Saturday, June 5, 2010

अब फिल्मकारों को भी न्यूज चाहिए

पिछले दो दशकों में बॉलीवुड में कहानियों का ट्रैंड काफी बदल गया है। अब फिल्मकारों को फिल्म बनाने के लिए रियल हार्ड न्यूज की तलाश रहती है। यही वजह है कि अब वे अपनी फिल्में खबरों के इर्द-गिर्द बुनने लगे हैं। फिर चाहे अमेरिका में हुए 9/11 के हमले हों, मुंबई में 26/11 के हमले या फिर महरौली के एक रेस्तरां में हुई मॉडल जेसिका की हत्या, फिल्मकारों को ये विषय खूब भा रहे हैं। कहानियों को लेकर बॉलीवुड के इस बदलते हुए ट्रैंड पर सुधांशु गुप्त की रिपोर्ट। कल्पनाओं से ज्यादा इंसान को हकीकत चौंकाती है। आप कल्पनाओं के चाहे जितने भी घोड़े दौड़ा लें, लेकिन आपकी कोई भी कल्पना यह नहीं सोच सकती कि ग्लैमर, म्यूजिक और खूबूरत लाइटिंग के बीच रैंप से होते हुए कोई टॉप मॉडल दिल्ली की तंग गलियों में भीख मांगने तक पहुंच सकती है। लेकिन 2007 में जब गीतांजलि नागपाल नाम की एक मॉडल मुंबई में बाकायदा भीख मांगती हुई पाई गयी तो मीडिया के जरिये लोगों ने संभवत: पहली बार फैशन की दुनिया के कड़वे सच देखे। मधुर भंडारकर को भी यह खबर बेहद चौंकाने वाली लगी और उन्हें लगा कि कल्पना से ज्यादा चौंकाने वाली हकीकत होती है। और उन्होंने इस घटना के इर्द-गिर्द ‘फैशन’ नामक फिल्म की कहानी बुनी। यह फिल्म बेहद सफल रही। इसी तरह की घटना का अपराधीकरण उस समय देखने को मिला, जब 1999 में जेसिका नामक एक मॉडल की महरौली के एक रेस्तरां में मनु शर्मा ने गोली मार कर हत्या कर दी। उस समय रेस्तरां में काफी संख्या में लोग मौजूद थे। मनु शर्मा के गोली मारने से पहले जेसिका ने उससे कहा था, मैं तुम्हें एक सिप भी नहीं दूंगी, चाहे तुम मुझे इसके बदले हजारों रुपये भी क्यों ना दो। इस बात को रईसजादे मनु ने अपनी तौहीन समझा और जेसिका को गोली मार दी। अब इस घटना पर भी ‘नो वन किल्ड जेसिका’ नाम से फिल्म बन रही है। इसमें विद्या बालन और रानी मुखर्जी काम कर रहे हैं और इसकी शूटिंग दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में चल रही है। जाहिर है जेसिका को इस तरह सरेआम गोली मार देना अखबारों के लिए एक बड़ी खबर थी।
पिछले दिनों पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को फांसी की सजा सुनाए जाने का मामला भी अखबारों की सुर्खियों में छाया रहा। इसकी एक वजह यह थी कि कसाब को आतंकवादियों के साथ मुंबई के ताज होटल में आतंकवादी हमले का दोषी पाया गया था। इस हमले में कम से 173 लोग मारे गये और 308 घायल हुए। जब आमजन इस बात में बहुत अधिक रुचि ले रहा था कि कसाब को फांसी होती है या नहीं तो स्वाभाविक रूप से वह कसाब को फांसी पर लटकते देखना चाह रहा था। वह फांसी पर लटकाया जाएगा या नहीं, यह अभी भी प्रश्न बना हुआ है। लेकिन निर्देशक एसपी मुनिश्वर और निर्माता हरिओम शर्मा ने आने वाली अपनी फिल्म ‘अशोक चक्र’ में कसाब को बाकायदा फांसी पर लटका दिया है। इस फिल्म में मारे गये अधिकारी अशोक काम्टे, हेमंत करकरे और तुकाराम के किरदार भी दर्शकों को देखने को मिलेंगे, जो लोगों की जान बचाते हुए शहीद हो गये थे यानी मुंबई के 26/11 ने फिल्मकारों को बाकायदा एक विषय दिया। यह अकारण नहीं था कि हमले के दो दिन बाद फिल्मकार रामगोपाल वर्मा अभिनेता रितेश देशमुख के साथ घटनास्थल का मुआयना करने पहुंचे थे। जाहिर है उनके जेहन में भी इस पर फिल्म बनाने का विचार आया होगा।
मुंबई के 26/11 से भी बड़ा आतंकवादी हमला था 9/11 का। 9 सितंबर 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पैंटागन पर जिस तरह से आतंकवादी हमले को अंजाम दिया गया था, उसने पूरी दुनिया को चौंका दिया था। यह आतंकवाद का ऐसा यथार्थ था, जो किसी भी कल्पनाशीलता को मात देने के लिए पर्याप्त था। शायद यही वजह है कि 9/11 की पृष्ठभूमि में अनेक फिल्में बॉलीवुड में बनीं। शाहरुख खान की ‘माई नेम इज खान’, नील नितिन मुकेश और जॉन अब्राहम की ‘न्यूयॉर्क’, पाकिस्तानी निर्देशक शोएब मंसूर की ‘खुदा के लिए’ कुछ ऐसी ही फिल्में हैं। इसी विषय पर बनी निर्देशक नसीरुद्दीन शाह की ‘यूं होता तो क्या होता’ एकदम अलग मिजाज की फिल्म थी। इस फिल्म में अलग जगहों से कुछ लोग न्यूयॉर्क जाने के लिए तैयार होते हैं। उन्हें पता चलता है कि न्यूयॉर्क में आतंकवादी हमला हो गया है। कमर्शियली यह फिल्म बेशक चली नहीं, लेकिन आतंकवाद के असर पर बनी यह बेहद शानदार फिल्म थी। 9/11 के हमलों से हॉलीवुड भी अछूता नहीं रहा। फॉरेनहाइट 9/11, इनसाइड 9/11, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, यूनाइटेड 93, रीन ओवर मी जैसी कई फिल्में वहां बनीं। भारत क्योंकि एक लंबे समय से आतंकवाद झेल रहा है, इसलिए अक्सर यहां यह फिल्मों का प्रिय विषय रहा है। सरफरोश, रोजा, बॉम्बे, दिल से, पंजाब के आतंकवाद पर माचिस, 1992-93 के दंगों पर फिजा, मिशन कश्मीर, 1993 के सीरियल बम बलास्ट पर ब्लैक फ्राइडे के अलावा भी कई फिल्में बनीं। ‘कुर्बान’ फिल्म में लंदन के ट्रेन हमलों को आधार बनाया गया। ‘ए वेनस्डे’ मुंबई में आम आदमी किस तरह आतंकवाद से प्रभावित हो रहा है, इसी आधार पर बनाई गयी थी। ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड केवल आतंकवाद को ही बेस बना कर फिल्में बना रहा है। वह रियल लाइफ किरदारों से प्रभावित होकर भी फिल्मों का निर्माण कर रहा है, खासकर इसलिए क्योंकि उसे लगने लगा कि काल्पनिक किरदार आम से खुद को कनेक्ट नहीं कर पाते। उसकी इस सोच में भी कहीं ना कहीं यह तत्व समाहित रहता है कि रियल लाइफ में जिस तरह के किरदार मिलते हैं, वे काल्पनिक किरदारों से अधिक चौंकाते हैं। प्रकाश झा की ‘राजनीति’ के बारे में भी कहा जा रहा है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के चरित्र से प्रभावित है। संभव है ऐसा ना भी हो, लेकिन यदि इस प्रचार से फिल्म को फायदा होता है तो यह बात भी साबित करती है कि रियल लाइफ किरदार और घटनाएं दर्शकों को ज्यादा चौंकाती हैं। लोग अभी आरुषि तलवार हत्याकांड को भूले नहीं होंगे। दो साल पहले नोएडा में 15 साल की आरुषि की संदिग्ध परिस्थितियों में हत्या कर दी गयी थी, लेकिन उसके हत्यारों का आज तक पता नहीं चला है। फिल्मकार इस पर भी फिल्म बनाना चाहते थे, लेकिन आरुषि के परिजनों ने इससे इंकार कर दिया। बहरहाल यह तय है कि आज के दौर का फिल्मकार केवल कल्पनालोक में ही नहीं रहना चाहता। वह समाज में आए दिन होने वाली घटनाओं से भी बावस्ता है और वह इन्हीं घटनाओं को अपनी फिल्मों का विषय बनाना चाहता है, क्योंकि वह जान गया है कि कल्पना से ज्यादा रियलिटी इंसान को चौंकाती है और चौंकाने वाले तत्वों की खोज हमारे फिल्मकारों को हमेशा रहती है।
सुधांशु गुप्त

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