Thursday, March 8, 2012

कंप्यूटर बदल रहा है हमारे सपने, हमारी सोच .




सुधांशु गुप्त .

मुंबई में एक छोटा-सा गांव है कल्याण। लगभग एक दशक पहले तक इस गांव में एक भी टेलीफोन नहीं था। साथ ही केवल एक ही सेकेंडरी स्कूल था। सन् 2001 में एक गैर सरकारी संगठन की मदद से इस स्कूल को एक कंप्यूटर गिफ्ट के रूप में मिला।



इस स्कूल के छात्रों ने इससे पहले कभी कंप्यूटर का नाम तक नहीं सुना था। जब स्कूल की ही एक लड़की श्रद्धा डिंबले को की बोर्ड का इस्तेमाल करते हुए अपना नाम लिखने के लिए कहा गया तो लड़की को पसीना आ गया। वह बुरी तरह नर्वस हो गयी।



लेकिन स्कूल में कंप्यूटर की एंट्री के कुछ ही महीने बाद एक अमेरिकन न्यूज चैनल की टीम उस गांव में पहुंची। उन लोगों को यह देख कर बेहद आश्चर्य हुआ कि श्रद्धा बेहद सहजता से कंप्यूटर को ऑपरेट कर रही है। उन लोगों को तब और भी आश्चर्य हुआ, जब श्रद्धा ने उन्हें बताया कि उसने कम्प्यूटर पहली बार कुछ माह पहले ही देखा था।



इस कंप्यूटर ने दिलचस्प रूप से श्रद्धा के सपने भी बदल दिये। श्रद्धा ने इस अमेरिकन टीम को बताया कि वह कंप्यूटर टीचर बनना चाहती हैं।



यह श्रद्धा और महाराष्ट्र के गांव कल्याण की ही कहानी नहीं है। भारत में कम्प्यूटर क्रांति ने सचमुच दूरदराज के गांवों का चेहरा और वहां रहने वाले लोगों के सपनों तक को बदल दिया है। आज गांवों के किसानों से लेकर देहात के स्कूलों तक में बच्चों कंप्यूटर का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह अकारण नहीं है कि आज भारत में करोड़ों लोग कम्प्यूटर का इस्तेमाल कर रहे हैं।



मजेदार बात यह है कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में, कई इलाकों में बिजली की दिक्कत को देखते हुए ग्रामीण लोग कम्प्यूटर चलाने के लिए कार और ट्रकों की बैटरी तक इस्तेमाल कर रहे हैं। गांवों के विकास और उन्हें कंप्यूटर एजुकेशन देने के लिए अनेक सरकारी और गैर सरकारी संगठन सक्रिय हैं। कंप्यूटर ने शहरों के युवाओं को जहां उड़ने के लिए आकाश दिया है, वहीं ग्रामीणों में एक नये आत्मविश्वास का संचार किया है।



ग्रामीण क्षेत्रों में लोग कंप्यूटर पर खेती की नयी तकनीकों, नये किस्म के बीजों और फसलों की सुरक्षा संबंधी फिल्में देखते हैं। इन्हीं क्षेत्रों के बच्चों ज्योमेट्री का होमवर्क कम्प्यूटर पर करना पसंद करते हैं और साथ गानों तथा फिल्मों के लिए भी कंप्यूटर स्क्रीन का ही प्रयोग उन्हें भा रहा है। यही नहीं, कंप्यूटर ने ग्रामीण और शहरी दोनों ही सेक्टर्स में रोजगार की भी अपार संभावनाएं पैदा की हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से निकलने वाले कम्प्यूटर टीचर अपने ही गांवों में कंप्यूटर एजुकेशन के लिए काम कर रहे हैं।



हालांकि इंटरनेट यूजर्स की संख्या भारत में अभी कम है। भारत में महज आठ करोड़ लोग ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये लोग इंटरनेट पर ईमेल्स, सोशल नेटवर्किग, ऑनलाइन बैंकिंग, स्टॉक ट्रेडिंग, मेट्रीमोनियल साइट्स, नौकरियों से जुड़ी वेबसाइट्स और म्यूजिक व फिल्मों का लाभ उठा रहे हैं।



बेशक इस बात का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि गांवों में इंटरनेट यूजर्स कितने हैं, लेकिन जाहिर है गांवों में भी इंटरनेट यूजर्स काफी हैं। तमाम छोटे शहरों और कस्बों तक में फैले साइबर कैफे गवाह हैं कि आज कंप्यूटर और इंटरनेट इन लोगों के लिए भी एक जरूरत बनता जा रहा है। ये लोग दूर- दराज में कमाई करने गये अपने परिवारों के सदस्यों से नेट पर ही बातचीत करते हैं और ये नेट ही है, जो विदेशों में रह रहे इनके परिजनों से इन्हें जोड़े रखता है।



ऐसा भी नहीं है कि ये लोग इंटरनेट का इस्तेमाल केवल पारिवारिक जरूरतों के लिए ही करते हैं, शहरी लोगों की तरह ही ये भी सोशल साइट्स का इस्तेमाल करने लगे हैं। और सबसे ज्यादा दिलचस्प तो यह है कि ई कंसल्टेंसी की भी मदद ले रहे हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें किसानों ने ई कंसल्टेंसी की मदद से अपनी फसलों को खराब होने से बचाया।



इसी तरह बहुत से कारीगर अपने माल को बेचने के लिए सीधे ग्राहक तक भी नेट के जरिये ही पहुंच रहे हैं। और बेहद परंपरागत सोच वालों को भी यह बात समझ में आ रही है कि कंप्यूटर और नेट आपको पूरी दुनिया से जोड़ता है और आपको सीधे ग्राहकों तक पहुंचाने में भी बड़ा मददगार साबित हो सकता है। यही वजह है कि कंप्यूटर आज लोगों की जीवनशैली बदल रहा है, गांवों की तस्वीर बदल रहा है और बदल रहा है इन्सान की पुरातन सोच।

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