Thursday, March 8, 2012

हाथी तो ‘साहब’ बन गया!

सुधांशु गुप्त



चुनाव आयोग ने जब से उत्तर प्रदेश में बसपा के चुनाव चिह्न ‘हाथी’ को पर्दे में रखने की बात कही, तब से लगभग सभी चुुनाव चिह्न परेशान से हैं। वे सभी हाथी के प्रति सहानुभूति प्रकट करना चाहते थे। वे इसे हाथी के अपमान के तौर पर ले रहे थे। लिहाजा, सभी चुनाव चिह्नों ने इसके लिए एक आपात बैठक बुलाई। बैठक में हाथ, कमल, साइकिल, लालटेन, हंसिया-हथौड़ा, हैंडपंप जैसे काफी चुनाव चिह्न शामिल हुए। हाथी को सभापति बनाया गया। ऐसे करने के पीछे सभी चुनाव चिह्नों की मंशा थी कि उसके दर्द को कुछ कम किया जाए। हाथी खुद पर पॉलिथिन डालकर आया।



साइकिल ने बैठक की घोषणा करते हुए कहा, जिस तरह आचार संहिता का बहाना बनाकर हाथी कोे ढकने के लिए कहा गया है, उससे हम सब आहत महसूस कर रहे हैं। दुख की इस घड़ी में हम सब ‘हाथी’ के साथ हैं। हाथी को ढकना उसके अस्तित्व के साथ खिलवाड़ करना है। कमल के विचार थोड़े अलग थे। कमल ने कहा, आचार संहिता का पालन करना जरूरी है और ऐेसे में हाथियों को परिधान पहनाना मुझे गलत नहीं लगता। इस सबके बावजूद हाथी के अस्तित्व पर आए संकट में हम सब उसके साथ हैं। हाथ हमेशा की तरह ही देश और धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में बोलता दिखाई दिया। हाथ ने कहा, ‘यूं तो यह सारा मामला चुनाव आयोग से जुड़ा है, इसलिए इस पर कोई टिप्पणी करना गलत होगा। हम सब ही इस आचार संहिता से बंधे हैं। इसलिए हमें इसका पालन करना ही होगा।



लालटेन के बोलने की बारी आई, तो उसने मजाकिया लहजे में कहा, ‘तुम सब लोग आज जो हुआ है, उसे देख रहे हो। हम तो इससे आगे की देखता हूं़.़.मान लीजिए कल को यहां के गांवों और दूर दराज के इलाकों में लोग रात ललटेनवा जलाकर अपने घर में रोशनी कर रहे हैं, तो इ का आचार संहिता का उल्लंघन होगा? चुनाव आयोग का सबको ललटेनवा पर कपड़ा डालने के लिए कहेगा? ऐसे में हम सबको हाथी के साथ खड़े होना चाहिए, और इसी वास्ते हम यहां इकट्ठे हुए हैं।’



हंसिया-हथौड़े ने मानवीयता की बातें करते हुए हाथी के साथ पूरी सिम्पैथी दिखाई। अंत में हाथी को बोलना था। हाथी ने कहा, ‘आप सबका शुक्रिया, जो आप सब लोग यहां आए। लेकिन सबसे पहले मैं यह कहना चाहता हूं कि मुझे अपने ढके जाने की बेहद खुशी है। यह चुनाव आयोग ही था, जिसने मुझ जैसे विशालकाय चुनाव चिह्न के बारे में सोचा। घोर सर्दी के इस मौसम में खुले में खड़े रहना भला किसे अच्छा लगता है? तो सबसे पहले मैं चुनाव आयोग का शुक्रगुजार हूं कि उसने मुझे कपड़े पहनने का मौका दिया। जहां तक इस बात का सवाल है कि इससे मेरे आकाओं को नुकसान होगा, तो यह भी एकदम गलत बात है। मेरा आकार इतना बड़ा है कि मुझे चाहे जिस तरह से भी ढका जाए, मैं दिखाई देता रहूंगा। मुझे ढकने से, अब मुझे ज्यादा आसानी से पहचाना जा सकता है। इसका फायदा मेरे आकाओं को ही होगा। लेकिन मेरी चिंता यह है कि चुनावों के बाद फिर से मुझे नंगा कर दिया जाएगा। वह स्थिति मेरे लिए ज्यादा खराब होगी। मैं आप लोगों से सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूं कि हम चुनाव चिह्नों की स्थिति आम जनता की तरह है। जैसे ही चुनाव आते हैं, हमारी पूछ शुरू हो जाती है और चुनाव जीतने के बाद हमें उसी तरह हाशिए पर डाल दिया जाता है, जैसे राजनीतिक पार्टियां वोटरों को ‘खुड्डे लाइन’ कर देती हैं। इसलिए हमें अपनी एकता को बनाकर रखना चाहिए। हम सब पोस्टरों पर एक साथ चिपके दिखाई पड़ते हैं, हमारे ही नाम पर पार्टियां वोट प्राप्त करती हैं, हमारे ही नाम पर चुनाव हारे और जीते जाते हैं, लेकिन हमें क्या मिलता है? इसलिए मैं आप सबसे इतनी ही दरख्वास्त करूंगा कि हम सबको एक साथ रहना चाहिए और मुझे ढके जाने पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। इसके साथ ही सभा खत्म हो गई और सारे चुनाव चिह्न वापस लौट गए। (लेखक वरिष्ठ कहानीकार हैं)

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