Sunday, June 6, 2010

ये है रीडिंग का नया स्टाइल


‘बिना किताबों के घर उसी तरह है, जिस तरह बिना खिड़कियों के मकान।’
शायर और गीतकार गुलजार अक्सर यंगस्टर में कम होती रीडिंग हैबिट को लेकर अपनी चिंताएं प्रकट कर चुके हैं। उन्हीं की लिखी लाइन है-किताबें झांकती हैं, बंद अलमारी के शीशों से। गुलजार ही नहीं, साहित्य और संस्कृति से जुड़े दूसरे तमाम लोग भी अक्सर युवा पीढ़ी पर इस बात के आरोप लगाते रहे हैं कि वे किताबों से दूर हो रहे हैं। हो सकता है उनकी बातों में सच्चाई हो, लेकिन आज के यंगस्टर इस बात से बेपरवाह अपनी पसंद की किताबें अपने स्टाइल से पढ़ना पसंद करते हैं।
दरअसल आज का यंगस्टर बुक्स और लाइफ दोनों को ही पढ़ना चाहता है। उसे कौन सी किताबें पढ़नी हैं, कैसे और कहां पढ़नी हैं, यह वह खुद तय करता है। वह परंपरागत अंदाज में किताबों की दुनिया में खो नहीं जाना चाहता, बल्कि उसे बाहर की दुनिया भी उतनी ही आकर्षित करती है, जितनी किताबें। आज के यंगस्टर को सूचनाओं से भरीपूरी, रूमानी, तकनोलॉजी पर लिखी किताबें और बड़े लोगों की बायोग्राफी इम्प्रेस करती है। लेकिन दुनिया में आये तमाम बदलावों ने जिस तरह लोगों के लाइफ स्टाइल को इम्प्रेस किया है, उसी तरह रीडिंग हैबिट भी बदली है। बल्कि कहा जा सकता है कि यंगस्टर्स ने अपने लाइफ स्टाइल में बुक्स को शामिल किया है।
कुछ साल पहले की रीडिंगलगभग दो दशक पहले के दौर को याद कीजिए। बुक लवर्स बस स्टॉप्स पर, कभी-कभी बसों में, पिन ड्रॉप साइलेंस वाली लाइब्रेरीज में किताबों की दुनिया में खोये रहा करते थे। वे परंपरागत पुस्तकालय इस तरह के होते थे (कुछ पुस्तकालय अब भी ऐसे ही हैं), जो आपको बाहरी दुनिया से लगभग काट दिया करते थे। आज का यंगस्टर्स अगर इस तरह की लाइब्रेरीज में बैठे तो डर कर भाग सकता है। यह पुराना दौर था, जब सब कुछ बहुत धीमी रफ्तार से चला करता था। लेकिन आज की एसएमएस जेनरेशन उस अंदाज में बुक्स नहीं पढ़ सकती। उसने अपनी स्पीड और लाइफ स्टाइल के हिसाब से अपनी प्राथमिकताएं तय की हैं। हाल ही में दिल्ली में हुए पुस्तक मेले में यंगस्टर्स की बड़े पैमाने पर भागीदारी भी यही साबित करती है कि वे बुक्स से दूर नहीं हुए हैं।
मैट्रो ने दी रीडिंग को नई जमीनकिसी शहर का ट्रांसपोर्ट सिस्टम किस तरह रीडिंग कल्चर पैदा कर सकता है, यह बात साबित की है मैट्रो ने। 2002 में राजधानी में मैट्रो सेवा शुरु हुई। और महज आठ सालों में ही इसमें सफर करने वालों की संख्या करोड़ों में पहुंच गई। दिलचस्प बात है अगर आप मैट्रो को ध्यान से देखें तो इसमें आपको तमाम ऐसे युवा दिखाई पड़ेंगे, जिनके हाथ में चेतन भगत, इरिक सीगल, शिडनी शेल्डन या उनके पसंदीदा किसी लेखक की कोई किताब होगी। यही नहीं, यह मैट्रो ही है, जिसमें युवा अपने कॉलेज या स्कूल तक की पढ़ाई करते दिखाई पड़ते हैं। इसके अलावा मैट्रो स्टेशनों पर बने बुक स्टोर में भी अक्सर युवाओं के किताबों से प्रेम को देखा जा सकता है। लेकिन युवा मैट्रो में ही क्यों पढ़ना पसंद करते हैं? इसका मूल कारण है मैट्रो का कम्फर्टेबल होना। मैट्रो में बहुत ज्यादा भीड़ होने के बावजूद युवा लड़के-लड़कियों को इतना स्पेस मिल जाता है कि वे चेतन भगत की टू स्टेटस हाथ में लेकर पढ़ सकें। वरना जरा सोचिए कि क्या डीटीसी और ब्लू लाइन में इस तरह की सुविधा कभी मिल सकती थी?
किताबी कीड़ा नहीं है यंगस्टर्सआज के युवाओं को किताबें आकर्षित तो करती हैं, लेकिन उन्हें बाहर की दुनिया कहीं ज्यादा आकर्षित करती है। वे मोबाइल, इंटरनेट, टीवी, मॉल्स सबमें रुचि लेते हैं। उन्हें किताबी कीड़ा बनना पसंद नहीं है। लेकिन क्योंकि यह इनफॉरमेशन ऐज है, इसलिए यंगस्टर्स जानता है कि उन्हें बुक्स से कितनी सूचनाएं और नोलेज प्राप्त होगी और नेट से कितनी। इसलिए वह बेशक बुक्स पढ़ता है, लेकिन बुक्स के हिसाब से न चलकर अपनी लाइफ स्टाइल के हिसाब से चलता है। यही वजह है कि बुक्स उन पर हावी नहीं होतीं। साथ ही वह अपनी बदलती प्राथमिकताओं को भी अच्छी तरह से जानता और समझता है और उसी के अनुसार वह बुक्स चूज करता है। और इसमें कुछ गलत भी नहीं है।
बाजार ने समझी यंगस्टर्स की जरूरतयंगस्टर्स की बदलती जरूरत बाजार ने भी समझी है। बाजार को भी यह समझ में आया कि अब युवाओं को पहले वाले अंदाज में नहीं पढ़ाया जा सकता। लिहाजा ऐसे कॉन्सेप्ट बाजार में आए, जो बुक्स के साथ म्यूजिक और फूड का कॉम्बिनेशन पेश कर रहे थे। कैफे टर्टल एक ऐसा ही बुक्स और म्यूजिक स्टोर है, जहां यंगस्टर्स बैठकर पढ़ भी सकते हैं और म्यूजिक भी सुन सकते हैं। साथ ही यहां फूड की भी सुविधा है। और यहां का माहौल बेहद रूमानी है, जो आपके भीतर लाइफ जेनरेट करता है।
इसी तरह लगभग तीन साल पहले टाइमलैस आर्ट बुक स्टूडियो खुला। 1600 वर्ग फीट में बना यह विशाल स्टूडियो है, जहां आने वाले लग्जरी फील कर सकते हैं। इटैलियन मार्बल से बना यह स्टूडियो बुक शॉप्स को एक नया रूप देता दिखाई पड़ता है। यह एक ऐसा बुक स्टोर है, जहां प्लाज्मा स्क्रीन टेलीविजन है, लव टेबल्स हैं, फुटस्टॉल्स, रॉकिंग चेयर्स, सिक्स सीटर डाइनिंग टेबल और डबल बैड तक मौजूद हैं। कोटला मुबारकपुर में बना यह बुक स्टोर ऐसा है, जहां महंगी से महंगी किताबें मौजूद हैं। यहां रखी सबसे महंगी किताब 40,000 रुपए की है। इसके अलावा तमाम ऐसे बुक स्टोर राजधानी में खुले हैं, जहां बुक्स के साथ म्यूजिक को जोड़ा गया है।

सुधांशु गुप्त

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