महिलाएं जो अपने दूर रहने वाले परिजनों के पास जा पाने में खुद को असमर्थ पाती हैं, वे फोन के जरिये ही उनसे संपर्क बनाये रखती हैं। यानी कहा जा सकता है कि मोबाइल जिस तरह युवा लड़कियों के अकेलेपन को दूर करता है, उसी तरह वृद्ध महिलाओं का भी अकेलेपन का साथी है।
जाहिर है मोबाइल क्रांति ने देश की इस आधी आबादी को सशक्तिकरण की राह दिखाई है। ऐसे में सरकार की ओर से इस तरह की कोई पहल अवश्य होनी चाहिए, जिसमें महिलाओं को सस्ती कीमतों पर या मुफ्त में मोबाइल फोन्स मिल सकें। मोबाइल कंपनियों को भी इस दिशा में सोचना चाहिए, खासतौर पर तब जब आने वाले समय में मोबाइल कंपनियों का सबसे बड़ा टारगेट महिलाएं ही हैं। अगर ऐसा होता है तो सही अर्थो में मोबाइल क्रांति ग्रामीण महिलाओं तक पहुंच पायेगी और महिलाएं विकास की सड़क पर तेजी से दौड़ पायेंगी।
प्रस्तुति
: सुधांशु

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