Saturday, May 21, 2011

बहुत हार्ड था हार्ड कौर का जीवन

सुधांशु गुप्त



कानपुर के निम्न मध्यवर्गीय परिवार में जन्मीं तरण कौर ढिल्लन की जिंदगी का सफर आसान नहीं था। सिख विरोधी दंगों में उन्होंने अपने पिता को खोया और घर का ब्यूटी पार्लर भी जला दिया। इसके बाद कानपुर से लुधियाना और फिर लंदन तक का सफर किसी के लिए भी प्रेरणास्रोत का काम कर सकता है।

सपने उन्हीं के पूरे होते हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों में उड़ान होती है।
यकीनन देश की पहली रैपर और हिप हॉप सिंगर हार्ड कौर की सफलता की अब तक की दास्तान हौसलों की ही दास्तान है। आज जब लोग उनके गाये गीत- ‘मूव योर बॉडी बेबी’ या फिर ‘मैं नशे में टल्ली हो गयी...’ जैसे गीत सुनते हैं तो उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं होता कि हार्ड कौर की इस मदमस्त कर देने वाली आवाज के पीछे कितना दर्द और कितना संघर्ष छिपा है। हार्ड कौर का जन्म कानपुर में 1979 में हुआ। उनका बचपन आम निम्न मध्यवर्गीय परिवारों की लड़कियों की तरह ही बीत रहा था। उनका नाम था तरण कौर ढिल्लन। उनकी मां घर के आर्थिक हालात को बेहतर बनाने के लिए कानपुर में ही एक ब्यूटी पार्लर चलाया करती थीं। तभी नवंबर 1984 के वे शुरुआती दिन
आये, जिन्होंने एकबारगी इस घर की खुशियों को डस लिया। सिख विरोधी दंगों ने तरण के पिता की बलि ले ली। यही नहीं, उनका ब्यूटी पार्लर भी आग के हवाले कर दिया गया। तरण की मां अपनी बेटी और बेटे को लेकर लुधियाना आ गयीं, अपने मायके। समय फिर रफ्ता-रफ्ता बीतने लगा। 1991 में तरण की मां ने एक अप्रवासी भारतीय से शादी कर ली और बर्मिंघम, लंदन चली गयीं। तरण की मां ने वहां भी ब्यूटी पार्लर खोल लिया, ताकि बेटी की पढ़ाई-लिखाई ठीक ढंग से हो सके। इस बीच तरण के मन में सिंगर बनने का कोई साफ-साफ सपना नहीं था। बस उसके मन में अपनी एक आंटी की वह तस्वीर समाई हुई थी, जिसमें वे परंपरागत साड़ी पहने हारमोनियम बजा रही हैं। उनके इसी सपने ने शायद एक सिंगर का रूप लिया। लेकिन तरण ने पाया कि लंदन में भी उनके लिए रास्ते आसान नहीं हैं। लोग उन पर फब्तियां कसते।

किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते तरण ने सिंगर बनने का निश्चय कर लिया। वह कड़ी मेहनत करतीं। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ म्यूजिक में दाखिला ले लिया। 1995 में तरण कौर ने स्टेज परफॉर्मेंस देनी शुरू कर दी। उन्होंने रूस, इस्रायल, फ्रांस और कोपनहेगन की यात्राएं कीं। उन्हें दर्शक और सम्मान दोनों मिले। उनका ‘ग्लॉसी’ एलबम आया, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया। इसके बाद लंदन से बॉलीवुड तक का उनका सफर बहुत मुश्किल नहीं रहा। वह अहसान लॉय से मिलीं। अहसान के जरिये उनकी मुलाकात ‘जॉनी गद्दार’ के निर्देशक श्रीराम से हुई। इसी फिल्म में उन्होंने पहला गीत गया - मूव योर बॉडी बेबी। इस गीत ने उन्हें भारत में भी लोकप्रिय कर दिया। इसके बाद उन्होंने हाल-ए-दिल, किस्मत कनेक्शन, अगली और पगली, बचना ऐ हसीनों और ‘सिंह इज किंग’ के लिए गीत गाये। लेकिन उनका नाम तरण से हार्ड कौर कैसे हो गया, यह अभी भी रहस्य ही है। संभवत: जीवन के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते हुए और जीवन की कड़वी सच्चाइयों को झेलते-झेलते वह इतनी हार्ड हो गयीं कि उन्होंने अपना नाम ही हार्ड कौर कर लिया। हार्ड कौर का मानना है कि जब तक आपमें प्रतिभा और जुनून है, तब तक आपको अपने सपनों का पीछा करना चाहिए। और अपने सपने का पीछा करते-करते ही हार्ड कौर यहां तक पहुंची हैं।

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