Wednesday, December 7, 2011

भ्रष्टाचार कोई शर्ट नहीं, जिसे जब चाहें उतार कर रख दें

सुधांशु गुप्त

क्या हम भारत को सचमुच भ्रष्टाचार मुक्त मुल्क बनाना चाहते हैं? क्या हम वाकई चाहते हैं कि देश में फैली भ्रष्टाचार की जड़ों में तेजाब डाल दिया जाए? भ्रष्टाचार से हमारा क्या अभिप्राय है? क्या हमारे लिए भ्रष्टाचार का अर्थ केवल सरकारी काम करवाने के लिए दी जाने वाली रिश्वत है? क्या हमारा मकसद केवल दूसरों को भ्रष्टाचार से रोकना है? और क्या हमने सोचा है कि भ्रष्टाचार खत्म होने के बाद जो फेवर हमें अभी मिल रहे हैं, हम उनके बिना रहने के लिए तैयार हैं? अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने एकबारगी देशवासियों के भीतर भ्रष्टाचार खत्म करने का जज्बा सा पैदा कर दिया है। खासतौर से युवावर्ग अन्ना हजारे के तार्किक विरोध को भी बर्दाश्त नहीं कर पाता। उसे लगता है कि अन्ना का विरोध करने वाले भ्रष्टाचार के समर्थक हैं जबकि ऐसा नहीं है।



अधिकांश भारतीय चाहते हैं कि भ्रष्टाचार को खत्म किया जाए। लेकिन वे यह नहीं जानते कि भ्रष्टाचार किसे माना जाए और किसे नहीं। शब्दकोश में दी गई करप्शन की परिभाषा के अनुसार रिश्वत, अनैतिकता, बेईमानी, भ्रष्ट आचार और व्यवहार, किसी से फेवर लेना या देना, अपने काम के प्रति ईमानदार ना होना जैसी तमाम चीजें भ्रष्टाचार के दायरे में आती हैं। और हम सब जानते हैं कि निजी स्तर पर हम कितने गैर भ्रष्ट हैं। मुलाहिजा फरमाइए! हम किसी सरकारी या प्राइवेट कंपनी में आठ घंटे की नौकरी करते हैं, तो उसी समय में हम घर के सभी जरूरी काम निपटाना चाहते हैं। अपने बच्चे के एडमिशन में हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे को प्राथमिकता मिले, इसके लिए हम पैसे से लेकर अपने सारे सोर्सेज इस्तेमाल करते हैं। कॉलेज में एडमिशन के लिए भी हमने तमाम दूसरे रास्ते तलाश रखे हैं। अस्पतालों में लाइन में लगने की हमारी आदत अब नहीं रही है। वहां भी हमें फेवर चाहिए।



ऑफिसों में हम बॉसेज को खुश करके प्रमोशन और इंक्रीमेंट्स चाहते हैं। बड़ी निजी कंपनियों में भी देर से आना और काम ना करना विशेषाधिकार माना जाने लगा है। और सरकारी नौकरियों का हाल तो यह है कि वहां दो-दो घंटे ताश खेलना भी नौकरी का ही हिस्सा माना जाने लगा है। यह सब करते हुए हमें कभी यह महसूस नहीं होता कि हम कोई बेईमानी कर रहे हैं। हमने हर चीज के शॉर्टकट्स तलाश रखे हैं। हमारा आचार और व्यवहार भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है। यानी भ्रष्टाचार आज हमारी लाइफ स्टाइल में शामिल हो चुका है। हमारी वैल्यूज में शामिल है भ्रष्टाचार। और हमने यह लाइफस्टाइल अचानक नहीं अपनाया है। इसे विकसित होने में सालों का समय लगा है। इसलिए जब हम भ्रष्टाचार विरोध की बात करते हैं तो भूल जाते हैं कि हमारे अपने व्यवहार और आचरण में कितना भ्रष्टाचार है। हमने नैतिकताओं की जो नई परिभाषाएं गढ़ी हैं, वे भी काफी दिलचस्प हैं। एक मिसाल से इस बात को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। एक व्यक्ति दस प्रतिशत की कमिशन पर कोई डील कराने की बात करता है। यदि दस प्रतिशत की कमिशन लेकर वह काम करा देता है तो वह ईमानदारी है और यदि दस प्रतिशत कमिशन लेकर वह काम नहीं कराता तो यह बेईमानी है। यानी कमिशनखोरी से हमारा कोई विरोध नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक उदाहरण से इसी बात को आगे बढ़ाया जा सकता है। स्विस बैंक में दुनिया की सबसे ज्यादा ब्लैक मनी जमा है। जाहिर है ये ब्लैक मनी भ्रष्टाचार से कमाया गया पैसा है। ऐसा नहीं है कि स्विस बैंक इस बात को नहीं जानता। विडंबना यह है कि जहां दुनिया का सबसे ज्यादा काला धन जमा है, उसी देश की गिनती दुनिया के सबसे कम भ्रष्ट मुल्कों में होती है।



अब जरा इस बात की कल्पना कीजिए कि एक दिन अचानक आपको पता चलता है कि भारत पूरी तरह भ्रष्टाचार मुक्त हो गया है! तब क्या आप अपने आचरण, व्यवहार, अपनी वैल्यूज और अपने लाइफ स्टाइल को बदल पाएंगे? अगर नहीं तो भ्रष्टाचार विरोध का सीधा सा अर्थ केवल सरकारी भ्रष्टाचार को खत्म करना होगा। अन्यथा भ्रष्टाचार कोई शर्ट नहीं है, जिसे आप जब चाहें उतार कर रख दें।