Saturday, June 5, 2010

शादियों का मौसम और बदलते रुझान

ये शादियों का मौसम है-अपना पार्टनर ढूंढ़ने का मौसम। भारत में इस मौसम में जितनी शादियां होती हैं, उतनी शायद ही किसी और मौसम में होती होंगी। इसलिये यह सही मौका हो सकता है, जब हम युवाओं की बदलती प्राथमिकताओं पर एक नजर डालें और यह जानने की कोशिश करें कि वैश्वीकरण, आर्थिक उदारीकरण और तकनालॉजी के विकास के इस दौर में अपना पार्टनर चुनने को लेकर इनसानी सोच में क्या बदलाव आए हैं। लेकिन इससे पहले यह जनना भी बेहद जरूरी है कि इन बदलावों से पहले जो जोड़ियां बनती थीं, उनकी क्या प्राथमिकताएं थीं। यदि तीन दशक पहले के ववाहिक मौसम को याद करें तो जो तस्वीर दिखाई पड़ती है, उसमें लड़के चाहते थे कि उनकी भावी जीवन संगिनी सुंदर हो, उसका रंग गोरा हो, पढ़ी-लिखी हो (बेशक बहुत ज्यादा नहीं) और घरेलू कामकाज में दक्ष हो, सलीके से घर को संभाल सके। और लड़कियां अपने भावी राजकुमार का जो सपना देखती थीं (हालांकि उनके सपनों की डोर भी मां-बाप के ही हाथ में थी)उसमें लड़के का ठीकठाक होना और नौकरीपेशा होना ही अहम बात थी। लेकिन अब संसार बदल गया है, बदल रहा है। अब विवाह को लेकर लड़कियों के अपने सपने हैं और लड़कों के अपने। ऐसा नहीं है कि मां-बाप ने अपने बच्चों की शादियों को लेकर सपने देखने बंद कर दिये हैं। लेकिन अब मांबाप यह कोशिश कर रहे हैं कि वे अपने बच्चों के सपनों को ही अपना सपना बना सकें।
हाल ही में शादी.कॉम नामक एक वेबसाइट ने इस संदर्भ में एक सव्रे किया और उसके दिलचस्प नतीजे सामने आये। बेशक इस दौरान दुनिया बहुत बदली, लेकिन जो चीज नहीं बदली, वह थी गोरे रंग के प्रति लोगों का आकर्षण यानी विवाह के बाजार में आज भी गोरे रंग की काफी मांग है। सव्रे की रिपोर्ट बताती है कि 49 फीसदी लोग आज भी गोरे रंग के पार्टनर को पसंद करते हैं, जबकि 42 फीसदी लोगों के लिए रंग कोई महत्व नहीं रखता। जिस राज्य के सबसे ज्यादा लोग गोरे रंग पर फिदा होते हैं, वह है राजस्थान। जबकि गुजरात ऐसा राज्य है, जहां पुरुषों के लिए रंग सबसे कम अर्थ रखता है। और महाराष्ट्र में सबसे कम लड़कियां गोरे रंग के पुरुषों को पसंद करती हैं।
प्रेम ना देखे जातएक समय था, जब हमारे यहां शादियों में सबसे पहले इनसान की जाति देखी जाती थी (गांवों, कस्बों और छोटे शहरों में अब भी जाति ही सर्वोच्च प्राथमिकता पर है), लेकिन महानगरों में रहने वाली युवा पीढ़ी ने शादियों के मामले में जाति की प्राथमिकता को अब पीछे छोड़ दिया है। निजी तौर पर युवाओं के लिए जाति अब बहुत ज्यादा मैटर नहीं करती। सव्रे की रिपोर्ट बताती है कि लगभग 52 फीसदी लड़कों और 48 फीसदी लड़कियों के लिए अब जति ज्यादा अहमियत नहीं रखती। हालांकि अभिभावकों के लिए यह बात उतनी सही नहीं है। 38 फीसदी लड़के के माता-पिता और 47 फीसदी लड़की के माता-पिता अभी भी विवाह के लिए जाति को अहमियत देते हैं। लेकिन दिलचस्प रूप से राजधानी दिल्ली को जाति के मामले में सबसे उदार पाया गया। और केरल, जहां साक्षरता सौ फीसदी है, ऐसा राज्य पाया गया, जहां लोग अपनी ही जति में विवाह करना पसंद करते हैं।
कुंडली नहीं, योग्यता को महत्वसर्वे के अनुसार, कुंडली मिलाने की परंपरा भी अब बासी पड़ती दिखाई दे रही है। युवाओं का मानना है कि अब कुंडली मिलाने से अच्छा है कि हम अपने पार्टनर के गुण-दोष देखें। दिलचस्प रूप से लोगों ने कुंडली मिलाने की बजाय योग्यता पर ज्यादा बल देने का समर्थन किया। हां, 24 फीसदी लोग कुंडलियों के पक्ष में थे। परंपराओं के पोषक इन लोगों का मानना है कि वे किसी भी व्यक्ति से शादी करने से पहले कुंडलियों का मिलान अवश्य करेंगे, ताकि भविष्य में उनकी शादी को कोई खतरा न हो।
पार्टनर को जानने की चाहतपहले की तरह अब लड़कियां किसी भी अनदेखे व्यक्ति से विवाह करने को तैयार नहीं हैं। वह चाहती हैं कि शादी से पहले वे अपने होने वाले पति को जानें और समङों। यदि वह अनुकूल पाया जाए, तभी उससे शादी की जाए। लड़कियों की दृष्टि से यह एक बहुत बड़ा बदलाव है और यह बदलाव यह संकेत दे रहा है कि लड़कियों की दुनिया अब बदलने लगी है। सर्वे के आंकड़े भी इसी बात की गवाही देते हैं। आंकड़ों के अनुसार, 88 फीसदी लड़कियां चाहती हैं कि वे अपने भावी पति को विवाह से पहले ही अच्छी तरह जानें और समङों, जबकि 73 फीसदी लड़के इस बात के पक्ष में हैं कि विवाह से पहले उन्हें अपनी जीवन संगिनी को अच्छी तरह जनना और समझना चाहिए। लड़के के मां-बाप भी इस बात के समर्थन में हैं कि उनके बेटे को शादी से पहले लड़की को अच्छी तरह जानना चाहिए। 40 फीसदी लड़के ऐसा पाये गये, जो अपनी पार्टनर के साथ शादी से पहले समय बिताने के पक्षधर थे और 42 फीसदी लड़कियों ने माना कि अपने पार्टनर को जानने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि उसके साथ अधिक से अधिक समय बिताया जाए। यह इशारा है कि आज की युवा पीढ़ी प्रेम विवाह की पक्षधर है।
प्रोफेशन अब भी अहमियत रखता हैएक लंबे समय तक विवाह के बाजार में डॉक्टरों और इंजीनियरों की जबरदस्त मांग रही है। हर मां-बाप अपनी बेटी के लिए इन्हीं दोनों पेशों का वर चाहते रहे हैं। मजेदार बात है कि दुनिया के इतना बदलने के बावजूद इस रुझान में कोई खास फर्क नहीं आया। 30 फीसदी लोग अब भी इन्हीं पेशों को अहमियत देते हैं। इसका मूल कारण शायद यह है कि इनमें स्थायित्व है। हां, अब लड़कों की सोच भी इस बात को लेकर बदली है कि उनकी पत्नी को काम नहीं करना चाहिए। अब 47 फीसदी लड़के, (अधिकांश महानगरों में रहने वाले) कामकाजी पत्नी चाहते हैं। जाहिर है छोटे शहरों और कस्बों में रहने वालों की तुलना में महानगरों में रहने वालों की यह ज्यादा इच्छा होगी कि उनकी पत्नी कामकाजी हो। आठ शीर्ष महानगरों के 51 फीसदी युवक कामकाजी पत्नी को प्राथमिकता देते हैं, जबकि छोटे शहरों और कस्बों में रहने 44 फीसदी युवक कामकाजी पत्नी चाहते हैं। दिलचस्प रूप से 50 फीसदी से ऊपर महिलाओं ने यह माना कि शादी के बाद उनका काम करते रहना उनके पति पर निर्भर करता है।

सुधांशु गुप्त

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