Sunday, May 30, 2010

हैल्थ मैनेजमेंट के मंत्र

क्या आप अपनी हैल्थ को भी मैनेज कर सकती हैं। सरसरी निगाह से देखें तो ऐसा संभव नहीं लगता, लेकिन यदि आप थोड़ा सा व्यवस्थित होकर चलें तो यकीनन अपनी हैल्थ को भी मैनेज कर सकती हैं।

चालीस वर्षीया सुनीता को सिरदर्द होता है तो वह कोई टैबलेट खा लेती हैं और दोबारा से काम पर जुट जाती हैं। जब सुनीता की हड्डियों में दर्द होता है तो वह सोचती हैं कि शायद थकान की वजह से ऐसा होगा, लिहाजा वह कुछ देर आराम करती हैं, फिर काम पर लग जाती हैं। अपनी बीमारियों को गंभीरता से न लेना सुनीता का स्वभाव बन चुका है। इन बीमारियों के बारे में गंभीरता से न सोचने का जो कारण सुनीता को दिखाई पड़ता है, वह है उनका बिजी होना। ऑफिस का काम, घर का काम, पति और बच्चों की देखभाल उन्हें अपने बारे में सोचने की फुर्सत ही नहीं देते। ऐसे में जो चीज उनकी प्राथमिकता में सबसे नीचे है, वह है उनकी अपनी सेहत। बस वह समय के साथ चली जा रही हैं या चलने की कोशिश कर रही हैं। सुनीता का यह स्वभाव केवल सुनीता का ही नहीं है। शहरों में रहने वाली आम मध्यवर्गीय महिलाओं का भी यह स्वभाव बन चुका है और यह स्वभाव देन है, आज के इस आधुनिक युग की नयी जीवन शैली का।

इसमें इनसान को ठहरने का ही वक्त नहीं मिलता और जब ठहरने का वक्त मिलता है तो पता लगता है कि आप किसी गंभीर बीमारी के शिकार हो चुके हैं। तो क्या ऐसा किया जाए कि आप वक्त के साथ कदम से कदम मिला कर भी चल सकें और आपका स्वास्थ्य लगातार आपका साथ देता रहे? जिस तरह हम टाइम मैनेजमेंट की बात करते हैं, क्या हैल्थ मैनेजमेंट जैसी कोई चीज हो सकती है, जो हमें लगातार फिट रखे और बीमारियां या तो हमसे दूर रहें या हम समय रहते बीमारियों को पहचान कर उनका उचित इलाज करा सकें।

डॉक्टरों का मानना है कि यदि महिलाएं नियमित चैकअप को अपनी जीवन शैली का ही हिस्सा बना लें तो यह समस्या काफी हद तक हल हो सकती है। यहां हम आपको हैल्थ मैनेजमेंट का एक कारगर तरीका बता रहे हैं। यदि आप इसके अनरूप चलेंगी तो यकीन जानिये, आप अपनी हैल्थ को सही ढंग से मैनेज कर सकेंगी। आपको बस इतना करना है कि नियमित रूप से यहां दिये गये चैकअप कराने हैं।

मैमोग्राम

विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में सन 2015 तक ढाई लाख से अधिक महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर (स्तन कैंसर) से पीड़ित होंगी। और इंडियन मेडिकल रिसर्च काउंसिल के अनुसार, शहरों में रहने वाली प्रति एक लाख में से 30-33 प्रतिशत महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर का शिकार हो सकती हैं, लिहाजा महिलाओं के लिए ब्रेस्ट कैंसर को डिटेक्ट करने वाला टेस्ट-मैमोग्राफी कराना जरूरी है, ताकि ब्रेस्ट कैंसर को समय रहते पहचाना जा सके और उसका उचित इलाज कराया जा सके। डॉक्टरों की सलाह है कि चालीस साल से ऊपर की महिलाओं के लिए साल में एक बार यह टेस्ट बेहद जरूरी है। इसके अतिरिक्त वे प्रतिमाह खुद भी इसका परीक्षण कर सकती हैं। मैमोग्राफी में 1500 से 2000 रुपये का खर्चा आता है।

हीमोग्लोबिन

इसे कंपलीट ब्लड टैस्ट के नाम से भी जाना जाता है। महिलाओं के लिए यह टैस्ट भी नियमित रूप से कराना जरूरी है। यह एक सामान्य ब्लड टैस्ट है, जिससे ब्लड में रेड सेल्स की मात्र को जांचा जाता है। गौरतलब है कि रेड सेल्स में ही हीमोग्लोबिन होता है, जिसके जरिये शरीर के दूसरे हिस्सों में आक्सीजन जाती है। महिलाओं के लिए यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उनमें अनीमिया या रेड ब्लड सेल्स की अक्सर कमी पाई जाती है। इसकी मूल वजह है उनकी खुराक में आयरन की कमी का होना। इस कमी को खाने में हरी सब्जियां, सेब की मात्र बढ़ा कर आसानी से दूर किया जा सकता है। इसके अलावा आयरन के पूरक तत्वों को अपनी खुराक में शामिल करके भी इस बीमारी से निजात पाई जा सकती है। गर्भावस्था के दौरान यह टैस्ट बेहद जरूरी होता है। महिलाएं को यह टैस्ट साल में कम से कम एक बार अवश्य कराना चाहिए। इसमें खर्च भी महज 50-100 रुपये के बीच आता है।

शुगर टेस्ट

शुगर का बढ़ जाना भी आज की शहरी जिंदगी में एक बड़ी बीमारी के तौर पर शामिल हो चुका है। यह टेस्ट ब्लड में शुगर का लेवल जांचने के लिए किया जाता है। हाई ब्लड शुगर का अर्थ है कि व्यक्ति डायबिटीज का रोगी है, जबकि लो ब्लड शुगर के लिए भी मेडिकल ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है। डॉक्टरों का अंदाजा है कि सन 2025 तक भारत डायबिटीज रोगियों की विश्व राजधानी बन जाएगा। यह टेस्ट किडनी की बीमारियों के पहचानने में भी मदद करता है। महिलाओं के लिए यह टेस्ट साल में एक बार कराना जरूरी है। इसे कराने में 700-1000 रुपये खर्च होते हैं।

बोन्स डेन्सिटोमेट्री

महिलाओं में हड्डियों में कमजोरी की शिकायत आम है। कभी उनके पैरों में दर्द होता है तो कभी पूरे शरीर की हड्डियों में। बोन्स डेन्सिटोमेट्री टैस्ट हड्डियों में कैल्शियम की मात्र जांचने के लिए किया जाता है। कभी-कभी ब्लड में तो कैल्शियम की मात्र ठीक होती है, लेकिन हड्डियों में कम हो जाती है। इसकी वजह से हड्डियां कमजोर हो जाती है। वैसे भी डॉक्टरों का कहना है कि 30 साल की उम्र के बाद हड्डियां एक प्रतिशत प्रतिवर्ष के हिसाब से कमजोर होने लगती हैं। महिलाओं के लिए यह टैस्ट 45 वर्ष की उम्र के बाद बेहद जरूरी हो जाता है। खासकर ओस्ट्रोपोरोसिस के खतरे को जानने के लिए। डॉक्टर कहते हैं कि महिलाओं को पहला टैस्ट 40 वर्ष की उम्र में करा लेना चाहिए और उसके बाद डॉक्टरों की ही सलाह पर इसे नियमित रूप से कराना चाहिए। इसे कराने का खर्च 2000-3000 रुपए के बीच बैठता है।

दांतों की जांच

दांतों के डॉक्टर के पास केवल उन्हें साफ कराने के लिए ही नहीं जाना चाहिए, बल्कि कैविटीस और दांतों की अन्य बीमारियों की जांच के लिए भी जाना चाहिए। हालांकि दांतों का चैकअप विशेषकर महिलाओं के लिए ही नहीं है, लेकिन महिलाओं में हारमोनल प्रॉब्लम विकसित होने की प्रवृत्ति होती है, जिससे दांतों में इनफेक्शन हो सकता है, इसलिए हर छह माह में या साल में कम से कम एक बार दांतों की उचित जांच कराने में फायदा ही है। इसका खर्चा 250-400 रुपये के बीच आता है और इतना रुपया आप अपनी मुस्कराहट पर तो खर्च कर ही सकती हैं।

कोलेस्ट्रॉल

ब्लड में कोलेस्ट्रोल की मात्र जांचने के लिए यह टैस्ट किया जाता है। बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रोल दिल की बीमारियों को जन्म देता है। हालांकि डॉक्टरों का मानना है कि फीमेल हारमोन-इस्ट्रोजेन महिलाओं को हार्ट से जुड़ी बीमारियों से बचाता है, लेकिन मीनोपॉज के बाद इस हारमोन का स्तर भी कम हो जाता है। साथ ही आज की जीवन शैली, तनाव, स्मोकिंग से इसका स्तर और भी कम हो जाता है। लिहाजा साल में एक बार यह टैस्ट कराना जरूरी है। इसका खर्च 750-1000 रुपये के बीच बैठता है।

थाइरॉयड फंक्शन टेस्ट

यह एक तरह का ब्लड टेस्ट है, जिससे थाइराइड ग्लैंड की फंक्शनिंग की जांच की जाती है। थाइराइड ग्लैंड थाइरोक्सिन नामक हारमोन प्रोड्यूस करता है, जो शरीर में होने वाले बदलावों को नियमित करता है। महिलाओं में इसके चलते मोटापा बढ़ना, बाल उड़ना जैसी बीमारियां हो जाती हैं। महिलाओं को गर्भावस्था में विशेष रूप से यह टैस्ट कराने की सलाह दी जाती है। यह टैस्ट महिलाओं का साल में एक बार अवश्य करा लेना चाहिए। इसे कराने का खर्चा 500-800 रुपये के बीच आता है।

ब्लड प्रेशर

आज के दौर में ब्लड प्रेशर का बढ़ना और कम होना एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है। ब्लड प्रेशर या हाइपरटैंशन में जो सबसे खतरनाक है, वह है कि धमनियों पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ रहा है और वे नष्ट हो सकती हैं। डॉक्टरों की सलाह है कि यदि आपका ब्लड प्रेशर हाई है और आप हाइपरटैंशन में नहीं हैं तो जीवन शैली में बदलाव लाकर यानी उसमें सादगी लाकर, एक्सरसाइज के जरिये ब्लड प्रेशर को सामान्य स्तर तक ला सकते हैं, लेकिन यह सब तभी संभव है, जब आपको यह पता हो कि आपका ब्लड प्रेशर हाई है। लिहाजा जरूरी है कि साल में कम से कम एक बार अपने ब्लड प्रेशर की जांच अवश्य करा ली जाए। इसमें खर्च भी ज्यादा नहीं आता। केवल 100 रुपये।

पेल्विक अल्ट्रासाउंड

यह टेस्ट गायनोक्लॉजिकल बीमारियों को जांचने के लिए कराया जाता है। आपकी उम्र चाहे 20 हो या 50, यह टैस्ट हर महिला-लड़की को प्रतिवर्ष कराना चाहिए। इसके संकेतों को गौर से देखिये, ज्यादा ब्लीडिंग हो रही है, वजन कम हो रहा है या बढ़ रहा है तो इस टैस्ट को तुरंत कराना चाहिए। इसका खर्च 800-1000 के बीच आता है।
सुधांशु गुप्त

प्रोमो में प्रमोट करें करियर

सिनेमा हॉल्स में फिल्म देखते समय आपने अक्सर आने वाली फिल्मों के प्रोमो या ट्रेलर जरूर देखे होंगे। इन प्रोमोज को देख कर आप आने वाली फिल्म के बारे में एक धारणा बना लेते हैं कि फिल्म अच्छी होगी या बुरी। ये प्रोमोज इतने टाइटली एडिटिड होते हैं कि किसी सीन पर आप नजर जमाना चाहते हैं तो तुरंत विजुअल बदल जाता है। वक्त के साथ-साथ फिल्मों के प्रचार के तरीके और प्रोमोज की दुनिया में भी बदलाव आया है। आज अनेक ऐसे फिल्मकार हैं, जो अपनी फिल्मों के प्रोमो बनाने में खुद रुचि लेते हैं। आप भी यदि चाहें तो प्रोमो से अपने करियर को प्रमोट कर सकते हैं यानी इस क्षेत्र में अपना करियर बना सकते हैं। इस बहाने आप फिल्म बनाने का अपना सपना फिल्मों के प्रोमोज बना कर पूरा कर सकते हैं।

करियर के रूप में इसे क्यों अपनाएं?

हालांकि इसे करियर के रूप में चुनना आपकी निजी स्वतंत्रता है, लेकिन यदि आप क्रिएटिव हैं, आपमें तकनीकी क्षमताएं हैं और फिल्में देखना और उस दुनिया से जुड़ना आपका सपना है तो आप इसे करियर के रूप में चुन सकते हैं। जसवंत सिंह ने पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर होने के बावजूद इस पेशे को चुना और वह पिछले 20 सालों से टी-सिरीज में फिल्म और टेलीविजन प्रोमोज बनाते हैं। वह बताते हैं, यह बेहद दिलचस्प काम है। फिल्म में अपनी क्रिएटिविटी दिखाने के लिए आपको तीन घंटे का समय चाहिए, लेकिन प्रोमोज में आपको एक-दो मिनट में ही अपनी क्रिएटिव क्षमताओं को उजागर करना होता है। उनके अनुसार आज के युवा इस क्षेत्र में अपना अच्छा करियर बना सकते हैं।

सबसे पहले क्या करें?

इस पेशे में आने के लिए सबसे पहले आप खुद को तोलें। देखें कि आप में कितनी क्रिएटिव क्षमताएं हैं और आपका ब्रेन कितना टेक्नोलॉजी सैवी है। इसके अलावा आपको यह भी देखना होगा कि क्या आप में अच्छे शॉट्स और अच्छे ऑडियो की समझ है। यदि आप ये सारे गुण खुद में पाते हैं तो आप अच्छे प्रोमो मेकर बन सकते हैं। इसके लिए आपको सबसे पहले किसी अच्छे संस्थान से एडिटर का कोर्स करना होगा। एडिटर, यानी वह आदमी, जो शूट की गयी फिल्म को एडिट करता है, उसमें से अच्छे-अच्छे शॉट्स लेकर फिल्म को जोड़ता है।

किस संस्थान से करें यह कोर्स

यूं तो दिल्ली में एडिटिंग का कोर्स कराने वाले अनेक संस्थान हैं। जसंवत सिंह बताते हैं, दिल्ली में आज तक, एनडीटीवी, जागरण और मारवाह स्टूडियो जैसे संस्थान हैं, जो एडिटिंग का कोर्स कराते हैं। मेरे हिसाब से पुणे फिल्म संस्थान और मुंबई में अनुपम खेर का संस्थान इसके लिए सबसे बढ़िया है। मुंबई से यह कोर्स करने का एक और फायदा यह है कि फिल्मों से जुड़ा अधिकांश काम आज भी मुंबई में ही होता है।

कोर्स करने के बाद

कोर्स पूरा करने के बाद आपको एडिटिंग का काम लगातार करना होगा। इसके लिए आप दिल्ली में प्रोडक्शन हाउसेज के पास जा सकते हैं। इसके अलावा चैनल्स में भी एडिटर और प्रोमो डायरेक्टर के रूप में काम कर सकते हैं। तमाम चैनलों पर बनने वाले प्रोग्राम्स के लिए प्रोमोज बनाये जाते हैं।

ये प्रोमो, प्रोमो डायरेक्टर ही बनाता है। अगर देखा जाए तो ये प्रोमो ही प्रोग्राम्स के लिए दर्शकों को आमंत्रित करते हैं। जितना अच्छा प्रोमो बनेगा, उतने ही ज्यादा दर्शक प्रोग्राम को देखेंगे। वैसे आजकल अधिकांश एडिटर अपनी एडिटिंग टेबल डाल कर ही काम करते हैं। ये लोग प्रोडक्शन हाउसेज से प्रोग्राम्स की पैकेज डील कर लेते हैं, लेकिन यदि आपको फिल्मों के ही प्रोमो बनाने हैं तो उसके लिए उपयुक्त जगह मुंबई है। वहां आप किसी बड़े प्रोडक्शन हाउस से जुड़ सकते हैं।

कितनी है कमाई

अगर आप नौकरी ही करना चाहते हैं तो आपको 20 से 35 हजार रुपये माह की नौकरी आसानी से मिल सकती है, लेकिन यदि आपके सपने बड़े हैं और आप अच्छा काम करना चाहते हैं और उसके लिए मुंबई जाते हैं तो आप डेढ़ लाख रुपये माह तक कमा सकते हैं। और फिर कौन जाने किसी दिन आप भी माई नेम इज खान जैसी फिल्मों के प्रोमो बनाते दिखाई पड़ें। जसवंत सिंह बताते हैं, वास्तव में प्रोमो बनाना बेहद महीन काम है। इसके लिए व्यक्ति का परफेक्ट होना बहुत जरूरी है। अनेक डिवोशनल एलबम और रीमिक्स के लिए प्रोमोज बना चुके जसवंत कहते हैं, प्रोमो के लिए पहले हमें ऑडियो काटना पड़ता है। उसके बाद उस ऑडियो के अनुरूप हमें विजुअल लगाने पड़ते हैं। कई बार विजुअल रफ कट में से भी लिये जाते हैं और कई बार फिल्मों में प्रोमोज अलग से शूट करवाये जाते हैं। यानी फिल्मों के प्रोमोज बनाना कभी-कभी फिल्म बनाने से भी ज्यादा मुश्किल काम हो सकता है और इस मुश्किल काम के पैसे भी सामान्य से अधिक होते हैं।

प्रोमोज से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य

अमिताभ बच्चन ने अपनी फिल्म ‘मेजर साहब’ के प्रोमोज खुद अपने सुपरविजन में शूट कराए थे और इसमें लगभग 15 दिन का समय लगा था।

अजय देवगन ने अपनी फिल्म ‘प्यार तो होना ही था’ के प्रोमो में स्पेशल इफेक्ट्स का प्रयोग किया था, जिसमें चार लाख रुपये लगे थे। यह उस वक्त का सबसे महंग प्रोमो बताया गया था।

शाहरुख खान ने डुप्लीकेट फिल्म के प्रोमो खुद डायरेक्ट किये थे।

उदय चोपड़ा डर से लेकर दिल तो पागल है फिल्मों के लिए अलग से प्रोमो शूट करते रहे, जो यह साबित करता है कि प्रोमोज फिल्मों के लिए कितने जरूरी हो गये हैं।
सुधांशु गुप्त

कितनी बदली-बदली है इस प्रेम की भाषा

लोग कहते हैं कि प्रेम की कोई भाषा नहीं होती..यानी प्रेम अपने आप में एक भाषा है। लोग गलत कहते हैं। प्रेम के इजहार की बाकायदा एक भाषा होती है और हर दौर का प्रेम अपनी भाषा ईजाद करता है। आज का युवा भी इसका अपवाद नहीं है। बल्कि आज के युवा ने प्रेम की इस भाषा को ईजाद करने के लिए मोबाइल और इंटरनेट का भी भरपूर इस्तेमाल किया है। और दिलचस्प रूप से प्रेम की इस नई भाषा में युवाओं की जीवन शैली को भी एक गति दी है।
अपर्णा अभी ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ती है। एक दिन उसके इंटरनेट के जरिए मोबाइल पर एक मैसेज आया। मैसेज में लिखे प्रेम संदेश को पढ़कर अपर्णा का चेहरा गुलाबी हो आया। संयोग से अपर्णा की माँ दूर खड़ी यह सब देख रही थीं। उन्होंने अपर्णा से मोबाइल मांगा तो उसने सहज रूप से आया मैसेज दिखा दिया। मैसेज था-143। अपर्णा की माँ काफी प्रयास करने के बावजूद इसका अर्थ नहीं समझ सकीं और अपर्णा के चेहरे पर एक रहस्यमय मुस्कान खेलती रही। वास्तव में 143 का अर्थ है- I LOVE YOU यानी वन लैटर वर्ड, फोर लैटर वर्ड और थ्री लैटर वर्ड से बना है 143। यह युवाओं का प्रेम प्रकट करने का सबसे लोकप्रिय तरीका है।

इसी तरह अगर किसी युवा को कहना हो कि आई लव यू और आई मिस यू तो वह कहेगा 286। 143 आई लव यू के लिए और 143 आई मिस यू के लिए दोनों का जोड़ 286 हो जाता है। एक निजी फर्म में कार्यरत मनीष चौखानी कहते हैं, आई लव यू कहना अब आउटडेटेड हो चुका है। आज का युवा वह अनेक संदेशों और सिंबल्स के इस्तेमाल से अपना प्रेम प्रदर्शित करना चाहता है।

मिसाल के तौर पर आज मोबाइल में भी यह सुविधा है कि कोई लड़का या लड़की यदि अपने प्रेमी या प्रेमिका को सिम्बल्स के जरिए अपने दिल का हाल भेज सकता है। मोबाइल और इंटरनेट की सोशल नेटवर्किग साइट्स पर भी यह सुविधा हासिल है। आप खुश हैं, आप दुखी हैं, आप किस करना चाहते हैं, आप अपने पार्टनर को शक की निगाह से देख रहे हैं, इन सबके लिए रेडीमेड सिंबल्स उपलब्ध हैं। आप उन्हें निकालिए और अपने पार्टनर को भेज दीजिए।

यही नहीं, नखरे दिखाना, रोना, इनकार करना, हैरान होना जैसी अभिव्यक्तियों के लिए भी रेडीमेड सिंबल्स मौजूद हैं। मार्केटिंग से जुड़ी 23 वर्षीया मानसी कहती हैं, यदि कोई लड़का मुङो प्रपोज कर रहा है और मुङो मोबाइल पर उसके प्रपोजल को स्वीकार करना है तो मैं स्माइल वाला सिंबल भेज दूंगी और वह समझ जाएगा कि मैंने उसका प्रपोजल स्वीकार कर लिया।

अपना बिजनेस कर रहे 24 वर्षीय गौरव कहते हैं, लड़की को प्रपोज करने के लिए हम शेरो शायरी का भी इस्तेमाल करते हैं। हमारी कोशिश होती है कि लड़की पहले एसएमएस में ही हमारे प्यार को स्वीकार कर ले, क्योंकि आज के युवा के पास ज्यादा समय नहीं है। हालांकि 22 वर्षीया वर्षा का कहना है, आज का युवा बहुत जल्दी में हैं। वह प्रेम का उत्तर हां या ना तुरंत चाहता है। यदि लड़की या लड़का मना करता है तो वह दूसरे पार्टनर की तलाश में लग जाते हैं।

सच भी है यह वह युग नहीं है जब ‘कबूतर जा जा जा.. पहले प्यार की पहली चिट्ठी साजन को दे आ’ की तर्ज पर प्रेमिकाएं चिट्ठी का इंतजार किया करती थीं। आज इंटरनेट, कंप्यूटर और मोबाइल का युग है और युवा बहुत जल्दी है। उसे सब कुछ रेडीमेड चाहिए। वह किसी लड़की की प्रेम स्वीकारोक्ति का इंतजार नहीं करना चाहता। अगर लड़की इसके लिए समय चाहती है तो वह किसी दूसरी लड़की को प्रपोज करना ज्यादा बेहतर समझता है। प्रेम की अपनी इसी स्पीड को बनाए रखने के लिए युवा प्रेम की नयी भाषा लिख रहे हैं और प्रेम के उन मुहावरों को भी बदल रहे हैं, जो कहते थे कि प्रेम जीवन में केवल एक ही बार होता है।
sudhanshu.gupta@livehindustan.com

खतरा-ए-चैटिंग
रोजाना ऑनलाइन लाखों लोग एक दूसरे से मिलते हैं। इनमें से कुछ तो संबंधों को लेकर खासे संजीदा हो जाते हैं। लेकिन साइबर दुनिया और मनोजगत से जुड़े विशेषज्ञ इस विषय में कुछ नसीहतें देते हैं। ऑनलाइन रोमांस करने में कई खतरे हैं। सबसे पहली बात तो ये कि दूसरे देशों के लोगों से घर बैठे बात करने का अपना लुत्फ है तो इससे जुड़े खतरे भी हैं। साइबर विशेषज्ञों के अनुसार विदेशों में बैठी कई महिलाएं चैटिंग के दौरान अपना बेचारा रूप प्रस्तुत करती हैं जिसके बाद वह मजबूरी बताकर पैसे मांगती हैं। कई लोग इन बातों में आकर उन्हें पैसा भेज देते हैं। इसके बाद कभी ऐसी लड़कियों का पता नहीं चलता।

कैसे बचें : साइबर विशेषज्ञों की राय में कभी जल्दबाजी में अपनी निजी डिटेल यानी फोन नंबर, ईमेल आदि के बारे में न बताएं। लिहाजा, आप चैटिंग के लिए अपना कोई ऐसा ईमेल आइडी बनाएं जिसमें आपकी निजी जानकारी न हो। इसी तरह फोन नंबर भी पहली-दूसरी बार में ही नहीं बताना चाहिए। यदि कोई इसकी मांग करता भी है तो सख्ती से उसे ईमेल तक ही सीमित रखना चाहिए और संभव हो तो बातचीत अनजान नंबर से ही करें। यदि चैटिंग के बाद पहली बार किसी से मिलने का अवसर आ भी जाए तो मिलने के लिए कोई सार्वजनिक स्थल ही चुनें। विशेषज्ञों कहते हैं कि महिलाओं को आत्मरक्षा का कोई तरीका भी सीख लेना चाहिए।

कुछेक मामलों में ऑनलाइन मिलने के बाद डेट पर पहुंची महिलाओं को शारीरिक तौर पर क्षति पहुंची है। ऐसे में आत्मरक्षा का कोई उपाय सीख लेना लाभदायक होगा। किसी भी नए व्यक्ति से मिलने के फौरन बाद ही उसके साथ कहीं भी चल नहीं देना चाहिए। यदि वह अपने परिवार और दोस्तों आदि के बारे में नहीं बताता/बताती है, तो चेत जाना चाहिए। अपना पासवर्ड भी बदलते रहें। सोशल नेटवर्किग साइटों पर प्रतिक्रिया देते समय सावधान रहें। खुद को बेहद बोल्ड दिखाने से बचें। चैटिंग में अश्लील व अभद्र शब्दों का इस्तेमाल ना करें। भावनात्मक ना बनें, अक्सर इन्टय़ूशन आपको कुछ गलत होने की स्थिति में चेता देती है।

आपके नाम और सरनेम से आपके बारे में जानकारी जुटाई जा सकती है। शादीशुदा लोगों से सावधान रहें। एक अनुमान के अनुसार ऑन लाइन चैटिंग करने वालों में 30 प्रतिशत लोग शादीशुदा हैं। लड़कियां जिस व्यक्ति से बात करें उसके हाल के फोटो ले सकती हैं। मसलन इस मैदान में उतरे हैं तो यह संभावना लेकर चलें कि यहां सच का प्रतिशत बहुत कम है।

सुधांशु गुप्त