Saturday, June 5, 2010

कंट्रोल जेड: जिंदगी में यह कमांड नहीं

लगभग दस साल पहले मैंने कंप्यूटर पर काम सीखना शुरू किया था। दो-तीन दिन के अभ्यास के बाद मैं अपनी स्टोरी खुद कंप्यूटर पर टाइप करना सीख गया। साथ ही मैं काफी सारी कमांड से भी वाकिफ हो चुका था। एक दिन मैंने एक स्टोरी की और किसी गलत कमांड देने से वह स्टोरी उड़ गयी। मैं एकदम घबरा गया। लेकिन मेरे एक मित्र ने मुङो बताया कि कंट्रोल जेड (एक कमांड) करने से गायब हो गयी स्टोरी वापस आ जाती है। उसने कंप्यूटर पर यह कमांड दी और वह स्टोरी वापस आ गयी। यकीन जानिए मुझे बेहद खुशी हुई। मुझे लगा कि यही एक ऐसी कमांड है, जिससे खो गयी, गुजर गयी चीजों को वापस लाया जा सकता है। तब से मुझे कंप्यूटर की यही कमांड सबसे ज्यादा याद है। इस कमांड के बारे में मैं अक्सर सोचता हूं कि काश, जिंदगी में भी कोई ऐसी कमांड होती, जिससे गुजर गये डेढ़-दो दशकों को वापस लाया जा सकता। दिलचस्प बात है कि मैं ही नहीं, चालीस से ऊपर की उम्र के अधिकांश लोगों को यही लगता है कि या तो उनका जन्म डेढ़-दो दशकों बाद हुआ होता या फिर यह सारा विकास उस समय हो गया होता, जब हम किशोर थे, युवा थे।
सुधीर मिश्रा की उम्र 45 साल है और वह मीडिया से जुड़े है। वह अक्सर दुखी से होते हुए कहते हैं, यार हम लोग बड़े गलत समय पर पैदा हुए। काश, हम लोग दस-बीस साल बाद पैदा होते तो जिंदगी में बहुत कुछ देख सकते थे। जब हम बड़े और युवा हो रहे थे तो न कंप्यूटर था, न मोबाइल, न टेलीविजन का ही इतना विस्तार हुआ था और न ही उस समय का समाज इतना उदार था। सुधीर मिश्रा अकेले ऐसे शख्स नहीं हैं। तमाम लोग हैं। वास्तव में ये ठहर सी गयी उम्र के लोग युवाओं की तरह जिंदगी जीना चाहते हैं। इन्हें लगता है कि ये भी अपनी प्रेयसी को एसएमएस भेजें, बिंदास भाव से उनके साथ मैट्रो स्टेशन पर घूमें, मॉल जाएं, सिनेमा देखें और वह सब कुछ करें, जो वे अपनी उम्र में करना चाहते थे, लेकिन सुविधाएं न होने के कारण और माहौल न होने के कारण नहीं कर पाये।
बात सिर्फ जिंदगी को एन्जॉय करने की ही नहीं है। 48 वर्षीय जगमोहन उनियाल कहते हैं कि मैं उस समय बेहद अच्छा गाना गाता था। लेकिन मुझे कोई ऐसा माध्यम नहीं दिखाई पड़ता था, जहां सिंगिंग की मेरी प्रतिभा आकार ले सके। इसलिए बाथरूम में गाते-गाते ही मैं बुढ़ापे की ओर अग्रसर हो गया। काश, उस समय भी इतने टेलेंट हंट प्रोग्राम होते।
आखिर पिछले डेढ़ दशकों में हमारी दुनिया कितनी बदल गयी है, जिनका लाभ 40 की उम्र से ऊपर की पीढ़ी नहीं उठा पाई? कंप्यूटर, मोबाइल, बहुराष्ट्रीय कंपनियां, निजी चैनल, मॉल्स की छोटे शहरों में भी बाढ़ सी आ गयी है। यही नहीं, इस दौरान हमारे मूल्य भी इतनी तेजी से बदले हैं कि हम खुद इस बदलाव पर चकित हैं। पहले जहां प्रेम के इजहार में सालों लग जाते थे, वहीं अब लड़के और लड़कियां भी बिना वक्त गंवाएं ऐसा कर लेते हैं। जब तक रिश्ता चला ठीक, वरना दूसरा घर देखो। प्रेम की जो काल्पनिक दुनिया थी, वह अब ठोस जमीन अख्तियार कर चुकी है। लिहाजा 40 से ऊपर के लोगों को लगता है कि क्यों न वे इस दौर में पैदा हुए?
लेकिन क्या सचमुच पुराने दौर में, अपनी उसी उम्र के साथ लौटना संभव है, जो गुजर चुकी है? समाजशास्त्री कहते हैं कि वक्त कभी लौट कर नहीं आता, लेकिन हर दौर में हर व्यक्ति को यह लगता है कि काश, उसका कुछ गुजरा हुआ समय वापस आ जाए, ताकि वह उसे और बेहतर ढंग से जी सके। और यह भी सच है कि किसी भी समाज में तकनीकी स्तर पर ही नहीं, बल्कि हर स्तर पर बदलाव और विकास होता रहता है। यह बदलाव भविष्य की पीढ़ियों के लिए होता है। इसलिए बेहतर यही है कि अपनी वर्तमान उम्र को अपने वर्तमान स्वरूप में ही जीया जाए। चालीस से पचास के बीच की उम्र भी आपको कुछ भी सीखने से नहीं रोकती और अपने आसपास आपको तमाम ऐसे लोग मिल जाएंगे, जो इसी उम्र में नयी तकनीक से वाकिफ हो रहे हैं और बाजार में अच्छा काम कर रहे हैं। आप भी खुद को फिट रख सकते हैं, म्यूजिक और डांस में रुचि ले सकते हैं और अपना मेकओवर कराकर खुद को युवा बनाए रख सकते हैं। और जहां तक रूमानियत का सवाल है तो आप अपने बच्चों और अन्य युवाओं को देखकर इस बात पर खुश हो सकते हैं कि जो आपको अपनी उम्र में नहीं मिला, वह नयी पीढ़ी को मिल रहा है।
आज मुझे कंप्यूटर पर काम करते हुए दस साल हो गये हैं और अब मैं समझ गया हूं कि कंट्रोल जेड कमांड का इस्तेमाल केवल तभी हो सकता है, जब तक आप कोई और कमांड न दें। और जिंदगी में तो हम सैकड़ों कमांड दे चुके हैं। इसलिए जिंदगी में कंट्रोल जेड संभव ही नहीं। ऐसे में यदि जिंदगी की कोई स्टोरी उड़ गयी है तो पुरानी इबारतों के मोह में न पड़कर अपनी जिंदगी की स्लेट पर नयी इबारत लिख लें। सुधांशु गुप्त

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