Saturday, May 14, 2011

जमाना टीवी शॉपिंग का है

सुधांशु गुप्त
बाजार से इनसान का रिश्ता लगभग उतना ही पुराना है, जितना भूख से इनसान का रिश्ता। सदियों से बाजार इनसान की जरूरात की चीजें इनसान को पहुंचाने का काम करता रहा है। और इनसान के लिए भी बाजार अपनी जरूरत की चीजों को बेचने वाली एक शक्ति के रूप में ही मौजूद रहा। लेकिन वक्त, समाज और तकनालॉजी एक ओर जहां बाजार का बेहद विस्तार किया, वहीं इनसान के भूख से रिश्ते में भी अहम बदलाव पैदा किये। आज इनसान केवल वही सामान नहीं खरीदता जो उसकी जरूरत का है, बल्कि बाजार के दबाव में वह तमाम ऐसी चीजें भी खरीदता है, जो उसका जरूरत की नहीं हैं या तात्कालिक जरूरत की नहीं हैं। कम से कम पिछले डेढ़ दो दशकों में, भारत में बाजार का इतना तेजी से विकास हुआ है कि आज बाजार की उपेक्षा करना संभव नहीं है। यह बाजार की ही ताकत का परिणाम है कि उसने शॉपिंग को इनसान की जीवन शैली का एक जरूरी हिस्सा बना दिया है। आज शॉपिंग इनसान के लिए लगभग वैसे ही जरूरी हो गयी है, जिस तरह घूमना-फिरना उसकी जरूरत है। डेढ़-दो दशक पहले का शॉपिंग का परिदृश्य देखें तो हमें छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में लगने वाले साप्ताहिक बाजार दिखाई पड़ेंगे, जिनका इंतजार निम्न मध्यवर्ग और निम्न वर्ग के लोग बेसब्री से किया करते थे। सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि और इतवार बाजार प्रतिदिन लगा करते थे और हर दिन के बाजार की अलग प्रकृŸिा होती थी। ऐसा नहीं है कि ये बाजार लगने एकदम बंद हो गये हैं। हां, इनके आकर्षण में जरूर कमी आई है। अब इन बाजारों की जगह बड़े और भव्य शॉपिंग मॉल लेते जा रहे हैं, जहां खरीदारी के सामान के साथ ही मनोरंजन का भी सारा सामान उपलब्ध होता है। बेशक यहां चीजें तुलनात्मक रूप से महंगी होती हैं, लेकिन इसके बावजूद भारतीय मध्यवर्ग को मॉल्स की अवधारणा पसंद आयी। लेकिन दिलचस्प बात है कि मॉल्स में खरीदारी के आंकड़े कभी भी बहुत सकारात्मक नहीं रहे। लोग वहां जाते तो हैं, लेकिन शॉपिंग उनकी प्राथमिकता नहीं होती। वहां वे तफरीह के लिए जाना ज्यादा पसंद करते हैं।
लेकिन शॉपिंग का एक खास फंडा यह था कि उसके इनसान को तैयार होकर बाजार तक जाना पड़ता था। बाजार इस पर लगातार सोच रहा था। वह सोच रहा था कि कि तरह इनसान के बैडरूम तक पहुंचा जाए। यानी किस तरह व्यक्ति अपने घर से बाहर निकले बगैर ही शॉपिंग कर सके। और इस अवधारणा को अमली जामा पहनाया टेलिफोन और इंटरनेट ने। इनके आने से शुरू हुआ टेली-शॉपिंग और ऑनलाइन शॉपिंग का सिलसिला। अब लोगों के लिए यह जरूरी नहीं रह गया कि वे शॉपिंग करने के लिए तैयार होकर बाहर जाएं। अब वे टेलीफोन पर या ऑनलाइन ही चीजों का ऑर्डर करने लगे। पर इसमें एक दिक्कत आई और अब भी आ रही है। इस तरह की शॉपिंग में माल बेचने वाला और माल दोनों अदृश्य थे। तो उपभोक्ता इस तरह की शॉपिंग पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं कर पाये। एक दिक्कत यह भी थी कि आज भी बड़ी संख्या में भारतीय जनसंख्या नेट सेवी नहीं है। तो शॉपिंग की यह अवधारणाएं भी, चलते रहने के बावजूद बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पाईं। इस बीच टेलीविजन की पहुंच बेहद बढ़ चुकी थी। लगभग हर घर में टीवी पहुंच चुका था। और आम दर्शक टीवी पर भरोसा करने लगा था। तो बाजार ने इसी टेलीविजन के जरिये लोगों के घर तक पहुंचने की सोची और बाजार में एक नयी अवधारणा आई-टीवी शॉपिंग। इसके मूल में यही था कि व्यक्ति जब चाहे शॉपिंग कर सके। टीवी शॉपिंग की इसी अवधारणा ने लगभग 14 माह पहले होम शॉप-18 नामक 24 घंटे के चैनल को जन्म दिया। इसमें तमाम तरह के उत्पादों को लेकर इनोवेटिव किस्म के प्रोग्राम बनाये गये, ताकि उपभोक्ताओं को उत्पादों के बारे में महीन से महीन जानकारी दी जा सके। होम शॉप-18 के मुख्य कार्यकारी संदीप मल्होत्रा कहते हैं, हमारा मकसद था लोगों में शॉपिंग की हैबिट विकसित करना और उन्हें सिखाना कि आत्मविश्वास के साथ शॉपिंग कैसे की जा सकती है। संदी मल्होत्रा बताते हैं, चैनल शुरू करते समय हमारे जेहन में यही था कि हमारे पास छोटे शहरों से ज्यादा ऑर्डर आएंगे क्योंकि वहां ब्रांडेड प्रोडक्ट्स की उपलब्धता नहीं होती। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से हमारे पास भारत के तमाम बड़े शहरों से ऑर्डर आ रहे हैं।
टीवी शॉपिंग का क्रेज भारत में कितनी तेजी से फैल रहा है, इसका अंदाजा होम शॉप-18 द्वारा उपलब्ध कराये गये आंकड़ों से लगाया जा सकता है। जब यह चैनल शुरू हुआ तो इनकी प्रतिदिन सेल पांच लाख रुपए थी, जो आज बढ़कर एक करोड़ रुपए प्रतिदिन हो गयी है। पहले इनके पास पांच सौ कॉल प्रतिदिन आती थीं, आज 20, हजार कॉल प्रतिदिन आ रही हैं। पहले इनके पास महज पांच ब्रांडेड आयटम थे, आज 19 हजार ब्रांडेड आयटम हैं। पहले भारत के 450 शहरों के लोग टीवी के जरिये शॉपिंग कर रहे थे, आज 2700 शहरों के लोग टीवी शॉपिंग में रुचि ले रहे हैं। यानी टीवी शॉपिंग मंे लोगों की रुचि लगातार बढ़ रही है। सवाल उठता है क्यों ? संदीप मल्होत्रा इसके ये कारण बताते हैंः हम मैन्यूफैक्चरर से प्रोडक्ट लेकर सीधा ग्राहकों तक पहुंचाते हैं। यानी मैन्यूफैक्चरर और उपभोक्ता के बीच के सारे मिडिलमैन खत्म। इससे उपभोक्ताओं को सस्ता माल मिलता है। दूसरा कारण, टीवी ही एकमात्र ऐसा जरिया है, जहां ग्राहक खरीदे जाने वाले प्रोडक्ट का डेमोन्स्ट्ेशन देख सकते हैं। हम अपने शोज में हर प्रोडक्ट के सारे फीचर बताते हैं, जो सामान्य शॉपकीपर तक नहीं बताते। एक तरह से हम लोगों में कंज्यूमर अवेरनेस भी पैदा कर रहे हैं। शायद यही वजह है कि लोग इस पर भरोसा करने लगे हैं। संदीप मल्होत्रा एक और खास बात की ओर इशार करते हैं। वह कहते हैं, भारतीय महिलाएं अमूमन जूलरी को पहन कर देखने के बाद ही खरीदती रही हैं। लेकिन टीवी शॉपिंग ने पहली बार यह संभव कर दिखाया है कि महिलाएं टीवी पर देख कर जूलरी खरीद रही हैं।
अगर होम शॉप-18 के दावों और आंकड़ों को सही माना जाए तो कहा जा सकता है कि भविष्य टीवी शॉपिंग का है। इसकी एक और वजह यह भी है कि टीवी के जरिये बाजार आपके अपने घर मंे घुस आया है, आप जब चाहें यहां से सामान खरीद सकते हैं। जहां तक इस तरह की शॉपिंग पर भरोसे की बात है तो वह भी देर-सवेर हो ही जाएगा और तब बाजार और इनसान का रिश्ता निश्चित ही एक नया रूप ले लेगा।

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