Sunday, June 6, 2010

महा मुकाबला में किंग खान की गूंज


पिछले दिनों मुंबई में चैंबूर स्थित बीपीएल स्पोर्ट्स क्लब में ‘अमूल म्यूजिक का महा मुकाबला’ का भव्य सैट लगा हुआ था। ओपन स्पेस में बने इस सैट के सामने एक खुला मैदान था, जहां दर्शकों की बेतहाशा भीड़ थी। इनमें युवाओं के साथ-साथ प्रौढ़ और वृद्ध लोगों की संख्या भी काफी थी, जो इस बात का प्रतीक थी कि इस तरह के मुकाबलों में केवल युवाओं की नहीं, बल्कि उम्रदराज लोगों की भी काफी रुचि है। भव्य सैट के पास ही कुछ पैवेलियन (अस्थायी रूम) भी बने हुए थे और उनके बाहर टीम के कप्तानों के नाम लिखे थे।
शंकर, शान, श्रेया घोषाल, हिमेश रेशमिया, मिका और मोहित चौहान। और हर कमरे के बाहर से गाने की आवाजें आ रही थीं यानी इन सभी टीमों के सदस्य रियाज में जुटे थे और टीमों के कप्तान अपने-अपने खिलाड़ियों के अभ्यास को दुरुस्त करने में लगे हुए थे। चारों ओर घूमते दर्शक म्यूजिक के इस महा मुकाबला को इस तरह एन्जॉय कर रहे थे, मानो यहां कोई अलग किस्म का ट्वेंटी-20 क्रिकेट मैच होना हो। दिलचस्प बात यह भी थी कि दर्शक मैच से पहले के इस अभ्यास को भी पूरे मनोयोग से देख रहे थे। कुछ युवा लड़के-लड़कियों के परिधान इस तरह के थे, मानो वे खुद इस शूटिंग में शामिल होने वाले हों। दर्शकों की रुचि का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि क्रिकेट मैचों की तरह ही दर्शकों ने अपनी-अपनी पसंद की टीमें चुन रखीं थीं और वे उन्हें सपोर्ट करने वाले थे। लेकिन दर्शकों की बहुत ज्यादा संख्या के पीछे एक मूल कारण था कि इस शो में किंग खान यानी शाहरुख खान आने वाले थे, अपनी फिल्म ‘माई नेम इज खान’ के प्रोमोशन के लिए।
इस संगीतमय माहौल के बीच अचानक नजर शान पर पड़ी। एक टीम के कप्तान शान अपने रियाज रूम के बाहर रिलेक्स मुद्रा में टहल रहे थे। मन में सवाल उठा कि क्या इस तरह के मुकाबले म्यूजिक को सचमुच कोई फायदा पहुंचाते हैं या देश की प्रतिभाओं को मुनासिब मंच देते हैं? शान ने बड़े सहज भावसे जवाब दिया, यह सच है कि इनमें से कोई मोहम्मद रफी, किशोर या मुकेश जैसा सामने नहीं आने वाला और न ही इनमें से कोई बहुत अच्छा गायक निकलने वाला है, लेकिन इस टेलेंट हंट शो के जरिये तमाम ऐसे युवा सामने आएंगे, जो गायकी से ही अपनी रोजी-रोटी आराम से चला सकेंगे। मुझे लगता है कि इस तरह के शो एक पैरलल इंडस्ट्री को जन्म दे रहे हैं। एक ऐसी इंडस्ट्री, जिसमें बहुत से युवाओं को गायकी का मौका मिलेगा।
शान की बात सच लग रही थी, इसलिए भी क्योंकि गायकी का अभ्यास करने वाले अधिकांश युवाओं की आंखों में जो चमक दिखाई दे रही थी-वह एक फनकार बनने की चमक नहीं थी, बल्कि वह इस तरह की चमक थी, जो किसी अपने करियर को दिशा मिलने के बाद युवाओं की आंखों में दिखाई देती है। तभी कहीं से गाने के बोल सुनाई दिये-‘कजरारे कजरारे, तेरे कारे-कारे नैना..’ और कई युवा वहीं डांस करने लगे। यह संयोग ही था कि इस गाने के शुरू होते ही वहां शंकर दिखाई दिये। उनका कहना था कि जो भी बच्चों इस मंच पर आते हैं, मैं उन्हें यह समझाने की कोशिश करता हूं कि वे मौलिक गाएं, किसी की नकल न करें। और इस मंच के माध्यम से यदि मैं युवाओं को यह बता समझा-सकूंगा तो मेरे और युवाओं दोनों के लिए अच्छा होगा।

सुधांशु गुप्त

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