Sunday, June 6, 2010
बहुत कुछ पाया है मगर बहुत कुछ बाकी है अभी
आगामी आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है। संयोग से यह सौवां मौका है, जब हम इस दिवस को सेलिब्रेट करेंगे। और यही मौका हो सकता है, जब हम देखें कि महिलाओं ने पिछले कुछ वर्षों में क्या प्रगति की है और उनकी प्रगति की रफ्तार कितनी है। हमने इस मौके पर विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की तरक्की को पहचानने की कोशिश की है। सुधांशु गुप्त की रिपोर्ट।
आने वाले 8 मार्च को हमें अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाते हुए 100 साल पूरे हो जाएंगे। इस दिवस को मनाने का मकसद यही था कि पूरी दुनिया की महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा मिले, उनकी मांगों पर गौर किया जाए और समाज में उनके लिए भी विकास के बराबर मौके हों। तो क्यों ना इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हम यह सोचें कि महिलाओं ने कितनी प्रगति की है। जाहिर है 100 साल की प्रगति का आकलन करना आसान नहीं है, लेकिन हम पिछले 25 सालों में भारत में महिलाओं ने क्या प्रगति की है, इसकी एक तस्वीर तो बना ही सकते हैं।
राजनीति और सामाजिक जागरूकता
पच्चीस साल पहले के राजनीतिक माहौल को याद कीजिए। महिला नेताओं के रूप में आपको उंगली पर गिनी जाने वाली महिलाओं के ही नाम याद आते थे। बेशक इंदिरा गांधी सबसे लोकप्रिय नेता रहीं, लेकिन उनके निधन के बाद ऐसी कोई महिला दिखाई नहीं देती थी, जो देश का नेतृत्व कर सके। लेकिन इन गुजरे 25 सालों में महिला नेताओं की तादाद बड़ी संख्या में बढ़ी है। यह संयोग नहीं है कि आज देश की राष्ट्रपति (प्रतिभा पाटिल), लोकसभा की स्पीकर (मीरा कुमार), विपक्ष की नेता (सुषमा स्वराज), कांग्रेस की अध्यक्ष (सोनिया गांधी), बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष (मायावती) के अलावा कई महत्त्वपूर्ण पदों पर महिलाओं की उपस्थिति देखी जा सकती है। बेशक महिलाओं को अभी संसद में 33 फीसदी आरक्षण नहीं मिला है, लेकिन जितने पुरजोर तरीके से इसकी मांग की जा रही है, वह साबित करता है कि राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी और अपने हक लेने की जागरूकता इन गुजरे वर्षों में काफी बढ़ी है। आज अनेक गैर-सरकारी संगठन महिलाओं के पक्ष में खड़े हैं, जो महिलाओं के साथ होने वाले किसी भी अन्याय के खिलाफ मुहिम-सी चला देते हैं। रुचिका गिरहोत्र मामले पर जिस तरह से महिला संगठनों और मीडिया ने दबाव बनाया, वह भी महिलाओं की बढ़ती जागरूकता का ही परिणाम है। हालांकि मंजिल अभी दूर है, लेकिन इस क्षेत्र में हुई प्रगति को आप अनदेखा नहीं कर सकते।
तकनीक ने दिया आत्मविश्वास
पच्चीस साल पहले के राजाधानी दिल्ली के परिदृश्य को याद करते हैं। जरा याद कीजिये, एक निम्न मध्यवर्गीय इलाके में कितने महिलाएं ऐसी थीं, जिनके घर वॉशिंग मशीन, गैस या कुकर हुआ करते थे? ऐसी महिलाओं की संख्या नगण्य थी। लेकिन अगर आप आज उसी इलाके को देखें तो पायेंगे कि कमोबेश हर घर में ये तीनों चीजें मौजूद हैं। ऐसा नहीं है कि यह बदलाव निम्न मध्यवर्गीय इलाकों में ही हुआ है। स्लम एरिया तक में आपको ऐसे घर मिलेंगे, जहां ये तीनों चीजें तो मौजूद हैं ही, महिलाएं और युवा लड़कियां तक बेसाख्ता मोबाइल का इस्तेमाल कर रही हैं। 80 के दशक में जब मोबाइल का आगाज हुआ तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह मोबाइल महिलाओं की भी जिंदगी बदल देगा। आज फ्लैट्स में आने वाली शायद ही कोई मेड ऐसी होगी, जो बिना मोबाइल के आती हो। शहरों में ही नहीं, ग्रामीण इलाकों में भी मोबाइल का इस्तेमाल करने वाली महिलाएं लगातार बढ़ रही हैं। ट्राई के आंकड़े कहते हैं कि वर्ष 2012 तक ग्रामीण इलाकों में 20 करोड़ टेलीफोन कनेक्शंस हो जाएंगे और इनमें महिला प्रोवाइडर्स की संख्या तीस फीसदी होगी। दिलचस्प बात है कि आज 50 साल से ऊपर की ग्रामीण महिलाएं भी मोबाइल फोन्स का इस्तेमाल कर रही हैं। इसके अलावा पच्चीस साल पहले राजधानी में भी क्या आपको युवा लड़कियां स्कूटी, स्कूटर या कार चलाते दिखाई पड़ती थीं? लेकिन आज दिल्ली की सड़कों पर इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। जाहिर है नयी तकनीक ने महिलाओं को आगे बढ़ने के तमाम रास्ते मुहैया कराये हैं।
साक्षरता ने बढ़ाया आत्मविश्वास
सरकारी और गैरसरकारी संगठनों ने महिला साक्षरता को लगातार बढ़ावा दिया है। इसके लिए तमाम प्रचार अभियान चलाए गये। ऐसा नहीं है कि हमने अपने लक्ष्य प्राप्त कर लिये हैं, लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं है कि पिछले लगभग तीन दशकों में हमने महिलाओं की साक्षरता दर में काफी इजाफा किया है। आंकड़े बताते हैं कि 1981 की जनगणना के अनुसार देश में महज 29. 76 फीसदी महिलाएं ही साक्षर थीं, जबकि वर्तमान में महिला साक्षरता दर लगभग 56 फीसदी है। जाहिर है महिलाओं को भी अब यह बात समझ में आ रही है कि शिक्षा उनके लिए कितनी अहमियत रखती है और इसके बिना वे जीवन में कुछ नहीं कर सकती। मां-बाप भी अपनी बेटियों को शिक्षित कराने के लिए आगे आ रहे हैं और यह ट्रैंड शहरों में ही नहीं, बल्कि गांवों, कस्बों और छोटे शहरों में भी साफ देखा जा रहा है।
वर्किंग होने की इच्छा
इस बात से शायद ही कोई इंकार करेगा कि महिलाओं के भीतर पिछले पच्चीस सालों में आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने यानी कामकाजी होने की प्रबल इच्छा पैदा हुई है। इसी का परिणाम है कि कम से कम शहरों में तो वर्किग होना आज महिलाओं की प्राथमिकता में है। और आंकड़े भी लगातार इस बात का दावा करते हैं कि कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। दिलचस्प रूप से अगर हम छोटे शहरों और कस्बों की लड़कियों को देखें तो साफ पता चलता है कि ये लड़कियां पढ़ाई करके, छोटा-मोटा काम सीख कर नौकरी करना चाहती हैं। पिछले ढाई दशकों में महिलाओं के लिए बीपीओ, फ्रंट लाइन ऑफिस, रेडियो जॉकी, सिंगिंग, डांसिंग, बार टेंडर, चीयरलीडर्स जैसे कितने ही नये-नये करियर हैं, जिनके द्वार महिलाओं के लिए खुले हैं और महिलाएं इनमें अपना भविष्य तलाश रही हैं।
एन्टरटेनमेंट इंडस्ट्री में बढ़ता महिलाओं का रुतबा
गौर कीजिये ढाई दशक पहले आप बॉलीवुड की कितनी महिला निर्देशकों और निर्माताओं को जानती थीं? बहुत याद करने भी सई परांजपे जैसे एक दो नाम ही थे, लेकिन आज का परिदृश्य बिल्कुल बदल चुका है। आज बॉलीवुड में फराह खान, मीरा नायर, लीना यादव, गुरविंदर चड्ढा, हेमा मालिनी, जूही चावला, एकता कपूर, मेघना गुलजार जैसी कितनी ही महिलाएं हैं, जो निर्देशक और निर्माता के रूप में बेहतरीन काम कर रही हैं। मजेदार बात है कि लगातार युवा महिला निर्देशकों की संख्या बढ़ रही है। यह नहीं, शादी करने के बाद तमाम ऐसी अभिनेत्रियां हैं, जो अपने पति के साथ फिल्म निर्माण के काम में जुटी हैं। काजोल, ऐश्वर्या राय बच्चन, शिल्पा शेट्टी आज बॉलीवुड में अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। यह सब समाज की सोच में आये बदलाव का ही नतीजा है और यह बदलाव ही साबित करता है कि पिछले पच्चीस सालों में हमने खासी प्रगति की है। लेकिन इस प्रगति पर मुग्ध होने की बजाय हमें उन दूसरे मुद्दों पर काम करना बाकी है, जो महिलाओं की प्रगति में बाधा बने हुए हैं। मिसाल के तौर पर कन्या भ्रूण हत्या, दहेज हत्या, सामाजिक भेदभाव आदि। साथ ही हमें महिला आरक्षण के लिए दबाव भी बढ़ाना होगा, ताकि महिलाओं को देश की संसद में उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।
कैसे जानें कि आपने प्रगति की है?
आगामी आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। जाहिर है इन 100 वर्षों में महिलाओं ने अपने लिए नये रास्ते तलाशे हैं और प्रगति के कई सोपान तय किये हैं। सरकारी आंकड़े भी हमेशा यही कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं ने कमोबेश हर क्षेत्र में प्रगति की है, लेकिन आम और मध्यवर्गीय महिलाएं सरकारी आंकड़ों पर अक्सर यकीन नहीं कर पातीं। तो क्या कोई ऐसा तरीका हो सकता है, जिससे महिलाएं खुद ही यह जान सकें कि उन्होंने कितनी प्रगति की है? जाहिर है 100 सालों की प्रगति की तस्वीर बनाना आसान नहीं है, लेकिन पिछले 25 वर्षों में आपने कितनी तरक्की की, यह जानने के लिए हम आपको एक कारगर तरीका बता रहे हैं। नीचे कुछ सवाल दिये गये हैं, इन सवालों का जवाब आपको हां या ना में देना है, लेकिन जवाब देने से पहले आपको पच्चीस साल पहले की स्थिति को याद रखना है। जाहिर है अपनी प्रगति को आंकने के लिए आपकी उम्र 35-40 के बीच होनी चाहिए।
1.क्या आपके पास कुकर है?2.क्या आपके पास वॉशिंग मशीन है?3.क्या आपके पास गैस है?4.क्या आप मोबाइल का इस्तेमाल करती हैं?5.क्या आपके पास स्कूटी/कार है?6.क्या आपका अपना बैंक अकाउंट है, जिसे आप संचालित करती हों?7.क्या आपके पास कंप्यूटर है?8.क्या आपने अपने नाम से कोई प्रॉपर्टी खरीदी है?9.क्या आप अपनी बेटियों का करियर बनाना चाहती हैं?10.क्या आप बाहर निकलते समय सुरक्षित महसूस करती हैं?11.क्या आप अपने परिवार में होने वाली डिलीवरी अस्पताल में ही होते देखती हैं?12.क्या आप अपनी सुंदरता और स्वास्थ्य के प्रति पहले से ज्यादा जागरूक महसूस करती हैं?13.क्या आप शॉपिंग के लिए मॉल्स जाती हैं?14.क्या आप एन्टरटेनमेंट पर कुछ खर्च करती हैं?15.क्या जिम जाती हैं?16.क्या आपकी ड्रेसेज में कुछ बदलाव आया है?17.क्या आप मॉर्निग वॉक पर जाती हैं? 18.क्या बाहर की दुनिया में आपके आत्मविश्वास में इजाफा हुआ है?19.क्या अपने पति के बिजनेस में कोई भूमिका निभाती हैं?20.क्या आप हवाई जहाज पर यात्रा करती हैं?इन सवालों के जवाब देने के बाद आप देखिये कि आपने कितने सवालों के जवाब हां में दिये। हां में दिये गये हर सवाल के लिए आपको पांच अंक मिलेंगे। यानी यदि आपके दस सवालों का जवाब हां में है, तो आपके कुल अंक हुए 50 यानी आपने पचास फीसदी प्रगति की। और यदि आपके सभी 20 सवालों का जवाब हां है तब आप यकीनन कह सकती हैं कि आपने 100 फीसदी प्रगति की है।
सुधांशु गुप्त
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