Saturday, June 5, 2010

वेलकम विंटर, थोड़ा सा रूमानी हो जाएं

उत्सवधर्मिता भारतीय समाज के मूल में है। पूरे साल ही हम उत्सव मनाते रहते हैं और शायद यही उत्सवधर्मिता है, जो हमारे भीतर की जिजीविषा को बचाये रखती है। यह अकारण नहीं है कि भारत में जितने उत्सव मनाये जाते हैं, उतने संभवत: किसी और देश में नहीं मनाये जाते। इसकी एक मूल वजह यह भी है कि यहां विभिन्न धर्म और संप्रदाय के लोग रहते हैं। और वश्वीकरण ने भी जहां लोगों को दूसरे धर्मो के त्योहार मनाने के लिए प्रेरित किया है, वहीं कुछ ऐसे त्योहार भी हमारी सूची में शामिल हो गये हैं, जो अब से पहले पश्चिमी समाज द्वारा ही मनाये जाते थे। इन त्योहारों में क्रिसमस, न्यू ईयर्स ईव, वेलेंटाइन डे जसे त्योहार हैं, जिन्हें अब हम भी पूरी शिद्दत से मनाने लगे हैं। लेकिन इतने त्योहारों के बावजूद दीवाली का अपना महत्व है। कई अर्थो में दीवाली हमारी उत्सवधर्मिता की पराकाष्ठा है। और दिवाली के कुछ दिन बाद तक हम थके-थके से रहते हैं। लेकिन दीवाली सर्दियों की दस्तक भी है। दीवाली गुजरते ही फिजं में गुनगुनी सर्दी का अहसास होने लगता है। इसके चलते ही थकान छूमंतर हो जती है और मन में उल्लास, उमंग और उत्साह का नया संचार होने लगता है। वास्तव में ये सर्दियां ही हैं, जो आपके भीतर की उत्सवधर्मिता को वेलेंटाइन डे तक जिलाये रखती हैं। और यूं देखा जाए तो यह सर्दियों का मौसम रूमानियत, शादियों, सजने-संवरने, खाने-पीने और पहनने का मौसम है।
प्रेम और रोमांस का मौसममनोवज्ञानिक भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि सर्दियां शुरू होते ही मन में प्रेम की कोंपलें फूटने लगती हैं। यही वजह है कि सर्दियों के मौसम को रूमानियत का मौसम माना जाता है। ढेरों शायरों ने इस मौसम को प्रेम के मौसम के रूप में चित्रित किया है। आज की युवा पीढ़ी भी इस मौसम को एंज्वॉय करने में किसी तरह की कोताही नहीं बरतती। यही कारण है कि लड़के-लड़कियों के ग्रुप बाग-बागीचों में, मॉल्स में, रेस्तराओं में, सड़कों पर, ऐतिहासिक स्थलों पर प्रेम प्रदर्शन करते देखे ज सकते हैं। 24 वर्षीया एमबीए की छात्रा नेहा रावत कहती हैं, यूं तो हमारे लिए हर मौसम ही प्यार का मौसम होता है, लेकिन सर्दियों में प्रेम करने का अपना ही मजा है। केवल प्रेम करने का ही नहीं, साथ घूमना, फिरना, फिल्में देखना और तफरीह करना इस मौसम में किसे अच्छा नहीं लगेगा?
सजने-संवारने का मौसमयूं तो सजना-संवरना महिलाओं को (अब तो पुरुषों को भी) हर मौसम में अच्छा लगता है, लेकिन गर्मियों में पसीने के कारण महिलाओं का मेकअप अक्सर बेकार हो जता है। शायद इसीलिए बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि सजने-संवरने का असली मज सर्दियों में ही आता है। शायद यह मौसम का ही असर होता है कि सर्दियों में महिलाएं घर से बाहर निकलना ज्यादा पसंद करती हैं। मामला चाहे पार्टियों में जाने का हो, शॉपिंग पर जने का या फिर किटी पार्टी का, महिलाओं को यह पसंद आता है। वे सर्दियों के बहाने अपने भीतर की रूमानियत को भी जिलाये रखती हैं और मौसम का मजा भी लेती हैं। यही नहीं, कहते हैं कि सर्दियों में इनसान को भूख भी खूब लगती है और उसे भारी खाना भी आसानी से पच जाता है। इसलिए लोग सर्दियों में खान-पान को लेकर थोड़े से लापरवाह हो जाते हैं। जहिर है जब घूमना-फिरना होगा और अच्छा खान-पान होगा तो आपका स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। यानी सर्दियों का मौसम सेहत का मौसम भी है।
सौम्यता और सुलह का मौसमइस बात के कोई पुख्ता आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं कि गर्मियों में स्थानीय स्तर पर लोगों के झगड़े ज्यादा होते हैं या सर्दियों में। पर इतना निश्चित तौर पर कहा ज सकता है कि सर्दियों में व्यक्ित का स्वभाव थोड़ा शांत रहता है। इस मौसम में वह अमूमन उन बातों पर भी झगड़ा नहीं करता, जिन पर उसे झगड़ा कर लेना चाहिए। मनोवज्ञानिकों का तर्क है कि सर्दियों के मौसम में खीझ, बेचैनी नहीं होती, इसलिए व्यक्ति को जल्दी गुस्सा नहीं आता और लड़ाई होने की स्थितियां टल जती हैं। तो सर्दियों का मौसम इनसानी व्यवहार को भी नियंत्रित करता है।
सफर का मौसमसर्दियों का मौसम सफर का मौसम भी है। यकीनन सर्दियों के मौसम में घूमने का मज दोगुना हो जाता है। यही वजह है कि भारत में सर्दियों के मौसम में आने वाले पर्यटक कहीं ज्यादा होते हैं। इस मौसम में आपको न तो थकान का एहसास होता है और न ही पहाड़ों पर चढ़ने में खीझ का अनुभव होता है। यही वजह है कि लोग इस मौसम में पहाड़ों और हिल स्टेशनों की सैर करना चाहते हैं। सचमुच प्रकृति से साक्षात्कार का मौसम है सर्दियां।
बाजार को भाती सर्दियांबाजरों के भाव भी सर्दियों में चढ़ने लगते हैं। वे लोग जो गर्मियों में शॉपिंग करने से घबराते हैं, इस मौसम में घरों से बाहर निकलने लगते हैं। यही वजह है कि सर्दियों में बाजरों में ज्यादा भीड़ देखने को मिलती हैं। तो कहा जा सकता है कि ये सर्दियां ही हैं, जो हमारे भीतर की उत्सवधर्मिता को लगातार जिलाये रखती हैं।
सुधांशु गुप्त

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