Saturday, June 5, 2010
सुरक्षा, सशक्तिकरण और महिलाएं
‘एक महिला के साथ गैंग रेप..शादी के लिए मना करने पर लड़की के चेहरे पर तेजाब फेंका..महिला की चाकू घोंप कर हत्या..दिनदहाड़े महिला का अपहरण करने की कोशिश..’ अखबारों में छाई रहने वाली ये खबरें अब आम खबरें बन चुकी हैं। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता होगा, जब महिलाओं के साथ होने वाली बदसलूकियों की खबरें न छपती हों। अकारण नहीं है कि महिलाओं के साथ होने वाले इन अत्याचारों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है-बावजूद इसके कि सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर इन्हें रोकने के तमाम प्रयास किये जा रहे हैं।
महिला सशक्तिकरण के तमाम दावों के बीच आंकड़े बताते हैं कि सन 2008 में महिलाओं के साथ होने वाले 1,75, 200 मामले दर्ज किये गये थे। यानी देश में तीन मिनट से भी कम समय में कहीं न कहीं महिलाओं के साथ इस तरह के अपराध हो रहे हैं। ऐसा नहीं है कि पहले इन अपराधों को रोकने का कोई प्रयास नहीं हुआ। 1983 में दिल्ली पुलिस के प्रयासों से ‘क्राइम अंगेंस्ट वुमन सेल’का गठन किया गया था। इस पूरे प्रयास के पीछे तत्कालीन वरिष्ठ पुलिक अधिकारी कंवलजीत देओल थीं। इस सेल में महिलाओं को अपनी ही सुरक्षा के लिए विशेष प्रशिक्षण देने की भी व्यवस्था की गई थी। लेकिन इसके बावजूद महिलाओं के साथ होने वाले अपराध कम नहीं हुए। बल्कि उनका आंकड़ा लगातार बढ़ता रहा। तो क्या किया जाए? इसी सवाल का जवाब देने की कोशिश की विजन ग्रुप के चेयरमैन सुनील दुग्गल ने। उन्होंने ‘महिला सदा सुरक्षित’ नाम से एक पुस्तक लिखी और इसमें महिलाओं को सुरक्षित रहने के जरूरी टिप्स दिये। उन्होंने पुस्तक में यह बताने की कोशिश की कि किस तरह महिलाएं कुछ छोटी-छोटी बातों को जान और सीख कर अपनी सुरक्षा अपने आप कर सकती हैं। लेकिन सुनील दुग्गल का मन इसके बावजूद महिलाओं को सुरक्षित बनाने के लिए कुछ ठोस करना चाहता था। और उनकी इसी चाहत ने ‘सेफ वुमन फाउंडेशन’ नामक एक संगठन को जन्म दिया। इस प्रक्रिया में उन्होंने अपने साथ भारत होटल्स को भी जोड़ लिया। इस संगठन की गवर्निग बॉडी में भारत होटल्स की ज्योत्सना सूरी, ब्यूटीशियन वंदना लूथरा, पत्रकार बरखा दत्त और डीपीएस आरकेपुरम की पूर्व प्रिंसिपल डॉ. श्यामा चोना जैसी शख्सियतों को जोड़ा गया। इस संगठन की जरूरत क्यों पड़ी, इसके जवाब में एस. डब्ल्यू. एफ. की महासचिव सुरुचि दुग्गल कहती हैं, ‘हम काफी समय से यह देख और महसूस कर रहे थे कि लड़कियों के साथ होने वाले अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में हम चाहते थे कि लड़कियों के पास अपनी सुरक्षा करने के कुछ कारगर तरीके हों। साथ ही हम यह भी चाहते थे कि लड़कियों को इस तरह के टिप्स शुरुआती उम्र में ही दे दिये जाएं। हमारा मकसद लड़कियों को पूरी तरह से सुरक्षित बनाना है।’ वहीं डॉ. श्यामा चोना कहती हैं कि इस संगठन के जरिये हम लड़कियों के मन में बैठे सदियों के उस डर को दूर करना चाहते हैं कि वे कमजोर हैं, अबला हैं और अपनी सुरक्षा खुद नहीं कर सकतीं।
लेकिन यह सब कैसे होगा? इसके जवाब में सुरुचि दुग्गल का कहना है कि हम स्कूली स्तर पर ही लड़कियों को कुछ जरूरी टिप्स देना चाहते हैं कि किस संकट की स्थिति में उन्हें क्या करना चाहिए। इसके लिए हम स्कूलों में वर्कशॉप आयोजित करेंगे। ये वर्कशॉप्स नवीं से बड़ी क्लासेस के लिए होंगी। इसके बाद हम कॉलेज और कॉरपोरेट जगत में भी इस तरह की वर्कशॉप्स लगायेंगे, ताकि लड़कियों को यह समझया जा सके कि देर रात घर लौटते समय, सुनसान सड़क पर चलते समय या ऐसी ही अन्य किसी स्थिति में उन्हें क्या करना चाहिए? स्कूलों, कॉलेजों में वर्कशॉप लगाने के अलावा एसडब्ल्यूएफ के लोग देश के शिक्षा मंत्रालय से भी लगातार बातचीत कर रहे हैं, ताकि खुद को सुरक्षित रखने के जरूरी टिप्स करिकुलम में शामिल किये जा सकें। यदि ऐसा हो जाता है तो लड़कियां किशोरावस्था में ही यह सीख जाएंगी कि उन्हें आने वाले संकट से कैसे निबटना है। लेकिन क्या उस माहौल को भी बदलने की जरूरत नहीं है, जहां महिलाओं के साथ इस तरह के अपराध जन्म लेते हैं?
सुधांशु गुप्त
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