Monday, March 21, 2011

टैक्नोफ्रैंडली हो रही हैं महिलाएं

                                                
टैक्नोफ्रैंडली हो रही हैं महिलाएं
सुधांशु गुप्त
                                                                                                      First Published:19-01-11 02:15 PM
महिलाओं के दिल से अब साइंस और तकनालॉजी के प्रति डर निकल रहा है। यही वजह है कि वे इंजीनियरिंग के साथ-साथ तमाम ऐसे कोर्सेज कर रही हैं, जिन पर कुछ साल पहले तक पुरुषों का ही वर्चस्व माना जाता था। किस तरह इन नये कोर्सेज ने महिलाओं की दुनिया और नजरिया बदला है, सुधांशु की रिपोर्ट
सावित्री एक मध्यवर्गीय परिवार की युवती हैं। 1993 में उन्होंने फूड टैक्नोलॉजी का कोर्स करने के लिए शहीद राजगुरु कॉलेज ऑफ अप्लाइड साइंसेज फॉर वुमन में एडमिशन लिया था। उस समय उनके अड़ोस-पड़ोस के लोगों के साथ-साथ उसके अपने घरवालों ने भी यही सोचा था कि शायद यह कोर्स महिलाओं की किचन की दुनिया का ही विस्तार होगा। लेकिन आज सावित्री उसी कॉलेज में नौकरी करती हैं और अपने करियर से संतुष्ट हैं। सावित्री कहती हैं, आज ‘रेडी टू ईट’ का दौर है। ऐसे में फूड टैक्नोलॉजी जैसे कोर्सेज की बाजार में खूब मांग है। लेकिन वास्तव में यह कोर्स है क्या? सावित्री बताती हैं, अगर कोई महिला एक किलो आम का अचार अपने घर पर डालती है तो यह एक सामान्य-सा घरेलू काम है। लेकिन अगर उसे चालीस टन आमों का अचार डालना हो तो उसके लिए मुश्किल होगी। उसमें कौन-सी चीज कितनी डालनी है, किस अनुपात में डालनी है, आम के इस अचार को कैसे लंबे समय तक प्रिजर्व किया जा सकता है (वह भी कम से कम कैमिकल्स डालकर), कैसे उसकी मार्केटिंग करनी है, यह सब फूड टैक्नोलॉजी के अंतर्गत सिखाया जाता है।
सावित्री के अलावा आकांक्षा ने इसी कॉलेज से बीएएससी इलेक्ट्रॉनिक्स और पायल भाटिया ने कंप्यूटर साइंस ऑनर्स किया है। और ये दोनों भी अब इसी कॉलेज में नौकरियां कर रही हैं। दिलचस्प रूप से साइंस और तकनालॉजी से जुड़े अनेक कोर्सेज आज मार्केट में उपलब्ध हैं, जिन्हें करके लड़कियां अपने सपनों का करियर बना रही हैं।
हमारे समाज में एक लंबे समय तक यह माना जाता था कि साइंस और तकनालॉजी ऐसी चीजें हैं, जिनके लिए लड़कियां फिट नहीं हैं। एक तरह से साइंस और तकनालॉजी से लड़कियां भी भयभीत सी रहा करती थीं। उनके लिए साइंस का अर्थ केवल डॉक्टर होने तक ही सीमित था। और इंजीनियरिंग जैसे पेशों के बारे में माना जाता था कि ये लड़कियों की बायोलॉजिकल क्षमताओं को देखते हुए उपयुक्त नहीं हैं। लेकिन पिछले दो-तीन दशकों में आए सामाजिक, शैक्षणिक बदलावों ने लड़कियों के लिए शिक्षा के तमाम दरवाजे खोले हैं। एक बार लड़कियां शिक्षा की ओर अग्रसर हुईं तो उन्हें यह भी समझ में आ गया कि कोई भी फील्ड ऐसा नहीं है, जिसमें वे सफलतापूर्वक काम नहीं कर सकतीं। लिहाजा उन्होंने ऐसे फील्ड्स भी चुने, जिन पर पुरुषों का ही अधिकार माना जाता था। मिसाल के तौर पर फैक्ट्रियों में काम करना या दूसरे भारी किस्म के काम, जो लड़कियों के लिए वजिर्त से माने जाते थे।
बाजार ने भी लड़कियों के लिए तमाम ऐसे कोर्सेज पैदा किये, जो उन्हें सही करियर का रास्ता दिखा सकें। बायोमेडिकल साइंस ऐसा ही एक कोर्स है। बाजार में लगातार ट्रेन्ड और स्किल्ड मैनपावर की मांग बनी हुई है। लड़कियों ने (खासतौर से मध्यवर्गीय लड़कियों ने) इस कोर्स को चुना। ये कोर्स करने वाली लड़कियों को बायोटैक्नोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, जेनेटिक्स, फार्मेसी, फार्मेस्युटीकल्स, मेडिसिनल कैमिस्ट्री, मेडिकल लेबोरेट्री टैक्नीक्स जैसे संबंधित विषयों को पढ़ाया जाता है।
ये कोर्स करने के बाद लड़कियां मेडिकल की ही विभिन्न शाखाओं से सफलतापूर्वक काम कर सकती हैं और कर रही हैं। वास्तव में पहले हमारा जो सामाजिक ढांचा था, उसमें हम अपनी बेटियों को बड़ी इंडस्ट्री में काम करते हुए नहीं देखना चाहते थे। हमें लगता था कि किस तरह लड़कियां फैक्ट्रियों में वर्कर से और मशीनों से डील करेंगी। लेकिन बाजार में इंस्ट्रुमेंटेशन जैसे कोर्सेज ने ऐसी स्किल्ड और ट्रेन्ड लड़कियां तैयार कीं, जो आज बड़ी- बड़ी फैक्ट्रियों में सफलतापूर्वक काम कर रही हैं।
बढ़ रही हैं महिला इंजीनियर
पिछले एक दशक में महिलाओं ने इस धारणा को ध्वस्त करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है कि इंजीनियरिंग और तकनालॉजी पर पुरुषों का ही आधिपत्य रहेगा। आश्चर्यजनक रूप से देश में ऐसी लड़कियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो इंजीनियरिंग और तकनालॉजी के क्षेत्र में अपना करियर बना रही हैं। हाल ही में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन द्वारा जारी आंकड़े महिलाओं के पक्ष में जोरदार गवाही देते हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2009-10 के अकादमिक सत्र में 2,76,806 महिलाओं ने इंजीनियरिंग और तकनालॉजी के कोर्सेज में पंजीकरण कराया। यह संख्या 2000-01 में पंजीकृत (1,24,606) लड़कियों की संख्या से दोगुनी है। इस साल आईआईटी के एन्ट्रेंस एग्जाम में बैठने वाली लड़कियों की संख्या (1.13 लाख) भी पिछले साल के मुकाबले कहीं ज्यादा है।
मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय के अधिकृत सूत्रों के अनुसार, लड़कियों की संख्या में यह इजाफा उस मिथ को तोड़ता है, जिसके अनुसार लड़कियां इंजीनियरिंग को पसंद नहीं करतीं। यूजीसी की यह रिपोर्ट उच्च शिक्षा में भी लड़कियों की भारी वृद्धि की बात कहती है और यह भी बताती है कि केवल इंजीनियरिंग और तकनालॉजी के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि लड़कियां तमाम दूसरे क्षेत्रों-मैनेजमेंट, कॉमर्स- में भी खासी रुचि ले रही हैं। इन सबके साथ-साथ आर्ट्स अब भी लड़कियों का प्रिय क्षेत्र बना हुआ है। 
देश की पहली महिला इलेक्ट्रिकल इंजीनियर
सुधा नारायण मूर्ति देश की पहली इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं। उन्होंने बीवीबी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग टैक्नोलॉजी, हुबली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी.ई किया। इसके बाद 1974 में उन्होंने कंप्यूटर साइंस में एम.टैक किया। लेकिन इस सबके बावजूद उन्होंने टैल्को (अब टाटा मोटर्स) कंपनी का एक विज्ञापन देखा। उसमें इलेक्ट्रिकल इंजीनियर मांगे गये थे और लिखा था, इसके लिए केवल पुरुष ही आवेदन कर सकते हैं। उन्हें यह बात बहुत खराब लगी। उन्होंने जेआरडी टाटा को एक पोस्टकार्ड लिखकर इसकी शिकायत की। इसके बाद उन्हें न केवल इंटरव्यू के लिए बुलाया गया, बल्कि उन्हें नौकरी भी दे दी गयी। इस तरह वह देश की पहली महिला इंजीनियर बनीं।
लड़कों और लड़कियों के ब्रेन में कोई फर्क नहीं होता
डॉ. एस. लक्ष्मी देवी, प्रिंसिपल, शहीद राजगुरु कॉलेज ऑफ अप्लाइड साइंसेज फॉर वुमन
आजकल लड़कियां साइंस और तकनालॉजी से जुड़े पेशों को अपना रही हैं, इस बदलाव की क्या वजह आप देखती हैं?
देखिए, हमारे समाज में एक लंबे समय तक लड़कियों को प्रोटेक्टिव रखा जाता था। यानी उनकी दुनिया घर की चारदीवारी के भीतर ही सीमित रखी जाती थी, जबकि लड़कों को हर चीज की आजादी थी। लेकिन नब्बे के दशक के बाद से पूरा सीन बदला। लड़कियों की शिक्षा को अहमियत मिली, लड़कियों को फ्रीडम मिली। लड़कियों की तरफ से भी इस मामले में पहल हुई और उन्होंने सोचा कि वे भी तमाम ऐसे काम कर सकती हैं, जो लड़के कर सकते हैं। लिहाजा वे साइंस और तकनालॉजी की तरफ अग्रसर हुईं।
आपके कॉलेज में लड़कियों के लिए कई दिलचस्प कोर्स हैं, इन कोर्सेज में लड़कियां किस तरह का परफॉर्म कर रही हैं?
देखिये, हमारे कॉलेज में कई तरह के कोर्सो में लड़कियां खूब रुचि ले रही हैं। फूड टैक्नोलॉजी, इंस्ट्रुमेंटेशन, बायोमेडिकल साइंस, कंप्यूटर साइंस और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कोर्सेज में लड़कियों की रुचि लगातार बढ़ रही है और इनमें लड़कियां लड़कों से बेहतर परफॉर्म कर रही हैं। मेरा मानना है कि आने वाले समय में बायोमेडिकल साइंसेज के एक्सपर्ट्स की मांग काफी बढ़ेगी और लड़कियां ही इस मांग को पूरा करेंगी। हमारे कॉलेज में कई लड़कियां हैं, जो यहीं से कोर्स करने के बाद अब यहां लैब असिस्टेंट्स जैसे जॉब अच्छी तरह से कर रही हैं। और ये लड़कियां मध्यवर्गीय परिवारों से आती हैं।
लेकिन क्या लड़कियों को इस तरह के प्रोफेशन में काम करने में कोई दिक्कत आती है?
मैं जेनेटिक्स पढ़ाती हूं और मैं जानती हूं कि लड़कों और लड़कियों के ब्रेन में कोई फर्क नहीं होता। यदि लड़कियों को मौके मिलेंगे तो वे लड़कों से ज्यादा अच्छा परफॉर्म करेंगी। मेरे कॉलेज से निकली लड़कियां आज अच्छे पदों पर काम कर रही हैं और कुछ तो बाकायदा एन्टरप्रेन्योर भी बन चुकी हैं। बस जरूरत इस बात की है कि लड़कियों के लिए माहौल तैयार किया जाए।

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