Saturday, June 5, 2010

मां दा लाड़ला संवर गया

सोनिया-राहुल गांधीआज सोनिया गांधी देश की ही नहीं, दुनिया की सबसे ताकतवर महिलाओं में से एक मानी जाती हैं। इटली में जन्म लेने और राजीव गांधी से विवाह करने के बावजूद वह एक सादगी का जीवन जी रही थीं। लेकिन पहले उनकी सास इंदिरा गांधी की हत्या और फिर उनके पति राजीव गांधी की हत्या ने समय का चक्र कुछ इस तरह घुमाया कि उन्हें राजनीति में आना पड़ा।
हालांकि उन्होंने एक समय कहा था कि वे राजनीति में आने की बजाय दिल्ली की सड़कों पर भीख मांगना ज्यादा पसंद करेंगी, लेकिन लगभग पांच साल तक पाश्र्व में रहने के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुईं और 1999 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा। राजनीति के सबक बेहद धीमी रफ्तार से सीखने वाली सोनिया गांधी ने 2004 के चुनावों में सारे पांसे उलट दिए और उस वक्त देश का प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया, जब उनकी पार्टी सहयोगी दलों के साथ मिल कर केंद्र में सरकार बनाने जा रही थी। यही वह साल था, जब उन्होंने राहुल गांधी को राजनीति के मंच पर उतारा। हालांकि पूरा देश ये उम्मीद लगाये बैठा था कि सोनिया प्रियंका गांधी को राजनीतिक मंच पर उतारेंगी। राहुल दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद लंदन में एक वित्तीय सलाहकार के रूप में काम कर रहे थे। 2002 में वह दिल्ली लौटे। 2004 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी। हालिया लोकसभा चुनावों में अवाम के बीच राहुल का सिक्का चला और कांग्रेस लगभग अपने बूते पर सरकार बनाने में कामयाब हो गई। जाहिर है राहुल गांधी के राजनीतिक करियर को उनकी मां ही संवार रही हैं और यह भी तय लग रहा है कि कांग्रेस में आने वाला कल राहुल गांधी का ही है।
मेनका गांधी-वरुण गांधीगांधी परिवार की छोटी बहू मेनका गांधी ने भी 1982 में अपने पति संजय गांधी की मृत्यु के बाद राजनीति में कदम रखा। 1988 में जनता दल में शामिल हुईं और 1989 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में केबिनेट मंत्री बनी। पर्यावरणविद् के रूप में जानी जाने वाली मेनका ने हालिया लोकसभा चुनावों में पहली बार अपने बेटे फिरोज वरुण गांधी को राजनीतिक मंच पर उतारा। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डिग्री हासिल करने वाले वरुण गांधी पहली बार लोकसभा में पहुंचे। अपने विवादास्पद बयानों से चर्चित रहने वाले वरुण भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े थे। वरुण को राजनीति में लाने का फैसला भी मेनका गांधी का ही था। वरुण के बारे में भी कहा जा सकता है कि उनके करियर को दिशा देने में मेनका का ही हाथ है।
शर्मिला टैगोर-सैफ अली खानराजनीति के साथ-साथ अगर हम बात करें बॉलीवुड की तो बॉलीवुड में भी ऐसी महिलायें हैं, जिन्होंने अपने बेटों को समाज में अलग पहचान दिलवाई। इस कड़ी में शर्मीला टैगोर का नाम सबसे पहले लिया ज सकता है। 1959 में फिल्म ‘अपूर संसार’ से अपने करियर की शुरुआत की। अमर प्रेम, दाग, सफर, चुपके-चुपके जसी न जने कितनी हिट फिल्में देने वाली शर्मिला टैगोर को 2005 में इंडियन फिल्म सेंसर बोर्ड का अध्यक्ष चुना गया। शर्मिला ने अपनी पहचान के साथ-साथ अपने बेटे सैफ अली खान को भी बॉलीवुड में अभिनय करने की प्रेरणा दी। 1992 में बेखुदी फिल्म से सैफ ने अपने करियर की शुरुआत की। हालांकि सैफ की शुरुआती फिल्में ज्यादा सफल नहीं हुईं, लेकिन आज वह बॉलीवुड के सबसे महंगे कलाकारों में से एक हैं।
शीला दीक्षिथःसंदीप दीक्षितदिल्ली में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने वाली शीला दीक्षित ने अकेले अपने दम पर ही न केवल विरोधियों को ठिकाने लगाया है, बल्कि पार्टी में अपने विरोधियों को भी रफ्ता-रफ्ता हाशिये पर पहुंचाया है। एक बेहद अनुशासित और कामकाजी मुख्यमंत्री की छवि वाली शीला दीक्षित ने 2004 के लोकसभा चुनावों में अपने बेटे संदीप दीक्षित को राजनीतिक मंच पर उतारा। रूरल डेवलपमेंट में पी.जी. करने वाले संदीप दीक्षित की गुजरात के रंगमंच और लोकनृत्यों में भी गहरी रुचि है। वह थियेटर से भी जुड़े रहे हैं। बेहद नफीस और शालीन संदीप ने 2004 में पूर्वी दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजयी हुए। हालिया लोकसभा चुनावों में भी वह पूर्वी दिल्ली से ही विजयी हुए। बेशक संदीप ने गुजरे वर्षो में राजनीतिक मंच पर अपनी एक शालीन छवि बनाई है, लेकिन अगर ध्यान से देखें तो संदीप दीक्षित की इस छवि के पीछे शीला दीक्षित का चेहरा साफ दिखाई पड़ता है। और शायद यही वजह है कि संदीप मजूबत दिखाई पड़ते हैं।
नरगिस- संजय दत्त
फिल्मी दुनिया में नरगिस दत्त का नाम हमेशा सम्मान के साथ लिया जाएगा। अपने अभिनय से परदे पर प्रेम की एक नयी इबारत लिखने वाली नरगिस ने मदर इंडिया, आग, बरसात, मेला, आवारा, रोमियो जूलियट, श्री 420, जगते रहो, चोरी-चोरी जसी हिट फिल्में दीं। सुनील दत्त से विवाह के बाद नरगिस ने अभिनय को अलविदा कह दिया था और वह अपने घर-परिवार को संवारने में लग गई थीं। कहते हैं संजय दत्त से नरगिस को बेपनाह मोहब्बत थी। नरगिस संजय को एक अच्छे अभिनेता के रूप में देखना चाहती थीं, लेकिन संजय की पहली फिल्म रॉकी के रिलीज होने से पहले ही नरगिस का इंतकाल हो गया। बाद में संजय दत्त का फिल्मी करियर बुलंदियों पर पहुंचा। हालांकि उसमें टाडा जैसे मोड़ भी आए, लेकिन संजय ने उससे उबर कर दोबारा अपने लिए एक जगह बनाई। संजय भी नरगिस के बेहद लाड़ले थे और संजय के शुरुआती चेहरे में नर्गिस की झलक दिखलाई पड़ती थी। आज भी संजय दत्त को नरगिस के लाड़ले के रूप में ही जाना जाता है।
नूतन-मोहनीश बहलअभिनय की दुनिया की अभिनेत्री नूतन को कैसे भूला जा सकता है, जिन्होंने1950 में ‘हमारी बेटी’ में बेटी का किरदार निभा कर अपने करियर की शुरुआत की। सामाजिक सरोकारों से जुड़ी सीमा, सुजता, मिलन जैसी हिट फिल्में करने वाली नूतन को हमेशा ही बहुत सजीव अभिनेत्री माना गया। नूतन के सुपुत्र हैं मोहनीश बहल। मोहनीश ने भी मां के नक्शे-कदम पर चलते हुए अभिनय को ही अपने करियर के रूप में चुना। 1984 में ‘पुराना मंदिर’ फिल्म से उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा। कई सफल फिल्में देने के बाद आज मोहनीश की बॉलीवुड में बेशक अपनी पहचान है, लेकिन इस पहचान के पीछे नूतन की मेहनत साफ देखी जा सकती है।
सुधांशु गुप्ता

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