Sunday, June 6, 2010

एडवेंचर: स्क्रीन से जिंदगी तक


12वीं क्लास में पढ़ने वाला सुमित बड़े गर्व से बताता है कि वह बहुत ज्यादा एडवेंचरस है। क्यों? इसके जवाब में वह कहता है कि उसे छोटे परदे पर खतरों के खिलाड़ी, डिस्कवरी, नेशनल ज्योग्राफिक चैनल, एनिमल प्लेनेट के एडवेंचर से जुड़े प्रोग्राम देखना बहुत अच्छा लगता है। इसके अलावा वह कई बार ट्रैकिंग पर भी ज चुका है। सुमित द्वारा कही गई यह बात वास्तव में भारतीय समाज के एडवेंचरस होने की ओर इशारा करती है। आमतौर पर बातचीत में हम सभी लोग एडवेंचर के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं। हम कहते हैं कि एडवेंचरस होना बहुत अच्छी बात है। इस बात के पक्ष में हम उन लोगों के नाम गिनवाना भी नहीं भूलते, जो ट्रैकिंग, पैराग्लाइडिंग, स्काईडाइविंग, बेसजंपिंग, सर्फिग और माउंटेनियरिंग में अव्वल आते है। कोई शक नहीं कि एडवेंचरस होना वास्तव में बहादुर होना होता है। इसीलिए लोग खुद को एडवेंचरस कहने का कोई मौका हाथ से जाने देना नहीं चाहते।
एडवेंचर है क्या? एडवेंचर यानी रोमांच का सीधा-सा अर्थ है, जब आप रुटीन लाइफ को तोड़कर कोई अलग काम करते हैं। मजेदार बात है कि एडवेंचर के बारे में हर आदमी का अपना अलग नजरिया है। मुंबई में रहने वाले दिलीप कुमार का कहना है कि मैं मूल रूप से मुंबई का नहीं हूं, लेकिन मुझे लगता है कि मुंबई की लोकल ट्रेनों में सफर करना किसी एडवेंचर से कम नहीं है। कमोबेश इसी तर्ज पर महानगर दिल्ली का युवा सोचता है। उसका कहना है कि यहां ब्लू लाइन और डीटीसी की बसों में सफर करना किसी एडवेंचर से कम नहीं है। लेकिन इन तमाम चीजों को तो एडवेंचर नहीं कहा जा सकता। सच तो यही है कि एडवेंचरस लाइफ के तमाम ढंग हैं, जिनकी लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
जिन लोगों के पास वास्तविक एडवेंचर की सुविधाएं नहीं हैं, वे मोबाइल, कंप्यूटर या वीडियो गेम का सहारा लेते हैं, अन्यथा टीवी पर ‘खतरों के खिलाड़ी’, ‘इस जंगल से मुङो बचाओ’ जसे कार्यक्रमों से चिपके रहते हैं। भारत में टेलीविजन और कंप्यूटर के प्रचार-प्रसार से जीवनशैली में एडवेंचर को खास स्थान मिलने लगा है। मोबाइल ने तो इस मामले में क्रांति ही ला दी है। इन सभी माध्यमों से लोगों को खेलों के माध्यम से ही सही, कुछ ऐसा करने का मौका मिलता है, जो एडवेंचर में उनकी रुचि का परिचायक है। यदि कंप्यूटर, मोबाइल आदि पर गेम्स की बात करें तो नि:संदेह सबसे अधिक लोकप्रियता एक्शन गेम्स की ही है। क्या बच्चे, क्या बड़े, सभी इसके दीवाने हैं। यों अगर देखा जाए तो जिस देश में एक-तिहाई आबादी गरीब और आधी आबादी निरक्षर है, उनके लिए वास्तविक रूप से एडवेंचरस होना आसान नहीं था। लेकिन वैश्वीकरण, उदारीकरण और तकनोलॉजी के विकास ने स्क्रीन पर भी इंसान को एडवेंचरस बनाया है।
भारत में रहने वाले कुल 22 करोड़ बच्चों (5 से 16) में से 7 करोड़ 70 लाख बच्चे स्कूल जाते हैं। लेकिन टाइमपास करने का इनका पसंदीदा तरीका टीवी देखना या वीडियो गेम्स खेलना है। आंकड़े बताते हैं कि पांच से सोलह वर्ष की उम्र के बच्चे तीन से चार घंटे प्रतिदिन टीवी देखते हैं। ऐसे किशोरों की संख्या भी अब लगातार बढ़ रही है, जो कम्प्यूटर और मोबाइल की स्क्रीन पर रोमांच का भरपूर मज लेते हैं। महानगरों में नौकरीपेशा लोग भी ऐसे ऑनलाइन गेम्स के माध्यम से खुद को तरोताज करते हैं। इसके अलावा एडवेंचरस फिल्में तो हैं ही। तात्पर्य यह कि गैजेट्स ने इंसानों को खेल-खेल में एडवेंचर का लुत्फ लेने के भरपूर मौके दिए हैं।
तो क्या वास्तविक एडवेंचर में लोगों की दिलचस्पी कम है? नहीं, ऐसा नहीं है। यह सच है कि चाहे ट्रैकिंग हो, पैराग्लाइडिंग या सर्फिग हो, या फिर कोई अन्य ही एडवेंचरस गेम क्यों न हो, इसके मौके सबको नहीं मिलते, क्योंकि हर जगह ये उपलब्ध नहीं हैं। फिर भी जो ऐसे गेम, ऐसी जिंदगी पसंद करते हैं, वे ऐसे माहौल को तलाश ही लेते हैं। एडवेंचर के किस्सों से इतिहास भरा पड़ा है, पर उनका अनुकरण करना न तो आसान है और न ही आम आदमी को इसकी जरूरत है। इस संदर्भ में लंदन के एक छात्र का उदाहरण देना अप्रासंगिक नहीं होगा। 30 वर्षीय यह छात्र लंदन में किसी विषय में पढ़ाई कर रहा था। एक रोज उसने चिड़ियाघर में फरडिलॉन नामक एक सांप देखा। वह उस सांप से बेहद प्रभावित हुआ। उसने पता किया तो पता चला कि फरडिलॉन दक्षिणी अमेरिका के बैलीज देश में पाया जाता है। उसने फरडिलॉन पर रिसर्च करने के लिए लंदन का अपना मकान बेचा और बैलीज चला गया। पर ऐसा एडवेंचर भला सबके लिए कैसे संभव हो सकता है।
सच तो यह है कि यहां एडवेंचर का अर्थ गेम, आनंद या फिर किसी सामाजिक सरोकार से है, जिसके तहत कुछ ऐसा किया जए, जिसमें मज आए और साथ ही आपका साहस भी उसमें नजर आए। इस दृष्टिकोण से देखा जए तो लोग वास्तव में एडवेंचरस होने लगे हैं। ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो कार से ही कन्याकुमारी से कश्मीर घूमने का दम रखते हैं या ठंड के दिनों में भी कश्मीर जने का हौसला रखते हैं। और ऐसे कार्यक्रम हर साल उनकी जीवनशली का हिस्सा बनते हैं। एडवेंचरस गेम्स के लिए बनी विभिन्न संस्थाएं भी इस मामले में लोगों की बेहद मददगार साबित हो रही हैं।

सुधांशु गुप्त

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