Saturday, June 5, 2010

फंडा 24x7 का

सूरज निकल रहा है़। सूरज डूब रहा है, अक्सर बातचीत में हम इस एक्सप्रेशन का खूब इस्तेमाल करते हैं। लेकिन सच यह है कि सूरज न कहीं से निकलता है और न कहीं डूबता है। सूरज चौबीसों घंटे, सातों दिन अपनी जगह पर रहता है और दुनिया को रोशनी देने का अपना काम करता है और जब हम कहते हैं कि सूरज डूब रहा है तो इसका अर्थ होता है कि सूरज किसी और देश को रोशन कर रहा है। यानी सूरज का काम 24x7 का है। प्रकृति का यही नियम है। डेढ़ दो दशक पहले तक भारतीय समाज में यह नियम कहीं दिखाई नहीं पड़ता था। काम करने का, घूमने-फिरने का, मनोरंजन का, शॉपिंग का और सोने-उठने का एक तय समय था। इंसान अमूमन हर काम इसी तय समय पर किया करता था, लेकिन वक्त की ये पाबंदियां अब नहीं रहीं। अब सब कुछ 24x7 का हो चला है या होने को है। जरा गौर कीजिए, न्यूज चैनल सातों दिन, चौबीसों घंटे आपको समाचारों के साथ-साथ मनोरंजन की डोज भी देते है। एटीएम, केमिस्ट शॉप, पेट्रोल पंप, रेस्तरां, बार, टी स्टॉल, डिपार्टमेंटल स्टोर तथा आपातकालीन सेवाओं के अलावा अन्य सेवाएं भी हैं जो सातों दिन, चौबीसों घंटे उपलब्ध हैं। भारत में हालांकि यह मांग पिछले तीन-चार सालों से लगातार की जा रही है कि मॉल्स को सातों दिन, चौबीसों घंटे खोलने की इजाजत दी जाए। रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आरएआई) भी लगातार यह मांग करती रही है कि मॉल्स को चौबीसों घंटे, सातों दिन खोलने की इजाजत दी जाये। इस मांग के पीछे तर्क यही है कि इससे एक ओर जहां मॉल में शॉप चला रहे दुकानों में मुनाफा बढ़ेगा, वहीं सरकार को भी अधिक रेवेन्यू मिलेगा। यह मांग महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, दिल्ली जैसे राज्यों के लिए की गई है। इस मांग के पीछे एक दूसरा तर्क यह है कि पिछले कुछ वर्षो में भारत में इस तरीके के रोजगार पैदा हुए हैं, जहां लोग देर रात तक काम करते हैं और वे चाहते हैं कि उन्हें मॉल्स में घूमने या खरीदारी करने के अवसर दिया जायें। बेशक यह मांग अभी मानी नहीं गई है, लेकिन इस बात के लिए दबाव लगातार बढम् रहा है और इसी दबाव का परिणाम है कि कुछ राज्यों में मॉल्स सातों दिन खुलने लगे हैं। लेकिन यह मॉल रात 11 बजे के आस-पास बंद हो जाते हैं। फिर भी यह मान कर चलना चाहिए कि आने वाले कुछ वर्षो में मॉल्स में भी चौबीसों घंटे, सातों दिन घूमने-फिरने की व्यवस्था होगी।
लेकिन 24x7 की अवधारणा क्या है और यह कहां से आई? वास्तव में दूसरे विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान यूरोपीय देशों में पहली बार यह महसूस किया गया कि संचार व्यवस्था इतनी विकसित होने के बावजूद लोगों को सूचनाएं इतनी देर से क्यों दी जायें, और क्यों कुछ जरूरी सेवाओं को कुछ घंटों के लिए बंद रखा जाए। इसके बाद से ही उन देशों में कुछ सेवाओं को चौबीसों घंटे, सातों दिन खुला रखा जाने लगा। बाद के दशकों में 24७7 की अवधारणा दूसरे देशों में भी दिखाई पडम्ने लगी। साथ ही इसमें एक बदलाव यह आया कि पहले जहां कुछ जरूरी सेवाओं को ही चौबीसों घंटे, सातों दिन खुला रखा जाता था, वहीं अब मनोरंजन, सूचनायें, शॉपिंग और मार्केट्स को हर समय खुला रखा जाने लगा। सिंगापुर का बहुत लोकप्रिय शॉपिंग मॉल मुस्तफा सेंटर एक ऐसा ही मॉल है, जो चौबीसों घंटे, सातों दिन खुला रहता है और सिंगापुर आने वाले पर्यटक यहां आना पसंद करते हैं।
भारतीय समाज एक परंपरागत समाज रहा है, लेकिन 1990 के आसपास आर्थिक उदारीकरण, वैश्वीकरण, निजी चैनलों, लाइव प्रसारण, मोबाइल क्रांति और इंटरनेट के विस्तार ने इन परंपराओं को तोड़ने में खासी मदद की। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के देश में आगमन ने ड्यूटी ऑवर्स बदले और कॉल सेंटर्स के आगमन ने हजारों लोगों को रात की पाली में नौकरियां देकर इस बात की संभावनायें पैदा कीं कि रात में भी जीवन का चलते रहना जरूरी है। रफ्ता-रफ्ता हम भारतीयों को भी इस बात का अहसास होने लगा कि तमाम तरह की सेवायें यदि रातों को भी उपलब्ध हों तो उनके इस्तेमाल में क्या हर्ज है। पहले 9 या 10 बजे तक दूरदर्शन और रात के 11 बजे तक रेडियो सुन कर सो जाने वाला आम भारतीय रात-रात भर जाग कर फिल्में देखने लगा और एफएम रेडियो पर संगीत सुनने लगा। शहरों में रहने वाले मध्यवर्गीय युवाओं के पास इंटरनेट की मौजूदगी ने उसे यह सहूलियत दी कि वह जब चाहे ऑनलाइन शॉपिंग करे। और इसी बात ने उसे इस बात के अर्थ समझाये कि बाजार कभी बंद नहीं होता। इंटरनेट ने ही युवाओं को (प्रौढ़ों को भी) भी यह सहूलियत दी कि वे चाहे तो रूमानिया या ब्राजील में बैठी किसी लड़की या लड़के से चैट करें। मजेदार बात है कि चैट करते समय ही उसे यह पहली बार यह अहसास हुआ कि बेशक उसके देश में रात हो रही है, लेकिन जिससे वह चैट कर रहा है, वहां सुबह हो रही है। इन तमाम चीजों ने रात और दिन के भेद को खत्म किया। रही-सही कसर मोबाइल पर आने और जाने वाले मैसेज ने पूरी कर दी। मैसेजों के आने और जाने का सिलसिला समय से बंधा नहीं था, इसलिए हमारा मोबाइल चौबीसों घंटे, सातों दिन ऑन रहने लगा।
इस तरह भारत में जो सेवायें चौबीसों घंटे, सातों दिन शुरू हुईं, भारतीय उसका उपयोग करने लगे। 24x7 की यही अवधारणा अब उनकी जीवनशैली में शामिल हो चुकी है और उन्हें यह अहसास होने लगा है कि सचमुच सूरज कभी नहीं डूबता।
सुधांशु गुप्त

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