Saturday, June 5, 2010

आसमानों को छूने की आशा

लगभग ढाई दशक पहले तक छोटे शहरों और कस्बों में रहने वाली लड़कियों के सपने घर की चारदीवारी से बाहर नहीं जाते थे। उनके सपने अपने घर तक ही सीमित थे। घर से बाहर यदि वे कोई सपना देखती भी थीं तो उनकी उड़ान ‘अच्छे वर और अच्छे घर’ से आगे नहीं जा पाती थी। घर के कामों से फुर्सत मिलने के बाद जब ये लड़कियां कभी खिड़की के पास बैठ कर खुला आसमान देखतीं, तब भी उनके भीतर इस आसमान को छूने का कोई सपना आकार लेता दिखाई नहीं पड़ता था। हालांकि पाश्र्व में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के तमाम प्रयास भी चल रहे थे, लेकिन ये प्रयास भी महज उन्हें साक्षर बनाने तक ही सीमित थे। लेकिन नब्बे में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण ने लड़कियों को पहली बार घर की चौखट लांघने के लिए प्रेरित किया। छोटे शहरों की वे लड़कियां, जो उस समय स्कूलों में पढ़ने जाती थीं, उन्हें पहली बार लगा कि वे अपनी इस पढ़ाई का इस्तेमाल बाहर की दुनिया में भी कर सकती हैं। लेकिन अब भी इन लड़कियों की आंखें उन्मुक्त भाव से सपने देखने की कायल नहीं हुई थीं। इसके बाद 1994 में हैदराबाद और कर्नाटक शहर की दो लड़कियां क्रमश: मिस यूनिवर्स और मिसवर्ल्ड का खिताब जीतती हैं। सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय नामक इन लड़कियों को खूब पैसा और शोहरत मिलती है। इन दोनों को बाकायदा एक खूबसूरत बग्घी में बैठा कर इंडिया गेट पर शानदार जुलूस निकाला जाता है। और संभवत: यही वह मौका था, जब छोटे शहरों में रहने वाली लड़कियों की आंखें सपने देखने लगीं। उस समय छोटी-छोटी उम्र की लड़कियां दर्पण के सामने खड़ी होकर कहा करती थीं कि वे मिस यूनिवर्स और मिसवर्ल्ड बनना चाहती हैं। हो सकता है उस समय ये लड़कियां इनके अर्थ भी न जानती हों, लेकिन उनके अवचेतन में सुष्मिता और ऐश्वर्या की तरह बड़ा बनने के ख्वाब का बीज रोपा जा चुका था। यह अकारण नहीं है कि इसके बाद प्रीति मनकोटिया, मनजीत बरार, युक्ता मुखी, लारा दत्ता, श्रुति शर्मा, नेहा धूपिया, सयाली भगत, तनुश्री दत्ता, सेलिना जेटली, पूजा गुप्ता जैसी न जाने कितनी लड़कियां सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भारत को खिताब दिलाने में कामयाब रहीं। ऐसा नहीं है कि 1994 से पहले भारतीय बालाओं ने इन सौंदर्य प्रतियोंगिताओं में शिरकत नहीं की थी या उन्हें जीता नहीं था। जूही चावला, मीनाक्षी शेषाद्री, मधु सप्रे, परसिस खंबाटा जैसी लड़कियां इन प्रतियोगिताओं को जीत चुकी थीं, लेकिन वह समय शायद इनके प्रचार का नहीं रहा होगा, ताकि दूसरी लड़कियां भी इनसे प्रेरित हो सकें।..तो छोटे शहरों की लड़कियों को सपने दिखाने का श्रेय ऐश्वर्या और सुष्मिता को ही जाता है।
ऐसा नहीं है कि छोटे शहरों की लड़कियों के सपने महज बॉलीवुड तक ही सीमित थे। शिक्षा, संगीत, नृत्य, व्यवसाय, मॉडलिंग, खेल और छोटा परदा छोटे शहरों की इन लड़कियों के बड़ा होने का गवाह बनने के लिए तैयार हो चुके थे। और लड़कियों को पहली बार लग रहा था कि घर के चौखट के बाहर की दुनिया ज्यादा रंगीन और सपनीली है। तो क्यों न इस दुनिया को पाने की कोशिश की जाए। और यह कोशिश कमोबेश हर पेशे में दिखाई दी।
गुजरे दो दशकों में छोटे परदे का जिस तेजी से विस्तार हुआ है, वह किसी को भी चकित कर देने वाला है। और यही परदा है, जिसने छोटी उम्र की लड़कियों, किशोरियों और युवतियों को अपने सपनों को सींचने का एक बड़ा प्लेटफॉर्म मुहैया कराया है। इंडियन आयडल, डांस इंडिया डांस, बूगी वूगी और कई दूसरे रियलिटी शोज ने लड़कियों को एक बड़ा मंच दिया। रांची की अलीशा हो या अगरतला की सुरभि इसी छोटे परदे ने इन्हें डांसर और सिंगर के रूप में एक पहचान दी है। बढ़ते धारावाहिकों ने छोटे शहरों की लड़कियों को अभिनय का भी मौका दिया। पटना की रतन राजपूत का मन पढ़ाई में कभी नहीं लगता था। उनका एकमात्र सपना था अभिनय करना। मेरठ से अपनी पढ़ाई करने के बाद वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए सपनों की राजधानी दिल्ली चली आईं और यहां सचमुच उनके सपने हकीकत में बदलने लगे। रतन को ‘राधा की बेटियां कुछ कर दिखायेंगी’ धारावाहिक में काम करने का मौका मिल गया। वह ‘अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो’ धारावाहिक में भी काम कर रही हैं, लेकिन रतन का सपना है कि वह बड़े परदे पर भी काम करें। रतन ऐसी अकेली लड़की नहीं हैं। प्रतापगढ़ की श्वेता तिवारी, उज्जैन की जूही परमार जैसी न जाने कितनी लड़कियां हैं, जो आज छोटे परदे पर अपने सपनों को बड़ा होता देख रही हैं।
यकीनन, आज छोटे शहरों की लड़कियों के सपने बड़े हैं और वे केवल घर और वर के ही सपने नहीं देख रहीं, बल्कि उनके सपने आर्थिक आजादी हासिल करने, अपने फैसले खुद लेने, अपने अधिकारों के लिए लड़ने और आत्मनिर्भर होने पर केंद्रित हैं। और सच भी है कि जिन देशों में स्त्रियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं, वहां समाज का स्तर और औरतों की जिंदगी में मूलभूत परिवर्तन आ रहा है। चीन, जापान, श्रीलंका, न्यूजीलैंड ऐसे ही मुल्क हैं। यहां की 75 फीसदी से अधिक महिलाएं रोजगार में लगी हैं। भारत में बेशक यह आंकड़ा इतना न हो, लेकिन जा हम भी उसी राह पर रहे हैं, जहां लड़कियों को सपने देखने, उन्हें पूरा करने और आत्मनिर्भर बनने के मौके और सहूलियतें होंगी। और तब छोटे शहरों की लड़कियां खिड़की के पास बैठ कर आसमान के खिड़की तक आने का इंतजार नहीं करेंगी, बल्कि वे बाहर निकल आसमान को अपनी मुट्ठी में भरने की कोशिश करेंगी।
खेलों की दुनिया भी आज छोटे शहरों की लड़कियों के चमत्कारों से गुलजार है। वास्तव में पिछले कुछ वर्षो में खेलों में भी जबरदस्त ग्लैमर आया है और लड़कियों को इसमें अपना शानदार करियर दिखाई देने लगा है। यही वजह है कि छोटे शहरों में पली-बढ़ी इन लड़कियों ने अनेक खेलों के जरिये अपने सपनों में रंग भरे हैं। हिसार में पैदा हुई सायना नेहवाल आज भारतीय बैडमिंटन की पर्याय बन चुकी हैं। बैडमिंटन कोर्ट में उनकी आक्रामकता देखते ही बनती है। सायना आज दुनिया की टॉप टैन बैडमिंटन खिलाड़ियों में हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश के गुडीवाड़ा की रहने वाली कोनेरू हंपी ने शतरंज की बादशाहत हासिल की है। वे दुनिया की नंबर दो महिला शतरंज खिलाड़ी हैं। उधर इम्फाल के बाहरी क्षेत्र कंगाथी की रहने वाली मैरी कॉम ने मुक्केबाजी में बुलंदियां छुई हैं तो हैदराबाद में जन्मी कर्णम मल्लेश्वरी ने कुश्ती में अपना और देश का नाम रोशन किया है।
1992 में मधु सप्रे मिस यूनिवर्स चुनी गयी थीं। उन्हें अपनी बोल्डनेस के लिए जाना जाता था और इसी के चलते वह कई बार विवादों में भी घिरीं, लेकिन छोटी उम्र की लड़कियों को रैंप पर चलने का सपना दिखाने वालों में मधु सप्रे का नाम अहम है। इसके बाद के वर्षो में कमोबेश हर बड़ी होती लड़की के जेहन में एक बार मॉडल बनने का ख्वाब जरूर सतह पर आया। और शायद इसी का परिणाम है कि आज तमाम छोटे शहरों की लड़कियां रैंप के सपने केवल देखती ही नहीं, बल्कि उन्हें पूरा भी कर रही हैं। उत्तर पूर्वी राज्य असम की रहने वाली मोनी कंगना दत्ता, उत्तर पूर्व की ही मौशमी गोगोई, हिसार की दीप्ति भटनागर, राजस्थान की लतिका चौहान आज रैंप पर अपने जलवे बिखेरती देखी जा सकती हैं। इनकी आंखों में पल रहे सुकून को देख कर लगता है कि इन्होंने रैंप चलने का जो सपना देखा था, वह तो पूरा हुआ है, लेकिन अभी इन्हें दूर तक जाना है।
अगर गौर से देखें तो पिछले कुछ वर्षो में बॉलीवुड में अनेक ऐसी अभिनेत्रियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, जो छोटे शहरों से बड़े सपने लेकर मुंबई पहुंची थीं। आज की शीर्ष अभिनेत्रियों में शुमार प्रियंका चोपड़ा जमशेदपुर में पैदा हुईं। उनका बचपन बरेली में बीता। और ये दोनों ही शहर उन्हें ऐसा कोई सपना नहीं दे पाये, जो उन्हें बॉलीवुड की क्वीन बना दे। पहले सन 2000 में प्रियंका मिसवर्ल्ड बनीं और देखते ही देखते वह बॉलीवुड पर छा गयीं। आज प्रियंका एक फिल्म के लिए पांच करोड़ रुपए मांग रही हैं। कंगना रानाउत शिमला के पास ही मंडी से बाहर निकलीं और बॉलीवुड में सफलता की सीढ़ियां चढ़ने लगीं। नीतू चंद्रा ने बिहार से आकर अपनी पहचान बनाई और मल्लिका सहरावत ने हरियाणा के करनाल से हॉलीवुड तक सफर अपने हौसले के दम पर पूरा किया। लारा दत्ता गाजियाबाद की गलियों से निकल कर मिस यूनिवर्स के खिताब तक पहुंचीं। और भी कई ऐसी अभिनेत्रियां हैं, जिन्होंने छोटे शहरों की तंग गलियों और कैद सपनों की दुनिया से बाहर निकल कर अपनी पहचान बनाई। आकाश में दूर तक उड़ने के सपने देखे और उन्हें साकार किया।
छोटे शहरों की लड़कियों ने न केवल सपने देखने शुरू कर दिये हैं, बल्कि वे उन्हें पूरा भी कर रही हैं। यही कारण है कि पिछले दो दशक में कमोबेश हर पेशे में छोटे शहरों की इन लड़कियों को बुलंदियों पर देखा जा सकता है। छोटे शहरों से बाहर निकली ये लड़कियां आज अपनी पहचान और आर्थिक आजादी की लड़ाई लड़ रही हैं।
सुधांशु गुप्त

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