Thursday, March 8, 2012

लोकतंत्र पर चोट

काले धन पर सरकार की मुखालफत करने वाले योग गुरु बाबा रामदेव पर एक कार्यक्रम के दौरान एक व्यक्ति ने स्याही फेंककर हमला किया, तो देश की राजनीति में एक बार फिर उबाल आ गया और कांग्रेस तथा भाजपा एक-दूसरे पर दोषारोपण करने लगी। हिंसक तरीके से विरोध या आलोचना करना क्या उचित है? क्या लोकतंत्र का अर्थ यही होता जा रहा है? समाज के लगभग हर वर्ग की प्रतिक्रिया क्या है? बता रहे हैं सुनील वर्मा, संदीप ठाकुर और सुधांशु गुप्त...




सरकार का विरोध करने वालों से अभद्र व्यवहार क्यों?



-राजीव प्रताप रूड़ी (भाजपा प्रवक्ता)



ऐसी घटनाएं बार-बार हो रही हैं, पहले टीम अन्ना के सदस्य प्रशांत भूषण के साथ मारपीट की गई। बाद में यूपीए सरकार के सहयोगी और केंद्रीय मंत्री शरद पवार के साथ दुर्व्यवहार किया गया। इन सभी लोगों का कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी मुद्दे पर सरकार और कांग्रेस के साथ विरोध था और इन सभी के साथ अभद्रता हुई। इसलिए हमें आशंका हैै कि बाबा रामदेव के साथ जो घटना हुई, उसके पीछे यूपीए और कांग्रेस भी हो सकती है। क्योंकि कांग्रेस बाबा रामदेव के साथ विद्वेष के साथ व्यवहार कर रही है।



लोकतंत्र में हमले का हक नहीं



-अरुण जेटली (राज्य सभा में भाजपा के नेता)



इस तरह की हरकत के लिए लोकतंत्र में कोई जगह नहीं है। लोकतंत्र में आलोचना करने का तो सभी को हक है, लेकिन इस तरह का हमला नहीं होना चाहिए। बाबा पर हमला करने वाले के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसा लगता है कि लोगों में विरोध करने की इस बढ़ रही प्रवृत्ति को कुछ राजनीतिक दलों से जुडेÞ लोग बढ़ावा दे रहे हैं।



सुर्खियों में आने के हथकंडे



-लालू प्रसाद यादव (राजद अध्यक्ष)



नेताओं से जूतम-पैजार करना, जूता-चप्पल चलाना, मारपीट करना, कालिख पोतना जैसे कृत्य कुछ लोगों के लिए प्रचार पाने का हथियार बन गए हैं। सुर्खियों में आने के लिए लोग जिस तरह डेमोक्रेसी की हत्या कर रहे हैं, वह ठीक नहीं है। किसी भी पार्टी के नेता या संस्था से विरोध जताने का सबको अधिकार है, लेकिन इस तरह नहीं।



बाबा रामदेव जैसा बोलेंगे, वैसा पाएंगे



-दिग्विजय सिंह (कांग्रेस के महासचिव)



बाबा रामदेव जैसा बोलेंगे, वैसा ही पाएंगे। वे योग छोड़ कर राजनीति कर रहे हैं। उनका असली चेहरा देश रामलीला मैदान में देख चुका है, जब वे समर्थकों को असहाय छोड़ औरतों की ड्रेस में वहां से खिसक लिए थे। वैसे भी चुनाव यूपी में हो रहे हैं, उन्हें दिल्ली जाकर प्रेस कांफ्रेंस करने की क्या जरूरत थी? इसी से उनकी मंशा का पता चलता है। जिस व्यक्ति ने उन पर स्याही फेंकी है, मुझे संदेह है कि उसका एनजीओ भाजपा पोषित है। दोनों की जांच होनी चाहिए।



विरोध का तरीका गलत



-राशिद अल्वी (कांग्रेस प्रवक्ता)



प्रजातंत्र में ऐसा नहीं होना चाहिए। यदि सबको अपनी बात-विचार रखने की स्वतंत्रता है, तो विरोध का भी अधिकार है। बाबा रामदेव के संवाददाता सम्मेलन में युवक ने विरोध किया, लेकिन उसके विरोध का तरीका गलत था।



विरोध भी सहना पड़ेगा



-मनीष तिवारी (कांग्रेस प्रवक्ता)



घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। परंतु हर किसी को किसी भी राजनीतिक व्यक्ति व दल का विरोध करने का अधिकार है। बाबा यदि राजनीति करने के लिए हैं, तो उन्हें विरोधों का सामना तो करना ही पड़ेगा। जहां तक देश में काला धन वापस लाए जाने की बात है, तो इसे लेकर बाबा से अधिक कांग्रेस सरकार चिंतित है। सिर्फ शोर मचाने से काला धन तो वापस आ नहीं जाएगा। वैसे भी अभी चुनावी माहौल है। हर किसी को नाप-तोल कर बोलना चाहिए।



तिल का ताड़ न बनाए मीडिया



-राजीव शुक्ला (कांग्रेसी सांसद)



विरोध तो लोकतंत्र का हिस्सा है। लेकिन उस युवक ने विरोध जताने के लिए बाबा रामदेव पर स्याही क्यों फेंकी, यह जांच का विषय है। हो सकता है, उस युवक का कोई इस्तेमाल कर रहा हो या युवक प्रचार पाना चाहता हो। अधिकांश छोटी-मोटी घटनाओं को तो मीडिया ही मुद्दा बना देता है।



गुस्से का इजहार



आज जो भी हुआ, उसके पीछे कोई ठोस कारण दिखाई नहीं देता। हालांकि लोग अपनी बात कहना चाहते हैं, तो उसके लिए और कोई जरिया भी अपनाया जा सकता है। हां, ऐसे कामों पर रोक लगाना तो मुश्किल है, लेकिन यह भी सच है कि इस तरह की घटनाएं आम लोगों के गुस्से का रिएक्शन हैं। इन सबके पीछे पॉलिटिकल कारण भी जिम्मेदार हैं और यदि लगातार ऐसी घटनाएं हो रही हैं, तो उन कारणों को जानने की कोशिश करनी चाहिए। यदि बाबा रामदेव पर स्याही फेंकी गई है, तो उस व्यक्ति को पिटवाने के बजाय उससे कारण पूछना चाहिए था कि उसने ऐसा क्यों किया। वैसे भी आपको कानून अपने हाथ में लेने का कोई हक नहीं है।



--अरविंद गौड़, अन्ना के साथी और रंगकर्मी



लोकतंत्र का मजाक



मैं ऐसी चीजों को बिल्कुल सपोर्ट नहीं करूंगी। चूंकी आम आदमी में गुस्सा है और उसकी बात सुनने वाला कोई नहीं है। इसीलिए आम आदमी ऐसा कर रहा है और करता है। हालांकि लोग फेमस होने के लिए भी इस तरह की हरकतें करने लगे हैं। वैसे भी आम आदमी में इतनी हिम्मत नहंीं कि वह ऐसे काम करे। एक आशंका यह भी हो सकती है कि इस तरह के काम विपक्षी पार्टी के लोग करवाते हैं। मुझे लगता है कि इससे हमारा लोकतंत्र एक नई ही दिशा में बढ़ रहा है।



--बेला नेगी, निर्देशक



कारण जानना जरूरी



हाल ही में बिग बॉस जीत कर लोकप्रियता पाने वाली टीवी अभिनेत्री जूही परमार बहुत डिप्लोमेटिक होकर इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं। वह कहती हैं, पहली बात तो कोई भी कमेंट करने से पहले चीजों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए, लेकिन फिर भी यदि लगातार ऐसी हरकतें हो रही हैं, तो यह जानना जरूरी है कि इसके पीछे कारण क्या है। किसी ने ये काम किया है, तो क्यों किया है। किसी भी घटना के पीछे के कारण को जानकर ही आगे की कोई कार्रवाई करनी चाहिए और आगे ऐसा ना हो, इसके लिए कारगार कदम उठाने चाहिए। आंख बंद करके स्याही फेंकने वाले को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए। -- जूही परमार, अभिनेत्री



शर्मनाक हरकत



यदि समाज में ऐसी कोई भी घटना होती है, तो ये अशोभनीय है। लोकतंत्र का मजाक उड़ाने वाली बात है। आपको स्वतंत्रता मिली है, तो उसके साथ खिलवाड़ ना करें। जूता और स्याही फेंकने, जैसी ओछी हरकतें वाकई निंदनीय हैं। ऐसी आचार-संहिता बनानी चाहिए, जिसमें ऐसे काम करने वालों को दंड का प्रावधान दिया जाए। यदि ऐसी कोई आचार संहिता है, तो उसे और सख्त कर देना चाहिए। पुतला जलाना, लोगों पर कीचड़ फेंकने के बजाय आप कैंडिल मार्च निकालें, काली पट्टी बांधें ये भारतीय संस्कृति के खिलाफ नहीं होगा और न ही असभ्य और अशोभनीय होगा। ऐसी घिनौनी हरकतें वाकई शर्मनाक हैं। ऐसी हरकतें भारतीय लोकतंत्र को शर्मिंदा ही करेंगी।



--हरीश नवल, व्यंग्यकार-कहानीकार

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