Wednesday, June 16, 2010

तलाक कानून में संशोधन पर लगी मुहर, आसान हुई अलग होने की राह


कैबिनेट ने पिछले दिनों तलाक के इच्छुक लोगों की राह आसान करते हुए तलाक के लिए पहले से मौजूद नौ आधारों में एक और आधार जोड़ दिया है। लिहाजा अब तलाक चाहने वालों को केवल यह साबित करना होगा कि वे वर्षों से अपने साथी से अलग रह रहे हैं और उनका एक-दूसरे से कोई संबंध नहीं रह गया है। ऐसा भी माना जा रहा है कि अब तलाक मिलने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। कुछ कानूनविदों का यह भी मानना है कि इससे बेशक जबरदस्ती के रिश्तों को ढोना नहीं पड़ेगा और इसका पति-पत्नी दोनों को ही फायदा होगा। सुधांशु गुप्त की रिपोर्ट।
नवीन कोहली और नीलू का विवाह 1975 में हुआ था। विवाह के बाद इनके तीन बच्चे हुए। नवीन तीन फैक्ट्रियों के मालिक हैं। 1994 में नवीन ने कानपुर की फैमिली कोर्ट में नीलू पर मानसिक, शारीरिक, आर्थिक उत्पीड़न के आरोप लगाते हुए तलाक का मामला दर्ज कर दिया। नवीन ने अपनी पत्नी पर खराब व्यवहार, झगड़ालू होने और किसी अन्य पुरुष से उसके रिश्ते होने के भी आरोप लगाये। जाहिर है पत्नी ने इन सब आरोपों का खंडन किया और कमोबेश ऐसे ही आरोप पति पर लगाये। अदालत ने यह महसूस किया कि दोनों के बीच रिश्ते को बचाने की सारी कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं, इसलिए इन दोनों को अलग रहने की इजाजत दे दी जाए। लिहाजा अदालत ने इन दोनों के विवाह को भंग करते हुए नवीन से अदालत में 25 लाख रुपये जमा कराने के लिए कहा। नवीन ने दो दिन में यह राशि जमा करा दी। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। नीलू ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। यह एक ऐसा मामला था, जिसमें दोनों के रिश्ते खत्म हो चुके थे, लेकिन इसके बावजूद एक पक्ष दूसरे को परेशान करने के लिए, तलाक को मंजूर करने के लिए राजी नहीं था। भारत में ऐसे कई मामले होते हैं।
नवीन बनाम नीलू के अलावा जॉर्डन डाइंगडेह बनाम एसएस चोपड़ा और समर घोष बनाम जया घोष जैसे मामलों को आधार बना कर पिछले दिनों कैबिनेट ने 'इर्रिटीवेबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज' यानी संबंधों में ऐसा बिगाड़, जिसमें समझौजे की कोई उम्मीद ना रह गयी हो, पर मुहर लगा दी। इस तरह तलाक के 9 मौजूद आधारों में एक और आधार जुड़ने का रास्ता साफ हो गया। अब तक तलाक के जो 9 आधार हैं, वे हैं: व्याभिचार, क्रूरता, परित्याग, धर्म परविर्तन, पागलपन, कुष्ठरोग, छूत की बीमारी वाले यौन रोग, संन्यास और सात साल से जीवित होने की खबर न होना।
भारत दुनिया के उन देशों में है, जहां आज भी तलाक दर बहुत कम है। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में जहां लगभग 50 फीसदी तलाक होते हैं, वहीं भारत में प्रति 1000 वैवाहिक संबंधों में से महज 11 पति-पत्नी का रिश्ता ही तलाक की परिणति तक पहुंचता है। यानी आज भी भारतीय समाज का दांपत्य में यकीन बना हुआ है। हालांकि भारत में भी तलाक के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। तलाक के इस नये आधार का जोड़ा जाना तलाक की प्रक्रिया को आसान बनाने का ही रास्ता दिखाई देता है।
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता रचना श्रीवास्तव कहती हैं, यह सच है कि कानून में संशोधन होने के बाद तलाक के मुकदमे बढ़ेंगे। खासकर इसलिए भी, क्योंकि उस स्थिति में तलाक महज डेढ़ साल में ही मिल जाएगा। उनका मानना है, लोग थोड़े से मतभेदों और पारिवारिक कटुताओं को ही इस रूप में पेश करेंगे, मानो उनके बीच समझौते की उम्मीद खत्म हो गयी हो। संशोधन से महिलाओं के फायदे पर रचना कहती हैं, इससे केवल इतना होगा कि तलाक के मामले बढ़ सकते हैं और महानगरों की महिलाओं को तलाक के लिए ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ेगा। हां, छोटे शहरों में रहने वाली महिलाओं को इसमें अवश्य दिक्कत हो सकती हैं।
वह बताती हैं, छोटे शहरों में पुरुष यह आसानी से साबित कर सकता है कि उसका अपनी पत्नी से पिछले काफी समय से कोई रिश्ता नहीं है और वे दोनों रिश्ते के उस मोड़ तक पहुंच चुके हैं, जहां से दोबारा संबंध नहीं बनाये जा सकते। ऐसे में पुरुषों को तलाक मिलना ज्यादा आसान हो जाएगा। वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद जैन इस पूरे मसले को अलग नजर से देखते हैं।
उनका मानना है कि बेशक इस संशोधन के बाद तलाक मिलना आसान हो जाएगा, लेकिन तलाक का मामला फाइल करने के बाद उस प्रावधान का क्या होगा, जिसके तहत पति-पत्नी को छह माह तक अलग रहने के लिए कहा जाता है। वह कहते हैं, तलाक कानून में अभी भी बहुत झोल हैं, इसलिए जरूरी है कि तलाक की इस पूरी व्यवस्था पर ही दोबारा से विचार किया जाना चाहिए, ताकि वकील अपने क्लाइंट को साफ-साफ बता सकें कि मामला क्या है और उसमें क्या-क्या संभावनाएं हैं।
इसके बावजूद अधिकांश कानूनविदों ने इस संशोधन का स्वागत ही किया है और महिला संगठन भी इसमें कोई खामी नहीं देख रहे हैं। वुमन पावर कनेक्ट की रंजना कुमारी कहती हैं, इस तरह के संशोधनों का स्वागत किया जाना चाहिए। इससे पति-पत्नी दोनों को ही कोर्ट के बेवजह चक्कर लगाने से मुक्ति मिलेगी। बहरहाल यह तो समय ही बतायेगा कि इस संशोधन का वास्तव में क्या असर पड़ेगा, लेकिन इतना तय लगता है कि इससे तलाक के मामलों वृद्धि अवश्य हो सकती है।
इटली में तलाक मेला
इटली दुनिया के उन शहरों में है, जहां कुछ साल पहले तक तलाक के मामले गिने-चुने ही देखने में आते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों में वहां वैवाहिक संबंधों में काफी बदलाव आए हैं, जिसके परिणामस्वरूप वहां भी अमेरिका और ब्रिटेन की तर्ज पर तलाक के मामले बढ़ रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि इटली में भी अब लगभग एक चौथाई वैवाहिक संबंधों का अंत तलाक के रूप में होता है। इसी के मद्देनजर ही इटली में पिछले दिनों पहले तलाक मेले का आयोजन किया गया। आयोजक फ्रांको जेनेटी कहते हैं, इटली के परंपरागत निवासी तलाक के आदी नहीं रहे हैं, क्योंकि हमारे समाज में तलाक को नकारात्मक माना जाता है। लिहाजा इस मेले के जरिये हमारा मकसद तलाकशुदा लोगों में आत्मविश्वास और नयी ऊर्जा पैदा करना था, ताकि वे पूरे उत्साह से नया जीवन शुरू कर सकें। गौरतलब है कि ऑस्ट्रिया में दो साल पहले लगे तलाक मेले से प्रेरित होकर ही इटली में इस मेले का आयोजन किया गया। इसमें विभिन्न डेटिंग एजेंसियां भी मौजूद रहीं और उन्होंने तलाकशुदा लोगों को नये प्रेम संबंध विकसित करने के लिए अपनी सेवाएं दीं। साथ ही तलाक की पीड़ा से गुजर चुके या गुजर रहे लोगों को मानसिक सुकून देने के लिए स्पा थैरेपी और कला थैरेपी की भी व्यवस्था इस मेले में थी।
धारावाहिक भी बन रहे हैं तलाक की वजह
आज पति-पत्नी के बीच तलाक के कारणों में छोटा परदा भी जुड़ता जा रहा है। कई मामले ऐसे देखने में आए हैं, जिनमें टीवी ज्यादा देखने या पति द्वारा पत्नी को मनपसंद धारावाहिक ना देखने के कारण दोनों को तलाक के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। पिछले दिनों महाराष्ट्र की एक अदालत ने एक पत्नी को धारावाहिक ना देखने देने को उत्पीड़न मानते हुए उसकी तलाक की अपील पर मुहर लगा दी। यह घटना पुणे शहर की है, जहां की स्थानीय अदालत के न्यायाधीश एमजी कुलकर्णी ने कहा कि फरवरी 2005 में पति-पत्नी के बीच झगड़े का कारण पत्नी का हिंदी धारावाहिक देखना था। पति अपनी पत्नी को उसके पसंदीदा धारावाहिक नहीं देखने देता था। इस दंपती की शादी आठ साल पहले हुई थी और पत्नी एकाउंटेंट और पति सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। हालांकि पति ने अदालत के तलाक के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की है और इसकी अगली सुनवाई 23 नवंबर को होनी है।
डेढ़ वर्ष में तलाक की डिक्री होगी हाथ में
यदि सब कुछ ठीक-ठाक चला तो तलाक लेने में अब ज्यादा समय नहीं लगेगा। तलाक के नए आधार ‘रिश्तों में ऐसी टूट, जिसे ठीक करना संभव न हो’ के कानून में शामिल होने के बाद यदि तलाक की अर्जी वापस लेने के छह माह के न्यूनतम इंतजार और एक साल सेपरेशन पीरियड (अलग रहने की अवधि) को मिला दें तो डेढ़ वर्ष में तलाक की डिक्री आपके हाथ में होगी। आइए देखते हैं कि तलाक लेने के लिए कानून की क्या जरूरतें हैं।
तलाक लेने से पूर्व दोनों पार्टियों को हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा-10 के तहत एक साल तक एक दूसरे से अलग रहने के सबूत देने होंगे। उन्हें यह दिखाना होगा कि इस दौरान उनके बीच कोई शरीरिक संबंध नहीं बना है। न्यायालय जब इससे संतुष्ट हो जाएगा तो उन्हें डिक्री आफ सेपरेशन (अलग रहने की डिक्री) दी जाएगी। इस डिक्री के बाद तलाक की अर्जी दाखिल करने की अनुमति दी जाएगी।
यह अर्जी हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13- बी में दिए गए तलाक के आधार पर दायर की जाएगी, जिसमें नया आधार भी शामिल होगा। अर्जी दाखिल होने के बाद कोर्ट छह माह से लेकर अधिकतम 18 माह तक इंतजार करता है और पार्टियों को आपसी सुलह को मौका देता है। यदि इस अवधि में पार्टियां तलाक की अर्जी वापस नहीं लेतीं तो संबद्ध अदालत उचित जांच के बाद तलाक की डिक्री दे देती है। एक साल सेपरेशन, छह माह से डेढ़ साल अर्जी वापस लेने का इंतजार और अदालत की कार्यवाई में लगने वाले कुछ महीनों को मिला लें तो लगभग दो साल में पति-पत्नी एक-दूसरे से मुक्त होकर अपनी जिदंगी जीने लायक बन सकते हैं।

सुधांशु गुप्त

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