Thursday, March 8, 2012

क्या होता है जब ऊबने लगते हैं दो दिल

वक्त के साथ प्यार की परिभाषा भी बदलने लगी है। नए दौर की नई तहजीब ने इस बात को भी गलत साबित कर दिया है कि जिन रिश्तों की बुनियाद मजबूत होती है, वे ज्यादा समय तक जीवित रहते हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या नए दौर के प्रेमियों के लिए प्यार कोई वस्त्र है, जिसे पहनते-पहनते आप ऊब सकते हैं और फिर नए वस्त्र की तलाश में लग जाते हैं? या आज के दौर का युवा इतना वाचाल हो गया है कि पलक झपकते ही वह अपना पार्टनर बदलना चाहता है? इन्हीं सवालों का जवाब लेकर पेश है ब्रेकअप की दूसरी किश्त...




सुधांशु गुप्त



व्यक्ति अपना पहला प्यार कभी नहीं भूलता। पहला प्यार उम्र भर इंसान का पीछा करता है, लेकिन वक्त ने पहले प्यार की इस परिभाषा को भी बदल दिया है। अब इन्सान अपने अंतिम प्यार को ही याद रखता है और उसी के साथ जीना मरना चाहता है। नए दौर ने प्यार के लिए अनंत संभावनाएं पैदा कर दी हैं। यह कभी भी, कहीं भी और किसी भी उम्र में हो जाता है। और, हर नया प्यार पहले प्यार की यादों को धुंधला कर देता है। नए दौर की नई तहजीब ने इस बात को भी गलत साबित कर दिया है कि जिन रिश्तों की बुनियाद मजबूत होती है, वे ज्यादा समय तक जीवित रहते हैं।



अरण्या मयूर विहार में रहती हैं। समरविले पब्लिक स्कूल में उनकी स्कूली शिक्षा वर्ष 2005 में पूरी हुई। स्कूल में ही और तमाम दोस्तों के साथ अरण्या का एक दोस्त था-अंश। छठी क्लास से दोनों साथ थे। दोनों साथ स्कूल आते और साथ ही वापस जाते। दोनों एक-दूसरे को बड़ा होते देख रहे थे। प्यार क्या होता है, तब तक ये दोनों शायद नहीं जानते थे, लेकिन बालपन से ही दोनों एक-दूसरे की कमी महसूस करने लगे थे और दोनों में हर चीज को लेकर शेयरिंग होने लगी थी। जैसे-जैसे दोनों बड़े होते गए, एक-दूसरे को पसंद करने लगे। बारहवीं में अंश ने अपने दिल की बात अरण्या को बता दी। अरण्या अंश को बचपन से ही पसंद करती थी, लेकिन यही प्यार है, इसका अहसास उसे अंश के प्रपोज करने के बाद हुई। दोनों ने साथ ही बारहवीं पास की। स्कूल की बंदिशों से बाहर आते ही दोनों एक-दूसरे के और करीब आने लगे। अरण्या ने आईपी कॉलेज में एडमिशन लिया और अंश कॉरेस्पोंडेंस से ग्रेजुएशन करने लगा। अरण्या पढ़ाई-लिखाई में काफी होशियार थी, जबकि अंश का पढ़ने-लिखने में मन नहीं लगता था। फिर भी कॉलेज लाइफ दोनों के लिए प्रेम की पींगें बढ़ाने का मंच साबित हुआ।



दोनों साथ-साथ घूमते, रेस्तरा-मॉल जाते और जीवन और भविष्य को लेकर हजारों सपने देखते। कॉलेज के दिनों में ही दोनों ने प्यार के पहले चुंबन को भी महसूस किया था। प्यार उन्हें जितना ऊंचा उड़ा सकता था, उतना ऊंचा उड़ा रहा था। दोनों ने अपनी-अपनी ग्रेजुएशन भी पूरी कर ली। इसके बाद भी दोनोें के प्रेम में कोई कमी नहीं आई। ग्रेजुएशन के बाद अंश एक बीपीओ में नौकरी करने लगा और अरण्या डीयू से ही जर्मन भाषा का कोर्स करने लगी। अंश के नौकरी करने की वजह से दोनों की मुलाकातें जरूर कम हो गई थीं, लेकिन प्यार की कशिश अब भी बरकरार थी। दोनों के घरवाले भी इस रिश्ते के बारे में जानते थे। जब अरण्या के घरवाले शादी के लिए दबाव डालने लगे, तो उसने अंश से इस बारे में बात की। अंश ने कोई साफ जवाब नहीं दिया। उसने कहा, ‘मैं शादी के लिए अपने पैरेंट्स को मनाने की कोशिश करूंगा।’ इसका सीधा-सा अर्थ था कि अंश के माता-पिता इस शादी के लिए राजी नहीं थे। अरण्या को भी लगा कि चलो ठीक है, अंश के घरवाले भी देर-सवेर राजी हो ही जाएंगे। अरण्या अंश को अपना हमसफर मान ही चुकी थी, बस इस पर घरवालों की मुहर लगनी बाकी थी। दोनों के रिश्ते को लगभग नौ साल का समय हो चुका था, लेकिन दोनों की अंतरंगता बढ़ती ही जा रही थी। दोनों के बीच वह रिश्ता भी बन चुका था, जिसे सभ्य समाज शादी के बाद ही स्वीकार करता है।



अरण्या ने अचानक पाया कि अंश का व्यवहार कुछ बदल रहा है। अब वह मुलाकात के लिए पहले की तरह बेचैन दिखाई नहीं पड़ता। किसी-ना-किसी काम के बहाने वह मुलाकात को टाल देता है। अब तक अरण्या भी एक अच्छी नौकरी प्राप्त कर चुकी थी। उसकी योग्यता और सुंदरता में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी। वह अंग्रेजी, हिंदी, कुमाऊंनी के अलावा जर्मन भाषा भी सीख चुकी थी। हैसियत के मामले में भी वह अंश से किसी तरह कम नहीं थी। एक दिन बहुत जिद करने पर जब अरण्या ने अंश को मिलने के लिए बुलाया, तो अंश अनमना-सा आ गया। दोनों एक रेस्तरां में बैठे। यहीं पहली बार अरण्या ने शराब का स्वाद चखा। अरण्या ने अंश से अपनी शादी के बारे में बात करते हुए कहा, अंश हमें लगता है कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए। अंश पहले, तो कुछ देर खामोश बैठा रहा फिर उसने कहा, अरण्या मेरे घरवाले इस शादी के लिए राजी नहीं हो रहे। मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूं?



अरण्या के चेहरे पर पल भर में ही हजारों भाव आकर चले गए। फिर भी उसने सोचा कि हो सकता है, अंश सही कह रहा हो। उसने अंश को काफी समझाने की कोशिश की। अंत में खीझ कर अंश ने कहा, ‘अरण्या, मैं तुमसे बोर हो चुका हूं और अब मैं तुमसे मुक्त होना चाहता हूं।’ अरण्या को लगा मानो, उसके पैरों तले की जमीन किसी ने अचानक निकाल ली हो। फिर भी उसे अंश की बात पर यकीन नहीं हुआ। उसे ऐसा लगा मानो, अंश उसके प्यार की कोई परीक्षा ले रहा हो। अरण्या ने फिर कहा, ‘पर अंश मैं तुमसे प्यार करती हूं...नौ साल से हम एक-दूसरे के कितने करीब आ चुके हैं, यह तुम भी जानते हो? और, अब अचानक तुम कह रहे हो, तुम मुझसे बोर हो गए हो?’



बहुत तलाशने के बाद भी अरण्या को अंश की आंखों में वह प्यार कहीं दिखाई नहीं दिया, जिसे वे दोनों पिछले नौ सालों से पाल-पोस रहे थे। इस तरह दोनों के बीच ब्रेकअप हो गया। कुछ दिन तो अरण्या बहुत ज्यादा अपसेट रही। प्रेम की छाया से बचने के लिए उसने दिल्ली शहर तक छोड़ दिया। फिर उसे लगा कि जिस लड़के ने उसके प्यार की कद्र नहीं की, उसके लिए क्या रोना? वह अपनी दुनिया में मसरूफ हो गई। अपने काम और करियर को उसने पहली प्राथमिकता बना लिया। कई बार जब अतीत उसे बहुत ज्यादा परेशान करने लगा, तो उसने कई बार अंश को फोन किया और मिलने की इच्छा जताई। अंश ने यह कहकर मिलने से मना कर दिया कि पुरानी चीजों को कुरेदने से क्या फायदा। बाद में अरण्या को यह भी पता चल गया कि अंश के किसी और लड़की से संबंध बन गए थे, इसीलिए उसने अपने पहले प्यार को छोड़ दिया।



सवाल फिर वही उठता है कि आखिर अरण्या और अंश के बीच का यह प्यार कैसा था, जो नौ साल में भी इतना घनिष्ठ नहीं हो पाया? क्या सचमुच ये दोनों एक-दूसरे से प्यार करते भी थे या यह महज दोस्ती थी, जिसे दोनों ने एक साथ जिया? क्या जिंदगी के किसी भी मोड़ पर कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से ऊब सकता है, जिस तरह अचानक अंश अरण्या से ऊब गया था? क्या नए दौर के प्रेमियों के लिए प्यार कोई वस्त्र है, जिसे पहनते-पहनते आप ऊब सकते हैं और फिर नए वस्त्र की तलाश में लग जाते हैं? या आज के दौर का युवा इतना वाचाल हो गया है कि पलक झपकते ही वह अपना पार्टनर बदलना चाहता है? क्या जिंदगी की हर चीज में शामिल अस्थायित्व अब प्यार में भी शामिल हो चुका है? क्या बाजार के दर्शन ने प्यार को भी बाजारू बना दिया है?



कुछ दिन अंश से बिछड़ने का मातम मनाने के बाद अरण्या का भी एक-दूसरे लड़के से अफेयर हो गया। अब वह अंश का नाम भी नहीं लेती। उसे शायद यह याद भी नहीं है कि अंश नाम के किसी लड़के से वह बेपनाह मोहब्बत करती थी। अब अरण्या का प्रेमी फ्रांस में रहता है। दोनों एक-दूसरे से इंटरनेट के जरिए दिन-रात बातें करते हैं और जब वह दिल्ली आता है, तो अरण्या को लगता है कि सारी कायनात दिल्ली में आ गई है।

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