लगभग एक डेढ़ दशक पहले के उस परिदृश्य को याद कीजिए, जिसमें लड़के वाले लड़की देखने आया करते थे। लड़की बेचारी चाय-नाश्ते की प्लेट लेकर डरी-सहमी सी कमरे में आती थी और उसे भावी पति और उसके साथ आए मेहमानों के तमाम सवालों (जिसमें से कुछ खासे अपमानजनक भी होते थे) से गुजरना पड़ता था। लड़की और लड़की के घरवाले अपनी अच्छी परफॉरमेंस के बावजूद इस बात से भयभीत रहते थे कि कहीं लड़के वाला इंकार न कर दे। छोटे शहरों और कस्बों में यह दृश्य आज भी घर-घर में देखा जा सकता है। अब जरा इस दृश्य को रिवर्स करके देखिए। क्या आपको अपने आसपास कोई ऐसा दृश्य दिखाई पड़ता है, जिसमें लड़की लड़के को देखने आई हो और सवालों के कटघरे में खुद लड़का हो? हम सब जानते हैं कि वास्तव में ऐसा होना फिलहाल संभव नहीं है। लेकिन छोटे पर्दे पर बिंदास राखी सावंत ने इस दृश्य को हाल ही में अमलीजामा पहनाया। एनडीटीवी इमेजिन के लोकप्रिय धारावाहिक ‘राखी का स्वयंवर’ में राखी ने अपना वर चुनने के लिए बाकायदा स्वयंवर का आयोजन किया। इसमें राखी का वर बनने के लिए सोलह प्रत्याशी आए और उन्होंने राखी को प्रभावित करने के लिए वह सब कुछ किया, जो राखी चाहती थी। एक सवाल यह उठता है कि यह धारावाहिक इतना लोकप्रिय क्यों हुआ और इस धारावाहिक की वह कौन-सी चीज थी, जिसने आम दर्शकों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया? गौरतलब है कि टीवी देखने वालों में सबसे अधिक संख्या महिलाओं की ही होती है। तो क्या महिलाएं (और लड़कियां भी) छोटे पर्दे पर ही सही, अपने अवचेतन में बने उस दृश्य को साकार होते देख रही थीं, जिसके अनुसार कभी उन्हें भी अपना वर चुनने की उसी तरह आजादी होगी, जिस तरह राखी को मिली। कंप्यूटर साइंस की छात्र बीस वर्षीया अपूर्वा कहती हैं,‘रील लाइफ में ही सही, लेकिन यह देख कर अच्छा लगा कि राखी ने वर चुनने के लिए मिली आजादी का भरपूर इस्तेमाल किया। मैं चाहती हूं कि रील लाइफ के सच को लड़कियां रियल लाइफ में भी उतारें।’
भारतीय समाज में स्वयंवर की एक पुरानी परंपरा रही है। स्वयंवर संस्कृत के स्वयं और वर शब्दों से मिल कर बना है, जिसका अर्थ होता है खुद अपना वर चुनना। प्राचीन समय में बड़े-बड़े राजा-महाराजा अपनी बेटियों के लिए बड़े भव्य स्तर पर स्वयंवर का आयोजन किया करते थे। इसमें आसपास और दूर-दराज के सभी ताकतवर राजकुमारों को बाकायदा आमंत्रण भेजा जाता था। जो राजकुमार स्वयंवर की शर्तो पर खरा उतरता था, उसका विवाह राजकुमारी से हो जाता था। रामायण में राजा जनक ने अपनी बेटी सीता के लिए और महाभारत में महाराजा ध्रुपद ने अपनी बेटी द्रौपदी के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था। शिव का धनुष तोड़ कर भगवान राम सीतापति बने और मछली की आंख में निशाना लगा कर अजरुन ने द्रौपदी को पाया। इसके अलावा नल-दमयंती और पृथ्वीराज-संयोगिता भी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्वयंवरों के पात्र हैं, लेकिन इन ऐतिहासिक और पौराणिक स्वयंवरों में वर चुनने की लड़की की आजादी के मुकाबले स्वयंवर कराने वाले की प्रतिष्ठा और ताकत का प्रदर्शन ज्यादा दिखाई पड़ता है। जरा सोचिए कि सीता के स्वयंवर में यदि रावण को शिव का धनुष तोड़ने का अवसर मिल जाता तो क्या सीता को रावण से विवाह नहीं करना पड़ता?
सवाल परंपरागत तरीके से स्वयंवर रचाने का नहीं है। सवाल इस बात का है कि लड़कियों को अपना वर चुनने की कितनी आजादी हम दे रहे हैं और कितनी आजादी लड़कियों को चाहिए? प्रशासनिक सेवा में जाने की इच्छुक 24 वर्षीया सीमा का कहना है, ‘देश को आजादी मिले 62 साल हो चुके हैं, लेकिन विडंबना यह है कि देश की आधी आबादी अब भी आजादी से वंचित है। अपना वर चुनना तो दूर की बात है, लड़कियों को अपने से ही जुड़े छोटे-छोटे फैसले लेने का भी अधिकार नहीं है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि यह एक ऐसे देश में होता है, जिस देश की राष्ट्रपति तक महिला है।’ कमोबेश सीमा के ही तर्क से इत्तेफाक रखती हैं डॉ. नुसरत। उनका कहना है, ‘अगर सही अर्थो में देखा जाए तो आजादी केवल पुरुषों को ही है। बेशक बाहर से ऐसा लगता हो कि महिलाएं आजाद हो रही हैं, लेकिन सच इससे एकदम उलट है। बड़े शहरों तक में लड़कियों को अपना जीवनसाथी चुनने की आजादी नहीं है।’
लड़कियों को अपना वर चुनने की आजादी मिल रही है या नहीं, यह बहस तलब हो सकता है, लेकिन यह कतई बहस तलब नहीं है कि आज लड़कियां अपने लिए हर तरह की आजादी की हिमायती हैं-स्वयंवर की भी। शायद यह भी एक वजह है कि वे राखी के स्वयंवर में भी अपनी ही विजय देखती हैं। पच्चीस वर्षीय एमबीए की छात्र मीनाक्षी का कहना है, ‘राखी सावंत ने जो कदम उठाया है, उसने स्त्री जाति के मन में एक नई प्रेरणा पैदा की है। अब लड़कियां चाहती हैं कि वे खुद अपना वर बिना किसी डर के चुनें।’ 28 वर्षीय सुधा सिंह पेशे से अध्यापिका हैं। वह लड़कियों के वर चुनने की आजादी को एकदम अलग अंदाज में देखती हैं। उनका कहना है, ‘जब आप समलैंगिकों तक को विवाह करने की आजादी दे रहे हैं तो लड़कियों को अपना वर चुनने की आजादी क्यों नहीं मिलनी चाहिए। निश्चित रूप से मिलनी चाहिए। और राखी का स्वयंवर प्रतीकात्मक अर्थो में ही सही, यह आजादी देता दिखाई पड़ता है। ’
सुधांशु गुप्त
Saturday, June 5, 2010
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